राज ठाकरे पर कानूनी शिकंजा, भड़काऊ भाषण मामले में बॉम्बे HC में अर्जी।

शुक्ला की याचिका में उनके और उनके परिवार के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की गई है, साथ ही भारत के चुनाव आयोग को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत कार्रवाई पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जिसमें कथित तौर पर नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए मनसे की मान्यता रद्द करना भी शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस लेने के बाद, उत्तर भारतीय विकास सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील शुक्ला ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नेता राज ठाकरे की पार्टी के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शुक्ला की याचिका में उनके और उनके परिवार के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की गई है, साथ ही भारत के चुनाव आयोग को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत कार्रवाई पर विचार करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जिसमें कथित तौर पर नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए मनसे की मान्यता रद्द करना भी शामिल है। उन्होंने मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा नफरत भरे भाषण, धमकी और शारीरिक हिंसा की घटनाओं की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की भी मांग की है।
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अंतरिम राहत के तौर पर, याचिका में अदालत से ठाकरे को भड़काऊ भाषण देने से रोकने का अनुरोध किया गया है। इससे पहले, शुक्ला ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख करते हुए आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र सरकार और पुलिस ने मनसे कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा, धमकियों और उत्पीड़न के लिए आपराधिक मामले दर्ज करने के उनके बार-बार अनुरोधों को नज़रअंदाज़ किया। उन्होंने दावा किया कि उत्तर भारतीयों के अधिकारों की वकालत करने के कारण उन्हें मनसे और उससे जुड़े समूहों द्वारा धमकी का निशाना बनाया गया।
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बॉम्बे उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में शुक्ला ने कहा कि 6 अक्टूबर, 2024 को दोपहर लगभग 3 बजे, मनसे और उससे जुड़े संगठनों से जुड़े लगभग 30 व्यक्ति उनके राजनीतिक दल के कार्यालय परिसर में घुस आए और संपत्ति में तोड़फोड़ करने का प्रयास किया। घटना के बाद, शुक्ला और उनके परिवार को कथित तौर पर मनसे कार्यकर्ताओं से कई धमकी भरे फोन आए। उन्होंने कहा कि उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और पिछले 10 महीनों से संबंधित विभाग से संपर्क किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।
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