लॉकडाउन इफेक्ट: लौट रहा पुराना दौर, किताबें पढ़ समय व्यतीत कर रहे हैं लोग

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अंकित सिंह । Mar 28 2020 7:49PM

आज किताब एक बार फिर से हमें एहसास करा रहा है कि इंसान का किताबों से हमेशा हमेशा नाता रह सकता है। डिजिटल युग में भी किताबों का अपना महत्व है। तभी तो लोगों के हाथ में मोबाइल, पैड आदि सब कुछ पड़े हुए हैं फिर भी लोग किताबों को ढूंढ रहे हैं।

पूरा विश्व में इस वक्त कोरोना महामारी की चपेट में है। लगातार राहत और बचाव कार्य जारी है पर कोरोना वायरस विकराल रूप लेता जा रहा है। कई देशों में लॉक डाउन कर दिया गया है। भारत में भी 14 अप्रैल तक लॉक डाउन है। इस लॉक डाउन के दौरान सभी को अपने घरों में रहने के लिए कहा गया है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि लोग अपने घरों में रहे, घरों से बाहर ना निकले, सरकार उचित चीजों का व्यवस्था करेगी। इस लॉक डाउन में कई दफ्तरों में आकाश घोषित कर दिया गया है जबकि कई दफ्तर वर्क फ्रॉम होम करवा रहे हैं। इस बीच लोगों के पास अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करने का अच्छा मौका है। लोग ऐसा कर भी रहे हैं

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इस लॉक डाउन के दौरान घरों में रहने वाले लोग अपने पुराने दिनों को याद कर रहे हैं। पुरानी यादों में वह किताबें उनके साथ है जिन्हें या तो वह बहुत पहले पढ़ चुके हैं, या जिनसे उनकी कोई अच्छी यादें जुड़ी हुई है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि जिनको साहित्य में या फिर किताबें पढ़ने में रुचि है, वह घर में रखी किताबों को पढ़कर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। यह किताबें उन्हें बीते हुए कल की याद दिला रही हैं।

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दरअसल इन किताबों तक लोग अनायास ही नहीं पहुंच रहे। समय मिलने के बाद स्टोर रूम में पड़ी इन किताबों को साफ सफाई के दौरान निकाला जा रहा है। यह किताबें मैगजीन हो सकते हैं, यह किताबे साहित्य जगत की हो सकती है, यह किताबें उपन्यास हो सकती हैं, यह किताबें किसी भाषा से संबंधित हो सकती हैं। बच्चों के लिए भी इन किताबों में बहुत कुछ निकल रहा है। दरअसल चाचा चौधरी जैसे पुरानी मैगजीन, चंपक जैसे किस्से-कहानियों वाला किताब सामने आ रहा है।

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दिल्ली-एनसीआर या फिर महानगरों में रहने वाले लोगों के लिए किताबों की तरफ झुकाव का एक और प्रमुख कारण यह भी है कि अखबारों का आना फिलहाल बंद है। कोरोना वायरस के संकट को देखते हुए अखबार का डिस्ट्रीब्यूशन नहीं किया जा रहा है। ऐसे में जिन को पढ़ने की आदत लगी हुई है वह किताबें पढ़कर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। बड़ों के साथ-साथ बच्चे भी किताबों में कुछ ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। ज्यादातर एग्जाम खत्म हो गए हैं या फिर किसी एग्जाम्स का एक पेपर बाकी है। ऐसे में बच्चों के पास सिलेबस बुक के अलावा कुछ अन्य किताबें पढ़ने का अच्छा विकल्प है। बच्चे भी उन किताबों को लगातार ढूंढ रहे हैं। अपने दादा या अपने पिताजी की किताबों को बच्चे भी पढ़ रहे।

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वो कहते हैं ना कि अकेले का साथी किताब ही होता है। आज किताब एक बार फिर से हमें एहसास करा रहा है कि इंसान का किताबों से हमेशा हमेशा नाता रह सकता है। डिजिटल युग में भी किताबों का अपना महत्व है। तभी तो लोगों के हाथ में मोबाइल, पैड आदि सब कुछ पड़े हुए हैं फिर भी लोग किताबों को ढूंढ रहे हैं।

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