लोहडी ..उत्तरी भारत में धूम धाम से मनाया जाता है यह त्योहार

Lohri

लोहड़ी माघ महीने की संक्रांति से पहली रात को मनाई जाती है। किसान सर्द ऋतु की फसलें बो कर आराम फरमाता है। इस दिन प्रत्येक घर में मूंगफली, रेवडिय़ां, चिवड़े, गजक, भुग्गा, तिलचौली, मक्की के भुने दाने, गुड़, फल इत्यादि खाने और बांटने के लिए रखे जाते हैं। तिलचौली : एक विशेष प्रकार की मिठाई होती है जो लोहड़ी के अवसर पर बांटी जाती है

शिमला। हिमाचल प्रदेश सहित उत्तरी भारत में आज लोहड़ी का त्यौहार पूरे धूम धाम से मनाया जा रहा है। लोगों के घर आंगन में आज उत्सव का महौल है। इस त्योहार का साल से लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं।

 

लोहड़ी माघ महीने की संक्रांति से पहली रात को मनाई जाती है। किसान सर्द ऋतु की फसलें बो कर आराम फरमाता है। इस दिन प्रत्येक घर में मूंगफली, रेवडिय़ां, चिवड़े, गजक, भुग्गा, तिलचौली, मक्की के भुने दाने, गुड़, फल इत्यादि खाने और बांटने के लिए रखे जाते हैं। तिलचौली : एक विशेष प्रकार की मिठाई होती है जो लोहड़ी के अवसर पर बांटी जाती है , यह तिल्लो, मूंगफली , गुड ,गजक,घी और चावल की चिब्बो से बनायीं जाती है

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देश के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग रूप व रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। पंजाब व जम्मू-कश्मीर आदि स्थानों पर इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाने की परंपरा है। इस बार लोहड़ी 13 जनवरी  को मनाई जा रही है। लोहड़ी हंसने-गाने, एक-दूसरे से मिलने-मिलाने व खुशियां बांटने का उत्सव है। होली की तरह ही लोहड़ी की शाम को भी लकडिय़ा इकठ्ठी कर जलाई जाती हैं और तिल से अग्निपूजा की जाती है। इस त्योहार का रोचक तथ्य यह है कि इस त्योहार के लिए बच्चों की टोलियां घर-घर जाकर लकडिय़ां इकठ्ठी  करती हैं और लोहड़ी के गीत गाती हैं ।

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हालांकि लोहड़ी के बारे में अलग अलग जगह अलग अलग कथाये बताई जाती है , जिसमे पंजाब की दूल्हा भट्टी वाली  सर्वाधिक  लोकप्रिय है हिमाचल की लोहड़ी कथाओं के  अनुसार  लोहड़ी और सैर  दो  सगी बहने  थी , सैर  की शादी  गरीब घर में हुई , इसलिए  उसे सितम्बर  महीने में मनाते है और उसके पकवान स्वादिष्ट तो होते है लेकिन अधिक महंगे नही होते , जबकि लोहड़ी  की शादी अमीर घर में हुई थी , इसलिए शायद  देसी घी ,चिवड़ा , मूंगफली ,खिचड़ी आदि के  कई मिठाईयों के साथ  इस त्यौहार  को  खूब धूमधाम  से  मनाया  जाता है जिसकी शुरुआत  एक महिना पहले ही लुकड़ीयो के साथ हो  जाती है लोहड़ी वाली रात  को आम की सुखी  लकड़ी जला  कर उसमे तिलचोली यानि मूंगफली ,चिवड़ा ,तिल,गुड़,देशी घी  आदि की आहुति दी जाती है और घर में सुख समृद्धि आदि के लिए पूजा की जाती है , लोहड़ी के अगले दिन राजडे ( लोहड़ी के लोकगीत ) गाये  जाते है , उसके बाद कुलज ( कुलदेवी ) की पूजा के बाद  देसी घी और माह के खिचड़ी बना कर परोसी जाती है

 

पंजाब की  एक कहानी  के अनुसार, एदुल्ला भट्टी नाम का एक मशहूर डाकू था। उसने एक निर्धन ब्राह्माण की दो बेटियों -सुंदरी एवं मुंदरी को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं तथा उन की झोली में शक्कर डाली। इसका एक संदेश यह है कि डाकू हो कर भी उसने निर्धन लड़कियों के लिए पिता का फर्ज निभाया। । इस दुल्ला भट्टी की याद आज भी लोगों के दिलों में है और लोहड़ी के अवसर पर गीत गाकर दुल्ला भट्टी को याद करते हैं,इनमें से एक गीत खूब पसंद किया जाता है-

सुंदर मुंदरिए। हो

तेरा कौन बेचारा, हो

दुल्ला भट्टी वाला, हो

दुल्ले धी ब्याही, हो

सेर शक्कर आई, हो

कुड़ी दे बोझे पाई, हो

कुड़ी दा लाल पटारा, हो

लोहड़ी की पवित्र अग्नि में रेवड़ी, तिल, मूँगफली, गुड़ व गजक भी अर्पित किए जाते हैं। इस तरह से लोग सूर्य देव और अग्नि के प्रति आभार प्रकट करते हैं क्योंकि उनकी कृपा से कृषि उन्नत होती है। सूर्य और अग्नि देव से प्रार्थना की जाती है कि आने वाले साल में भी कृषि उन्नत हो और घर अन्न धन से भरा रहे। हमारे ऋषि-मनीषी भी बताते है की लोहड़ी पर्व के नाम के विषय में भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार मकर संक्रांति की तैयारी में सभी गोकुल वासी लगे थे। इसी समय कंस ने लोहिता नामक राक्षसी को भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने लोहिता के प्राण हर लिये। इस उपलक्ष में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। लोहिता के प्राण हरण की घटना को याद रखने के लिए इस पर्व का नाम लोहड़ी रखा गया। 

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