लोकसभा ने सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 को दी मंजूरी

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[email protected] । Jul 22 2019 8:37PM

इस विधेयक में उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे।

नयी दिल्ली। लोकसभा ने सोमवार को सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक 2019 को मंजूरी प्रदान कर दी। केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने पारदर्शिता कानून के बारे में विपक्ष की चिंताओं को निर्मूल करार देते हुए कहा कि मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी, सरलीकरण, न्यूनतम सरकार...अधिकतम सुशासन को लेकर प्रतिबद्ध है। मंत्री के जवाब के बाद एमआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी समेत कुछ सदस्यों ने विधेयक पर विचार किये जाने और इसके पारित किये जाने का विरोध किया और मतविभाजन की मांग की। सदन ने इसे 79 के मुकाबले 218 मतों से अस्वीकार कर दिया। इसके बाद सदन ने विधेयक को मंजूरी प्रदान की। इस विधेयक में उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। मूल कानून के अनुसार अभी मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों के बराबर है। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने सरकार पर सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक लाकर इस महत्वपूर्ण कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया।

विपक्ष ने आरोप लगाया किसरकार इस संशोधन के माध्यम से राज्यों में भी सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों की नियम, शर्तें तय करेगी जो संघीय व्यवस्था तथा संसदीय लोकतंत्र के खिलाफ है।  चर्चा का जवाब देते हुए कार्मिक, लोक प्रशासन तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि पारदर्शिता के सवाल पर मोदी सरकार की प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। उन्होंने जोर दिया कि सरकार अधिकतम सुशासन, न्यूनतम सरकार के सिद्धांत के आधार पर काम करती है। विधेयक के संदर्भ में मंत्री ने कहा कि इसका मकसद आरटीआई अधिनियम को संस्थागत स्वरूप प्रदान करना, व्यवस्थित बनाना तथा परिणामोन्मुखी बनाना है। उन्होंने कहा कि इससे आरटीआई का ढांचा सम्पूर्ण रूप से मजबूत होगा और यह विधेयक प्रशासनिक उद्देश्य से लाया गया है। सिंह ने कहा कि पूर्ववर्ती सरकार में आरटीआई आवेदन कार्यालय समय में ही दाखिल किया जा सकता था। लेकिन अब आरटीआई कभी भी और कहीं से भी दायर किया जा सकता है। 

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उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने सीआईसी के चयन के विषय पर आगे बढ़कर काम किया है। इसमें सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को जोड़ा गया और पिछली लोकसभा में कांग्रेस के नेता (मल्लिकार्जुन खडगे) बैठकों में नहीं आए ।सरकार की पारदर्शिता बढ़ाने की पहल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने अब तक 1500 ऐसे कानूनों को समाप्त करने का काम किया है जो पुराने थे और अप्रचलित थे। हमने शैक्षणिक दस्तावेजों को स्वप्रमाणित करने और डिजिटल प्रमाणपत्र की व्यवस्था को आगे बढ़ाया। सिंह ने कहा कि आरटीआई अधिनियम में पहले ही केंद्र को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है, आज भी वही व्यवस्था है। उन्होंने कहा कि आरटीआई के लंबित मामलों में कमी आई है। 2014 में लंबित मामले 37,323 थे जो 2015-16 में 34,982 हो गये, 2016-17 में 26,559 रहे तथा 2017-18 में 23,541 थे।

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