मस्जिद इस्लाम का अंग नहीं, SC इस फैसले पर कायम, मंदिर पर सुनवाई 29 अक्तूबर से

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[email protected] । Sep 27 2018 5:37PM

राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के निर्णय के खिलाफ दायर अपीलों पर अब 29 अक्तूबर को सुनवाई होगी।

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गयी टिप्पणी से जुड़़ा सवाल पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपने से गुरूवार को इंकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने 1994 के फैसले में टिप्पणी की थी कि मस्जिद इस्लाम का अंग नहीं है। शीर्ष अदालत ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और 1994 का निर्णय इस मामले में प्रासंगिक नहीं है।

राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के निर्णय के खिलाफ दायर अपीलों पर अब 29 अक्तूबर को सुनवाई होगी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपनी और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुये कहा कि उसे यह देखना होगा कि 1994 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किस संदर्भ में फैसला सुनाया था। 

दूसरी ओर, खंडपीठ के तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने दोनों न्यायाधीशों से असहमति व्यक्त करते हुये कहा कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुये यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है और इसके लिये विस्तार से विचार की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति नजीर ने मुसलमानों के दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों के खतने के मामले में शीर्ष अदालत के हालिया आदेश का जिक्र किया और कहा कि मौजूदा मामला भी वृहद पीठ को सुनना होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि भूमि विवाद से संबंधित दीवानी वादों पर अब तीन न्यायाधीशों की नवगठित पीठ 29 अक्तूबर को सुनवाई करेगी क्योंकि इस पीठ की अभी तक अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा दो अक्तूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि भूमि विवाद पर दीवानी वाद की सुनवाई नये सिरे से गठित तीन सदस्यीय पीठ 29 अक्टूबर को करेगी क्योंकि वर्तमान खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश मिश्रा दो अक्टूबर को सेवा निवृत्त हो रहे हैं।

वर्तमान में यह मुद्दा उस वक्त उठा जब प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ अयोध्या मामले में 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर अपने फैसले में जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया था। न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि 1994 का संविधान पीठ का फैसला भूमि अधिग्रहण तक सीमित था।

न्यायमूर्ति नजीर ने कहा कि 1994 की टिप्पणी ने ही भूमि विवाद मामले में उच्च न्यायालय के फैसले में पैंठ बनायी थी। इसी संदर्भ में उन्होंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस ए खान की इस टिप्पणी का जिक्र किया कि मस्जिद इस्लाम का अंग नहीं है। उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाये।

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