Jan Gan Man: भारतीय बाजारों से चीनी कब्जा हटाने में इस तरह सफल हुए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

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हाल के वर्षों तक भारतीय बाजारों में देखने को मिलता था कि खिलौने से लेकर मोबाइल तक, पर्वों-त्योहारों पर मूर्तियों से लेकर मिट्टी के दीये और अन्य सजावटी सामान तक, डाइपर से लेकर वाइपर तक, टीवी से लेकर कम्यूटर तक... सबकुछ चीन में बना हुआ मिलता था।

चीन की आदत है कि वह मनोवैज्ञानिक रूप से सामने वाले देश पर दबाव डालता है और अपनी चौधराहट चलाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि उसने भारत के साथ भी ऐसा ही सलूक किया लेकिन 2014 के बाद से चीन की हेकड़ी निकलनी शुरू हो चुकी है। भारत की वीर सेना ने चीन को डोकलाम, गलवान और तवांग में सबक सिखाया तो भारत सरकार की विदेश नीति के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के खिलाफ शिकंजा कसा गया। इसके अलावा, अब केंद्र की मोदी सरकार ने भारतीय बाजारों से चीन के कब्जे को हटाने का जो अभियान छेड़ा है उसमें भी तेजी से सफलता मिलती जा रही है। भारत के साथ व्यापार कम होना चीन के लिए ऐसे समय में बड़े सदमे की तरह है जब उसकी अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट आई है।

हम आपको याद दिला दें कि हाल के वर्षों तक भारतीय बाजारों में देखने को मिलता था कि खिलौने से लेकर मोबाइल तक, पर्वों-त्योहारों पर मूर्तियों से लेकर मिट्टी के दीये और अन्य सजावटी सामान तक, डाइपर से लेकर वाइपर तक, टीवी से लेकर कम्यूटर तक... सबकुछ चीन में बना हुआ मिलता था। ऐसे में भारतीय व्यापारियों का माल नहीं बिक पाने से उनको तो नुकसान होता ही था साथ ही भारतीय सामान की मांग नहीं होने के चलते श्रमिकों को भी काम नहीं मिलता था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का अभियान छेड़ते हुए वोकल फॉर लोकल की जो अपील की वह एक बड़ा जन-आंदोलन बन गया। सरकारी समर्थन के चलते स्वरोजगार की राह पर भारतीय इतना आगे बढ़ गये कि ऐसे तमाम उत्पाद भारत में ही बनने लगे जोकि कल तक चीन से आयात किये जाते थे। भारतीय उत्पादों की कम लागत और उच्च गुणवत्ता के चलते यह देसी बाजारों के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी छाने लगे गये हैं। भारतीय बाजारों से आज जिस तेजी से चीनी माल गायब होता जा रहा है उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि मोदी ने भारतीय बाजारों से चीन का कब्जा समाप्त करने में सफलता पाई है।

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जब भी कोई पर्व-त्योहार आने वाला होता है तो मोदी वोकल फॉर लोकल और मेड फॉर ग्लोबल की अपील करना नहीं भूलते। देखा जाये तो पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की त्योहारों पर ‘वोकल फॉर लॉकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की अपील का असर धरातल पर साफ नजर आने लगा है। हम आपको बता दें कि रक्षा बंधन पर्व पर उत्तर भारत के सबसे बड़े थोक बाजार, सदर बाजार में चीन निर्मित राखियां नदारद हैं और सिर्फ भारतीय राखियों की ही भरमार है। इससे दुकानदारों में भी खासा उत्साह है और उन्हें इस बार अच्छा कारोबार होने की उम्मीद है।

व्यापारियों की प्रतिक्रियाएं

सदर बाजार में चीन निर्मित राखियां कम उपलब्ध होने पर स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि आए दिन चीन सीमा का अतिक्रमण कर रहा है। ऐसे में हम क्यों चीन का माल बनाएं? दुकानदारों का कहना है कि चीन की राखी न हमारा ग्राहक खरीदना चाहता है और न हम बनाना चाहते हैं। दुकानदारों का कहना है कि अब लोग चीन की राखियां पसंद नहीं करते और इसलिए हम रखते भी नहीं हैं। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि ग्राहक भारतीय राखियों की ही ज्यादा मांग कर रहे हैं। वे चीन की राखी की मांग में कमी का एक प्रमुख कारण उसकी महंगी कीमत और खराब गुणवत्ता को भी बता रहे हैं। दुकानदारों का कहना कि इस बार सदर बाजार में तीन रुपये से लेकर 200 रुपये कीमत तक की भारतीय राखियां उपलब्ध हैं जबकि चीनी राखी की शुरुआती कीमत ही 50 रुपये है और यह टूटती भी जल्दी है।

दिल्ली व्यापार महासंघ के अध्यक्ष देवराज बवेजा का कहना है कि बाजार में 80 फीसदी भारतीय राखियां ही मिल रही हैं और राखियों के बाजार में चीन की हिस्सेदारी मुश्किल से 20 फीसदी तक ही रह गई है। उन्होंने कहा कि यह हिस्सेदारी भी केवल कच्चे माल के तौर पर ही है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि चीन की राखियों की मांग बीते तीन-चार साल के दौरान कम हुई है। इससे पहले चीन से राखियां खूब आती थीं। राखियों के थोक व्यापारियों का भी यही कहना था कि राखियों के लिए कुछ कच्चा माल जरूर चीन से आता है लेकिन उन्हें यहीं तैयार किया जाता है।

यही नहीं, देशभर के व्यापारियों के राष्ट्रीय सगंठन कान्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने दावा किया है कि इस बार राखी पर दिल्ली समेत समूचे देश में 10 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल राखियों का सात हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था। खंडेलवाल ने बताया कि भारतीय बाजार पर चीनी कब्जे की कुछ साल पहले तक ये स्थिति थी कि चीन से करीब चार हजार करोड़ रुपये की राखियां आयात की जा रही थीं। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि चीन से 2018 में तीन हजार करोड़ रुपये, 2019 में साढ़े तीन हजार करोड़ रुपये, 2020 में चार हजार करोड़ रुपए और 2021 में करीब साढ़े पांच हजार करोड़ रुपये कीमत की राखियां आयात की गईं। लेकिन इस बार विशुद्ध रूप से भारतीय राखियां बाजार में उपलब्ध हैं। देखा जाये तो रक्षाबंधन पर जो नजारा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में देखने को मिल रहा है वैसा ही दृश्य देशभर के बाजारों में भी देखा जा रहा है। ना दुकानदारों ने चीनी राखियां रखी हैं ना ग्राहक चीनी राखी मांग रहे हैं।

हम आपको याद दिला दें कि प्रधानमंत्री ने बीते रविवार को भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में रक्षाबंधन की अग्रिम शुभकामनाएं देते हुए दोहराया था, “पर्व-उल्लास के समय हमें वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को भी याद रखना है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ का अभियान हर देशवासी का अपना अभियान है।''

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