Prabhasakshi NewsRoom: BJP के घोषणापत्र में बाकी बचे वादों को देखकर चिंतित हुआ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, बैठक में लिये अहम फैसले

All India Muslim Personal Law Board
ANI

लखनऊ में हुई बैठक के दौरान लॉ बोर्ड ने मुसलमानों से पूरी तरह शरिअत पर अमल करने की अपील भी की। बोर्ड ने मोदी सरकार से समान नागरिक संहिता का इरादा छोड़ने का अनुरोध करते हुए कहा है कि देश के संविधान में हर व्यक्ति को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी है।

देश में राष्ट्रीय स्तर पर समान नागरिक संहिता लाये जाने की बढ़ती मांग के बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार से मांग की है कि वह इस दिशा में बढ़ने का इरादा पूरी तरह छोड़ दे। हम आपको बता दें कि एक ओर जहां कुछ भाजपा शासित राज्य समान नागरिक संहिता के संबंध में आयोग का गठन कर उसे इस संबंध में अपनी सिफारिशें देने को कह चुके हैं तो वहीं पिछले सप्ताह केंद्र सरकार ने संसद को बताया था कि 22वां विधि आयोग समान नागरिक संहिता से संबंधित मामले पर विचार कर सकता है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में हालांकि यह भी बताया था कि समान नागरिक संहिता लागू करने पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है। हम आपको बता दें कि समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा रहा है। भाजपा पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान अपने चुनावी घोषणापत्र में किये गये कई प्रमुख वादों मसलन- अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने जैसे वादे पूरे कर चुकी है इसलिए माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा सीएए के नियम बना सकती है, समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून ला सकती है। इस बारे में तमाम तरह की अटकलें और अफवाहें भी चल रही हैं जिसको देखते हुए यह मुद्दे इस बार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में छाये रहे।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई बैठक के दौरान लॉ बोर्ड ने मुसलमानों से पूरी तरह शरिअत पर अमल करने की अपील भी की। बोर्ड ने मोदी सरकार से समान नागरिक संहिता का इरादा छोड़ने का अनुरोध करते हुए कहा है कि देश के संविधान में हर व्यक्ति को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी है। हम आपको बता दें कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में नदवतुल उलेमा लखनऊ में बोर्ड की कार्यकारिणी की रविवार को बैठक हुई। इस बैठक में प्रस्ताव पारित कर मुसलमानों से यह आह्वान किया गया।

बैठक के बाद बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफ उल्लाह रहमानी की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'बोर्ड की बैठक मुसलमानों को यह याद दिलाती है कि मुसलमान का मतलब अपने आपको अल्लाह के हवाले करना है, इसलिए हमें पूरी तरह शरीअत पर अमल करना है।' बोर्ड ने अपने प्रस्ताव में यह भी कहा, ‘‘देश के संविधान में बुनियादी अधिकारों में हर व्यक्ति को अपने धर्म पर अमल करने की आजादी दी गयी है, इसमें पर्सनल लॉ शामिल है। इसलिए हुकूमत से अपील है कि वह आम नागरिकों की मजहबी आजादी का भी एहतराम करे, क्योंकि समान नागरिक संहिता लागू करना अलोकतांत्रिक होगा।’’ उन्होंने सरकार से इस इरादे को छोड़ने की अपील की है।

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धर्मांतरण को लेकर बनाए गए विभिन्न राज्यों के कानूनों पर क्षोभ प्रकट करते हुए बोर्ड ने यह भी प्रस्ताव पारित किया है कि 'धर्म का संबंध उसके यकीन से है, इसलिए किसी भी धर्म को अपनाने का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है। बोर्ड ने बताया कि इसी बिना पर हमारे संविधान में इस अधिकार को स्वीकार्य किया गया है और हर नागरिक को किसी भी धर्म को अपनाने तथा धर्म का प्रचार करने की पूरी आजादी दी गयी है, लेकिन वर्तमान में कुछ प्रदेशों में ऐसे कानून लाए गए हैं, जो नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करने की कोशिश है जो कि निंदनीय है।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 के अनुसार राज्य में गैर कानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन कराने या पहचान छिपाकर शादी करने के मामले में सख्त सजा का प्रावधान किया गया है।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह भी प्रस्ताव पारित किया कि इबादतगाहों से संबंधित 1991 का कानून खुद हुकूमत का बनाया हुआ कानून है, जिसे संसद ने पारित किया है इसलिए उसको कायम रखना सरकार का कर्तव्य है और इसमें देश का फायदा भी है। बोर्ड के महासचिव रहमानी ने 1991 के कानून की याद दिलाते हुए बताया कि यह ‘उपासना स्थल अधिनियम-1991’ को बरकरार रखने के लिए बोर्ड पैरवी कर रहा है।

हम आपको बता दें कि वाराणसी में ज्ञानवापी और गौरी श्रृंगार विवाद तथा मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म भूमि और शाही ईदगाह जैसे कुछ मामले हाल में सामने आये हैं जिनमें इस अधिनियम का हवाला दिया गया। यह अधिनियम कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के उपासना स्थल को, किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता और यदि कोई इसका उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली सरकार 1991 में लेकर आई थी, यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था।

बोर्ड की बैठक में मुसलमानों से अधिक से अधिक संख्या में अपने शैक्षिक संस्थान कायम करने तथा आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ सभ्यता और संस्कृति की सुरक्षा को भी यकीनी बनाने की दिशा में काम करने की अपील की गयी है। बोर्ड ने अपने प्रस्ताव के जरिये औरतों के साथ इंसाफ, बुजुर्गों के साथ अच्छा व्यवहार, शादी में फिजूलखर्ची से परहेज, अपने मामलों को धार्मिक रहनुमाओं से हल कराने की कोशिश, गलत कार्यों से दूरी बनाए रखना, निकाह के बगैर औरत-मर्द को जिस्मानी संबंध से दूर रहने के लिये कहा है। बोर्ड ने मुसलमानों से यह भी अपील की कि बोर्ड के बनाए हुए निकाहनामे का प्रयोग करें।

बोर्ड की बैठक में असम सरकार द्वारा बाल विवाह के खिलाफ शुरू किये गये अभियान की भी निंदा की गयी, बोर्ड ने इसकी निंदा करते हुए मामले का पुरजोर विरोध करने का भी फैसला किया। हम आपको बता दें कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने शनिवार को कहा था कि राज्य पुलिस द्वारा पिछले दिन से शुरू किया गया बाल विवाह के खिलाफ अभियान 2026 में अगले विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगा। बोर्ड की बैठक में आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी तथा मौलाना महमूद मदनी के अलावा कार्यकारिणी के अन्य सदस्य भी शामिल हुये।

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