NRC सेवा केंद्रों पर मुस्लिमों को हिंदुओं से मिल रही है मदद

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[email protected] । Aug 11 2019 3:12PM

दक्षिण सलमारा जिले से 72 वर्षीय इमामुल हक अपने ही इलाके तक सीमित हो गये थे लेकिन शिवसागर की यात्रा ने उनके लिये नयी दुनिया के द्वार खोले। शिवसागर 17वीं सदी में अहोम राजा की राजधानी थी।

गुवाहाटी। असम में इस महीने की शुरुआत में अहम नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) पुनर्सत्यापन की सूचना मिलने के बाद से हजारों मुस्लिम इसकी अंतिम समयसीमा खत्म होने से पहले एनआरसी प्रक्रिया को पूरा करने की जद्दोजहद में जुटे हैं, हालांकि इस काम में उन्हें हिंदुओं का भरपूर सहयोग मिल रहा है। निचले असम के कामरूप, ग्वालपाड़ा और दक्षिण सलमारा जिलों के लोगों को तीन अगस्त को राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) का नोटिस मिला था और उन्हें 24-48 घंटे के भीतर 400 किलोमीटर दूर ऊपरी असम के शिवसागर, चराइदेव और गोलाघाट जिलों में स्थित एनआरसी सेवाकेंद्रों में उपस्थित होने के लिये कहा गया था।

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पैसों की तंगी के कारण इतने कम समय में गरीब मुस्लिमों का वहां पहुंच पाना मुश्किल था, ऐसे में उन्हें अपने सोने के जेवर या मवेशियों और फसलों को औने-पौने दाम में बेचना पड़ा। उनकी मुश्किल बढ़ाने वाली बात यह भी थी कि उन्हें 80 साल के अपने बुजुर्ग माता-पिता और बच्चों के साथ ठसाठस भरी बस में सफर करना पड़ा, जो उनकी परेशानियों को और बढ़ाने वाला रहा। लेकिन सांप्रदायिक सौहार्द की बरसों पुरानी परंपरा की बदौलत एक अनजान जगह पर अनजान लोगों से इन गरीब लोगों को हर जरूरत की चीज जैसे कि भोजन, पानी और गर्भवती महिला को देखने के लिये डॉक्टरी मदद तक मिली।

दक्षिण सलमारा जिले से 72 वर्षीय इमामुल हक अपने ही इलाके तक सीमित हो गये थे लेकिन शिवसागर की यात्रा ने उनके लिये नयी दुनिया के द्वार खोले। शिवसागर 17वीं सदी में अहोम राजा की राजधानी थी। हक ने कहा कि मैंने कहीं पढ़ा था कि बगदाद से मुस्लिम उपदेशक शिवसागर आये थे और उन्होंने वहां लोगों को एकजुट किया। उन्होंने असम में सुधार और इस्लाम को सुदृढ़ करने का काम किया था। अजान सुनाने की अपनी खास शैली के कारण वह अजान फकीर के नाम से मशहूर हुए। जहीरउल आलम ने कहा कि शिवसागर के युवाओं ने हम जैसे सैकड़ों लोगों को मुफ्त में खिचड़ी खिलायी और पानी दिया। नगरबेरा की जहीरा खातून ने बताया कि उन्होंने एक गर्भवती महिला की जांच के लिये डॉक्टरी सेवा का भी इंतजाम किया।

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शिवसागर में दरगाह की देखभाल हिंदू करते हैं और इस दृश्य ने ग्वालपाड़ा के स्कूली छात्र सुकुर अली के मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी। अल्पसंख्यक बहुल पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के प्रवक्ता जहरूल इस्लाम ने कहा कि ऊपरी असम में मानवता की जो मिसाल दिखी वह अद्भुत है। प्रशासन और स्थानीय हिंदुओं से मिले सहयोग ने मुस्लिमों के मन मस्तिष्क को बदल दिया। उन्होंने कहा कि वे राजनीतिक और निहित स्वार्थ को समझ गये हैं, जिसके जरिये हिंदू-मुस्लिम खाई पैदा करने की कोशिश की जाती है और जो असम के पारंपरिक सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ है।

इस्लाम ने कहा कि जब उन्होंने वहां की छोटी बच्चियों को जिला उपायुक्त कार्यालय की ओर ओआरएस के पैकेट लेकर दौड़ते देखा और लंबी दूरी तय कर आये बच्चों के शरीर में पानी की कमी नहीं हो, इसकी खातिर पेयजल तैयार करते देखा तो मैं भावुक हो गया। ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एएएमएसयू) के कार्यकारी अध्यक्ष ऐनुद्दीन अहमद ने कहा कि यह मानवता और असम की संस्कृति को दिखाता है, जो राज्य में विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति करने वाले राजनीतिक और अन्य निहित स्वार्थ वालों के लिये चेतावनी की तरह है। उच्चतम न्यायालय एनआरसी की निगरानी कर रहा है और इस बात को लेकर सख्त है कि अधिकारी तयशुदा अंतिम समयसीमा 31 अगस्त तक इस प्रक्रिया को पूरा करें।

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