Prabhasakshi NewsRoom: आकाश से अंतरिक्ष तक भारत की छलांग, हवा में दुश्मन को रोकने और अंतरिक्ष में पहुँचने के लिए परीक्षण रहे कामयाब

Air Drop Test
Source X: @isro

डीआरडीओ के बहु-स्तरीय हवाई सुरक्षा कवच की बात करें तो आपको बता दें कि 23 अगस्त की दोपहर ओडिशा तट से डीआरडीओ ने भारत के पहले Integrated Air Defence Weapon System (IADWS) का परीक्षण किया।

भारत के लिए 23 और 24 अगस्त के दिन रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में नए मील के पत्थर लेकर आए। एक ओर जहां डीआरडीओ (DRDO) ने देश की पहली Integrated Air Defence Weapon System (IADWS) का सफल उड़ान परीक्षण किया, वहीं इसरो (ISRO) ने गगनयान मिशन की दिशा में पहला Integrated Air Drop Test (IADT-1) पूरा किया। दोनों घटनाएँ मिलकर यह दर्शाती हैं कि भारत न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को नई परतों से सुरक्षित बना रहा है बल्कि अंतरिक्ष में मानव उड़ान की तैयारी भी मजबूती से कर रहा है।

डीआरडीओ के बहु-स्तरीय हवाई सुरक्षा कवच की बात करें तो आपको बता दें कि 23 अगस्त की दोपहर ओडिशा तट से डीआरडीओ ने भारत के पहले Integrated Air Defence Weapon System (IADWS) का परीक्षण किया। यह प्रणाली तीन प्रमुख स्वदेशी हथियारों को जोड़ती है। पहली है- QRSAM (Quick Reaction Surface-to-Air Missile), दूसरी है- VSHORADS (Very Short Range Air Defence System), तीसरी है- लेज़र-आधारित Directed Energy Weapon (DEW)। हम आपको बता दें कि यह प्रणाली दुश्मन के ड्रोन, मिसाइल और हवाई हमलों को बहु-स्तरीय ढंग से रोकने की क्षमता प्रदान करती है।

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मई 2025 में पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष के दौरान भारतीय हवाई रक्षा तंत्र ने मिसाइलों और ड्रोन को सफलतापूर्वक रोका था, और IADWS उस क्षमता को और उन्नत बनाता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे “महत्वपूर्ण स्थापनाओं की सुरक्षा के लिए निर्णायक कदम” बताते हुए डीआरडीओ, सशस्त्र बलों और उद्योग जगत को बधाई दी है।

वहीं इसरो के परीक्षण की बात करें तो आपको बता दें कि 24 अगस्त को इसरो ने गगनयान मिशन की दिशा में पहला Integrated Air Drop Test (IADT-1) किया। लगभग पाँच टन वज़न वाले डमी क्रू कैप्सूल को चिनूक हेलीकॉप्टर से गिराया गया। गिरते समय पैराशूटों की अनुक्रमित खुलने की प्रक्रिया का परीक्षण किया गया ताकि कैप्सूल सुरक्षित रूप से धीमी गति से लैंड कर सके। यह परीक्षण भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी और सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें वायुसेना, नौसेना, तटरक्षक बल और डीआरडीओ ने मिलकर सहयोग किया, यह अंतरिक्ष और रक्षा सहयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है।

इसरो ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है, ‘‘गगनयान मिशनों में क्रू मॉड्यूल के उतरने के क्रम में अंतिम चरण के दौरान पैराशूट-आधारित मंदन प्रणाली का उपयोग किया जाता है ताकि समुद्र में सुरक्षित रूप से उतरने के लिए ‘टचडाउन’ वेग को स्वीकार्य सीमा तक कम किया जा सके।’’ हम आपको बता दें कि जिस पैराशूट प्रणाली का परीक्षण किया गया वह ‘‘गगनयान मिशनों के समान’’ थी और इसमें 10 पैराशूट शामिल थे- दो एपेक्स कवर सेपरेशन (एसीएस), दो ड्रोग, तीन पायलट और तीन मुख्य कैनोपी। इसरो ने कहा कि इसरो केंद्रों के अलावा, ‘‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, भारतीय वायु सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल सहित अन्य सरकारी एजेंसियों ने भी इस बड़े परीक्षण को सफलतापूर्वक पूरा करने में योगदान दिया।’’ आने वाले दिनों में इसी तरह के अन्य परीक्षण करने की योजना है।

हम आपको यह भी बता दें कि हाल ही में केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में बताया था कि गगनयान के लिए प्रमुख प्रणालियाँ— प्रणोदन इकाइयाँ, पर्यावरण नियंत्रण, जीवन समर्थन प्रणाली और क्रू एस्केप मोटर्स, पहले ही विकसित हो चुकी हैं। आगे की योजना में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (2035) और चंद्रमा पर मानव मिशन (2040) शामिल हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से इन दोनों उपलब्धियों का विश्लेषण करें तो सामने आता है कि Integrated Air Defence Weapon System दर्शाता है कि भारत अब रक्षा में केवल प्रतिक्रिया नहीं बल्कि प्रो-एक्टिव सुरक्षा ढाँचा खड़ा कर रहा है। मिसाइल और ड्रोन युद्ध की नई चुनौतियों के बीच यह प्रणाली भारत को क्षेत्रीय स्तर पर एक एयर-डिफ़ेंस पॉवर बनाती है। इसके अलावा Integrated Air Drop Test-1 ने दिखाया कि भारत अब सिर्फ़ सैटेलाइट लॉन्च करने वाला देश नहीं रहा, बल्कि मानव अंतरिक्ष अभियान के नए युग में प्रवेश कर रहा है। रक्षा और अंतरिक्ष दोनों ही क्षेत्रों में यह प्रगति भारत की आत्मनिर्भरता और वैश्विक शक्ति संतुलन में उसकी बढ़ती भूमिका का संकेत देती है।

बहरहाल, दो दिनों में हुए ये दो बड़े परीक्षण— DRDO का IADWS और ISRO का IADT-1—भारत की रक्षा शक्ति और अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा के प्रतीक हैं। एक ओर यह दुश्मन के हवाई खतरों को नाकाम करने की क्षमता बढ़ाता है, तो दूसरी ओर यह भारतीयों को अंतरिक्ष की नई सीमाओं तक पहुँचाने का रास्ता खोलता है। भारत अब केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करने वाला देश नहीं, बल्कि भविष्य के स्पेस-फेयरिंग नेशन के रूप में उभर रहा है।

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