LAC पर मजबूत सैन्य ढाँचा बना चुका है China, 150 KM पीछे हटा तो भी 3 घंटे में वापस आ सकता है

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हम आपको बता दें कि चीनी सेना की संयुक्त हथियार ब्रिगेड, जिनमें प्रत्येक में 4,500–5,000 सैनिक टैंकों, आर्टिलरी, आर्मर्ड वाहन और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों से लैस होते हैं, कई इलाकों में अब भी अग्रिम मोर्चे पर तैनात हैं।

भारत और चीन के बीच हाल के दिनों में संवाद की प्रक्रिया तेज़ हुई है। डि-एस्केलेशन की बात हो रही है, सीमा विवाद को शांतिपूर्वक सुलझाने की कोशिशें चल रही हैं और उच्च-स्तरीय राजनीतिक व सैन्य संवाद भी सक्रिय हुए हैं। यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चीन यात्रा पर जाने वाले हैं। देखा जाये तो यह सब निश्चित रूप से सकारात्मक संकेत हैं, लेकिन भारत के लिए यह अत्यंत सावधानी बरतने का भी समय है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि चीन ने पिछले पाँच वर्षों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर व्यापक सैन्य बुनियादी ढाँचा तैयार कर लिया है। बताया जा रहा है कि एलएसी पर सड़कें, पुल, सुरंगें और सैनिकों के लिए आवासीय ढांचे बनाये गये हैं जिससे पीएलए (PLA) की टुकड़ियाँ आसानी से 100–150 किलोमीटर पीछे हटकर भी 2–3 घंटे में अग्रिम चौकियों पर वापस लौट सकती हैं। दूसरी ओर भारतीय सेना के पास अभी वैसा त्वरित गतिशीलता का ढांचा नहीं है। यही असमानता किसी भी वार्ता और समझौते में भारत के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा जोखिम बनती है।

हालाँकि पिछले वर्ष देपसांग और डेपचोक जैसे विवादित क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी के बाद स्थिति कुछ स्थिर हुई है और दोनों सेनाओं की समन्वित गश्त जारी है, लेकिन आपसी विश्वास की कमी अभी भी गहरी है। अप्रैल–मई 2020 की घुसपैठ के बाद से भारत और चीन की सेनाएँ भारी हथियारों के साथ LAC पर तैनात हैं। इस बीच चीनी सेना की सैन्य तैयारियों और ढाँचागत विस्तार में कोई कमी नहीं आई है, जिससे भारत को लगातार चौकन्ना रहना पड़ रहा है।

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हम आपको बता दें कि रिपोर्टों के अनुसार, चीनी सेना की संयुक्त हथियार ब्रिगेड, जिनमें प्रत्येक में 4,500–5,000 सैनिक टैंकों, आर्टिलरी, आर्मर्ड वाहन और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों से लैस होते हैं, कई इलाकों में अब भी अग्रिम मोर्चे पर तैनात हैं। कुछ ब्रिगेड भले ही 100 किमी पीछे हट चुकी हों, लेकिन यह पीछे हटना स्थायी नहीं माना जा सकता। इसके विपरीत भारत के पास सीमित ढाँचागत सुविधाएँ होने से त्वरित प्रतिक्रिया की क्षमता अपेक्षाकृत धीमी है। यही वजह है कि किसी भी डि-एस्केलेशन वार्ता में इस असमानता को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।

हम आपको बता दें कि दोनों देशों ने सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए मौजूदा कूटनीतिक और सैन्य वार्ता तंत्र को और मज़बूत करने का निर्णय लिया है। इसके तहत अब पूर्वी (सिक्किम, अरुणाचल) और मध्य (उत्तराखंड, हिमाचल) सेक्टरों में "जनरल स्तर की बैठक प्रणाली" शुरू करने पर सहमति बनी है। पश्चिमी (लद्दाख) क्षेत्र में पहले से ही भारतीय 14 कोर कमांडर और दक्षिण शिनजियांग सैन्य जिले के प्रमुख के बीच संवाद तंत्र मौजूद है। बताया जा रहा है कि भारतीय पक्ष से मध्य क्षेत्र में बरेली स्थित उत्तर भारत क्षेत्र (UB Area) के लेफ्टिनेंट जनरल और पूर्वी क्षेत्र में दीमापुर स्थित 3 कोर या तेजपुर स्थित 4 कोर के लेफ्टिनेंट जनरल वार्ता में शामिल हो सकते हैं।

हम आपको बता दें कि भारत के लिए फिलहाल सबसे अहम मुद्दा उन "नो पेट्रोल बफर जोन" का समाधान है, जो 2020–2022 के बीच हुए समझौतों में बने थे। ग़लवान, पैंगोंग झील का उत्तरी किनारा, कैलाश रेंज और गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स क्षेत्र में 3–10 किमी तक फैले ये बफर ज़ोन अस्थायी रूप से बनाए गए थे, परंतु अब तक इन्हें हटाने की दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। चूँकि ये क्षेत्र भारत की दावेदारी वाली ज़मीन पर आते हैं, इसलिए भारत का स्पष्ट लक्ष्य गश्त अधिकारों की बहाली होना चाहिए।

देखा जाये तो भारत को केवल सीमा सुरक्षा पर ही नहीं, बल्कि समुद्री सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और आर्थिक मोर्चों पर भी रणनीतिक तैयारी रखनी होगी। चीन की व्यापक रणनीति को ध्यान में रखते हुए भारत को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। साथ ही भारत को केवल चीन से रिश्तों पर निर्भर न रहते हुए अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के साथ भी अपने रणनीतिक साझेदारी को संतुलित रखना होगा, ताकि किसी एक पक्ष पर अत्यधिक निर्भरता न हो। भारत-चीन संबंधों में संवाद और शांति का रास्ता स्वागतयोग्य है, लेकिन यह राह लंबी और पेचीदा है। भारत को "विश्वास करो लेकिन परखो" की नीति अपनानी होगी— जहाँ संवाद जारी रहे, लेकिन सुरक्षा और रणनीतिक तैयारी में कोई ढील न दी जाए।

बहरहाल, डि-एस्केलेशन की प्रक्रिया कूटनीतिक स्तर पर शांति का संकेत ज़रूर देती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि LAC पर सैन्य संतुलन चीन के पक्ष में झुका हुआ है। भारत को न केवल सतर्क रहना होगा, बल्कि सीमा क्षेत्रों में सड़क, सुरंग और हवाई पट्टी जैसी आधारभूत सुविधाओं का त्वरित विस्तार करना होगा। क्योंकि भरोसा भले ही धीरे-धीरे बन सकता हो, लेकिन सुरक्षा की गारंटी केवल सामरिक क्षमता और तत्परता से ही मिल सकती है।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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