आर्थिक मंदी पर सुब्रमण्यम स्वामी ने PM मोदी से कहा- सच्चाई सुनने का स्वभाव विकसित करें
स्वामी ने एतिहासिक आर्थिक सुधारों के लिये नरसिंह राव की भूमिका को रेखांकित करते हुये कहा कि मनमोहन सिंह वित्त मंत्री रहते जितना कुछ कर पाये प्रधानमंत्री रहते हुये आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाये।
मुंबई। केन्द्र में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी के नेता और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सलाह दी है कि उन्हें अप्रिय सच्चाई सुनने का स्वभाव विकसित करना चाहिये और यदि वह अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकालना चाहते हैं तो उन्हें अपनी सरकार के अर्थशास्त्रियों को ‘‘डराना’’बंद करना चाहिये। स्वामी ने कहा, ‘‘जिस तरह से मोदी सरकार चला रहे हैं उस तौर तरीके में बहुत कम लोग ही तय सोच के दायरे से बाहर निकल सकते हैं। उन्हें लोगों को इसके लिये प्रोत्साहित करना चाहिये कि वे उनके सामने कह सकें कि नहीं यह नहीं हो सकता है। लेकिन मुझे लगता है कि वह अभी इस तरह की सोच विकसित नहीं कर पाये हैं।’’
@Swamy39 Sir brilliant speech at Mumbai, audience was really thrilled today, thanks to @suchetadalal for organising and inviting. #economist #resetbooklaunch #BSE #RESET pic.twitter.com/9nQLvkjDdc
— Himanshu (Dobby) Goyal (@himgoyal) September 30, 2019
सत्ताधारी दल के राज्यसभा सदस्य की तरफ से ये टिप्पणियां ऐसे समय आईं हैं जब देश की आर्थिक वृद्धि छह साल के निम्न स्तर पांच प्रतिशत पर आ गई है और सरकार इस सुस्ती से बाहर निकलने के लिये कई गैर- परंपरागत उपाय कर रही है। सरकार ने हाल ही में कंपनियों के लिये कर दर में बड़ी कटौती की है। सुब्रमण्यम स्वामी ने अर्थव्यवस्था में मौजूदा संकट के लिये नोटबंदी को भी दोषी ठहराया है। इस मामले में उन्होंने खासतौर से रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय की भूमिका पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि इन्होंने वास्तविक मुद्दों को नहीं उठाया और न ही ठीक से तैयारी की। इसके साथ ही उन्होंने माल एवं सेवाकर (जीएसटी) को जल्दबाजी में लागू करने को भी अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति के लिये जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने यह भी कहा कि उच्च वृद्धि के लिये कौन सी नीतियों की जरूरत है सरकार उसे नहीं समझ पाई हैं। स्वामी यहां एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘आज हमें ऐसे तरीकों की जरूरत है जिसमें हमारी अर्थव्यवस्था के लिये एक अल्पकालिक, एक मध्यम अवधि और एक दीर्घ अवधि की नीति होनी हो। लेकिन आज ऐसा नहीं है। मुझे लगता है कि जो भी अर्थशास्त्री सरकार ने रखे हैं वे इतने डरे हुये हैं कि सच्चाई प्रधानमंत्री के समक्ष नहीं रख सकते हैं, जबकि प्रधानमंत्री का ध्यान खुद छोटी- परियोजनाओं पर है।’’
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उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री का ध्यान छोटे और एकतरफा मुद्दों पर है जैसे कि गरीब महिलाओं को खाने पकाने की गैस वितरण वाली उज्ज्वला योजना। लेकिन उन्होंने इस मौके पर बहुपक्षीय नजरिया अपनाने की जरूरत पर जोर दिया जो कि विभिन्न पहलुओं को छुये। सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि ऐसा जरूरी नहीं है कि अर्थशास्त्र का ज्ञाता प्रधानमंत्री हो। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव को याद करते हुये कहा कि उनके पास मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाला वित्त मंत्रालय था जिसने 1991 के सुधारों को आगे बढ़ाया। स्वामी ने एतिहासिक आर्थिक सुधारों के लिये नरसिंह राव की भूमिका को रेखांकित करते हुये कहा कि मनमोहन सिंह वित्त मंत्री रहते जितना कुछ कर पाये प्रधानमंत्री रहते हुये आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाये।
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