पृथ्वी के भीतर भी बसती है एक अलग दुनिया, रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों को मिले चौंकाने वाले साक्ष्य
ऐसा अनुमान है कि महासागरों के नीचे की परत लगभग पाँच किलोमीटर मोटी हो सकती है। लेकिन यह छोटी सी परत कई प्रकाश वर्षों के समान भी हो सकती है, क्योंकि इसके बारे में हमारा ज्ञान बहुत कम है। पृथ्वी के आवरण में मौजूद चट्टानों का महासागरों के निर्माण में योगदान का संकेत मिलता है।
पृथ्वी की संरचना के विषय मे हाल ही के दिनों में हो रहे शोध में कुछ ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं जो मानव जाति के ज्ञान में एक नया अध्याय तो जोड़ते ही है साथ ही सनातन धर्म में बताए गए पाताल लोक को एक वैज्ञानिक आधार भी प्रदान करते हैं। अभी तक की रिसर्च के आधर पर वैज्ञानिक ये मानते थे कि हमारी धरती का केंद्र इनर कोर ठोस है, जिसके बाहर तरल मौजूद है, लेकिन नई रिसर्च में सामने आया है कि यह पूरी तरह से ठोस नहीं है। नए शोध के अनुसार पृथ्वी का इनर कोर, जिसे भारतीय लोग पाताल लोक कहते हैं। उसकी पहली परत ठोस है, तो उसके बाद दूसरी परत कुछ नरम है, वहीं तीसरी परत में तरल धातु होती है।
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पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय मे जितने भी सोध हुए हैं उनसे पता चलता है कि ये काफी रहस्यमय और जटिल है। नए शोध ने व्यज्ञानिकों के उस दावे को गलत साबित कर दिया है जिनमे बताया गया था कि पृथ्वी का आतंरिक हिस्सा यानी केंद्र खोखला है।नई रिसर्च में सामने आया कि हमारा ग्रह खोखला नहीं है।
पृथ्वी के केंद्र में हो सकती है नई दुनिया
भूवैज्ञानिक बता रहे हैं कि उन्होंने भूकंपों से उठने वाली भूगर्भीय तरंगों का अध्यन किया। उन्होंने बताया कि अध्ययन में पता चला कि कुछ तरंगे इनर कोर से टकराकर वापस लौट आईं, जबकि कुछ उसे पार कर गईं। अगर पूरी कोर ठोस होती तो सभी तरंगों को वापस लौटना था। उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि पृथ्वी के भीतर भी एक नई दुनिया हो सकती है। भूवैज्ञानिक रेट बटलर के अनुसार सतह स्व 150 मील तक कठोर नरम और तरल धातुओं की परतें हैं। वैज्ञानिक ये भी दावा कर रहे हैं कि पृथ्वी के कोर में एक चुम्बकीय क्षेत्र है जो पृथ्वी को रेगिस्तान नहीं बनने देता। अभी तक शोध में जो बातें सामने आती हैं उन अनुसार अभी तक कोई भी इंसान या मशीन उस गहराई तक जाने में सक्षम नही है।
रिसर्च से सनातन धर्म ग्रंथों के कथानक को मिला वैज्ञानिक आधार
वैदिक सनातन धर्म के सभी ग्रंथों में पाताल लोक से जुड़ी कथाओं का वर्णन है पर आधुनिक विज्ञान पृथ्वी की सतह के नीचे जीवन की बात को नकारता रहा है। ताजा रिसर्च ने वैज्ञानिको के दावों को गलत साबित करते हुए न सिर्फ नए शोध के लिए रास्ता खोला है बल्कि भारतीय धर्म ग्रंथों को काल्पनिक बताने वालों को भी गलत साबित कर दिया है
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नई रिसर्च ने वैज्ञानिकों के बीच दिया नए विमर्श को जन्म
पृथ्वी का ऊपरी हिस्सा जितना रहस्यों से भरा हुआ है, उससे भी ज्यादा रहस्य पृथ्वी के आंतरिक हिस्से में हैं। शायद यहां कोई नई दुनिया हो? या फिर पृथ्वी का आंतरिक हिस्सा कई ऐसे तरल पदार्थों से भरा हो, जिन्हें हम अभी तक जानते ही न हों। इन सभी बातों को ले कर वैज्ञानिकों में अलग अलग मत हैं। जिनको लेकर शोध हो रहे हैं।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना तीन प्रमुख परतों से हुई है।
ऊपरी सतह भूपर्पटी यानी क्रस्ट, मध्य स्तर मैंटल और आंतरिक और बाहरी स्तर- क्रोड
इनमें से बाहरी क्रोड तरल अवस्था में है। यह आंतरिक क्रोड के साथ क्रिया कर पृथ्वी में चुंबकीय क्षेत्र पैदा करता है। ऐसा अनुमान है कि महासागरों के नीचे की परत लगभग पाँच किलोमीटर मोटी हो सकती है। लेकिन यह छोटी सी परत कई प्रकाश वर्षों के समान भी हो सकती है, क्योंकि इसके बारे में हमारा ज्ञान बहुत कम है। पृथ्वी के आवरण में मौजूद चट्टानों का महासागरों के निर्माण में योगदान का संकेत मिलता है। इन रहस्यमयी चट्टानों में पानी के अंश भी मिलता है। तमाम जटिलता को छोड़ कर अगर सामान्य बात की जाए तो जहाँ जल है वहाँ जीवन भी है।
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