भारत को लूटने वाले Britain को PM Modi ने व्यापार समझौते के लिए किया मजबूर, लंदन की धरती से खालिस्तानियों और भगोड़ों पर भी किया प्रहार

FTA के प्रमुख आयाम और चुनौतियाँ देखें तो इसके जरिए भारत को ब्रिटेन के वस्त्र, दवा, आईटी, ऑटो पार्ट्स और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में बेहतर बाजार पहुंच मिलेगी, वहीं ब्रिटेन के लिए भारतीय शिक्षा, कानूनी सेवाओं और शराब के क्षेत्र में प्रवेश के नए अवसर खुलेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा आज तब ऐतिहासिक मोड़ पर पहुँची, जब भारत और यूनाइटेड किंगडम (U.K.) के बीच स्वतंत्र व्यापार समझौते (Free Trade Agreement – FTA) पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर किए गए। ब्रिटिश प्रधानमंत्री केयर स्टारमर के साथ चेकर्स एस्टेट में हुई इस उच्चस्तरीय भेंटवार्ता ने न केवल दोनों देशों के रणनीतिक रिश्तों को नई दिशा दी है, बल्कि द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और तकनीकी सहयोग में एक नए युग की शुरुआत कर दी है।
हम आपको बता दें कि यह FTA, ब्रिटेन के लिए यूरोपीय संघ से बाहर आने के बाद अब तक का सबसे बड़ा और आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय व्यापार समझौता माना जा रहा है। भारत की ओर से वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन की ओर से उनके समकक्ष जोनाथन रेनॉल्ड्स ने दोनों प्रधानमंत्रियों की उपस्थिति में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। ब्रिटिश सरकार के अनुसार, यह समझौता सालाना लगभग 34 अरब डॉलर का अतिरिक्त द्विपक्षीय व्यापार उत्पन्न करेगा। अभी भारत और ब्रिटेन के बीच लगभग 60 अरब डॉलर का व्यापार होता है, जिसमें भारत को सकारात्मक व्यापार संतुलन प्राप्त है। इस समझौते से 2030 तक यह आंकड़ा दोगुना होने की संभावना है।
हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी और केयर स्टारमर की यह मुलाकात केवल व्यापार तक सीमित नहीं रही। “U.K.-India Vision 2035” दस्तावेज के उद्घाटन के माध्यम से दोनों देशों ने आने वाले वर्षों के लिए एक दीर्घकालिक रणनीतिक खाका प्रस्तुत किया है, जिसमें तकनीक, रक्षा सहयोग, जलवायु परिवर्तन, निवेश, और प्रवास जैसे मुद्दों पर साझेदारी को गहराने की बात की गई है।
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FTA के प्रमुख आयाम और चुनौतियाँ देखें तो इसके जरिए भारत को ब्रिटेन के वस्त्र, दवा, आईटी, ऑटो पार्ट्स और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में बेहतर बाजार पहुंच मिलेगी, वहीं ब्रिटेन के लिए भारतीय शिक्षा, कानूनी सेवाओं और शराब के क्षेत्र में प्रवेश के नए अवसर खुलेंगे। हालांकि, इस समझौते से MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) और कृषि क्षेत्र पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएं भी उठ रही हैं। लेकिन वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने इसे "दो विशाल अर्थव्यवस्थाओं के बीच न्यायसंगत और महत्वाकांक्षी व्यापार का नया मानक" बताया है। बताया जा रहा है कि इस व्यापार समझौते को लागू होने में करीब एक वर्ष का समय लग सकता है।
देखा जाये तो यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब वैश्विक व्यापार अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों और टैरिफ-नीति के चलते वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे समय में भारत-ब्रिटेन FTA न केवल दोनों देशों के लिए आर्थिक संबल का काम करेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार सहयोग को एक स्थायी दिशा भी देगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समझौते की तारीफ करते हुए कहा, "ये समझौता मात्र आर्थिक साझेदारी नहीं है बल्कि साझा समृद्धि की योजना है...ये समझौता भारत के युवाओं, किसानों, मछुआरों और MSME क्षेत्र के लिए विशेष रूप से लाभकारी सिद्ध होगा।" वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने भी इस समझौते की सराहना की।
हम आपको यह भी बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा केवल द्विपक्षीय व्यापार और रणनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं रही, बल्कि इस यात्रा ने भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा और विदेशों में सक्रिय भारत विरोधी तत्वों पर शिकंजा कसने की दिशा में भी महत्वपूर्ण प्रगति की। विशेष रूप से इस यात्रा के दौरान खालिस्तानी चरमपंथियों और नीरव मोदी तथा ललित मोदी जैसे आर्थिक भगोड़ों के विरुद्ध कार्रवाई के संदर्भ में जो संकेत मिले, वे भारत की आक्रामक और परिणामोन्मुखी विदेश नीति का प्रतीक हैं।
हम आपको बता दें कि ब्रिटेन में खालिस्तानी गतिविधियों की समस्या कोई नई नहीं है। लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग पर हमला, ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ जैसे नारों के साथ निकाली गई रैलियाँ और सिख फॉर जस्टिस जैसे संगठनों की खुली गतिविधियाँ पिछले वर्षों में चिंता का विषय रही हैं। मोदी की इस यात्रा में भारत ने स्पष्ट शब्दों में ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाया कि ऐसे तत्व न केवल भारत की संप्रभुता और एकता के लिए खतरा हैं, बल्कि ब्रिटेन की आंतरिक सुरक्षा और सामाजिक समरसता के लिए भी खतरा हैं। प्रधानमंत्री मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में भारत ने खालिस्तानी गतिविधियों पर रोक लगाने की जरूरत को प्राथमिकता दी। परिणामस्वरूप, ब्रिटेन ने संकेत दिया है कि वह भारत की चिंताओं को गंभीरता से लेगा और संबंधित समूहों की गतिविधियों पर कठोर निगरानी रखेगा।
इसके अलावा, नीरव मोदी, ललित मोदी और विजय माल्या जैसे आर्थिक अपराधियों की ब्रिटेन में मौजूदगी भारत के लिए वर्षों से चुनौती रही है। हालांकि भारत ने इन मामलों में पहले ही प्रत्यर्पण की कानूनी प्रक्रिया प्रारंभ कर दी थी, किंतु मोदी की इस यात्रा ने इन प्रयासों को नई गति और दिशा दी। भारत ने ब्रिटेन को यह संदेश दिया कि आर्थिक अपराधियों को शरण देना उसके न्यायिक तंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। यह भी बताया गया कि भारत इन भगोड़ों के प्रत्यर्पण के लिए सभी जरूरी कानूनी, राजनयिक और साक्ष्य संबंधी दस्तावेज उपलब्ध करा चुका है। ऐसी भी खबरें सामने आईं कि ब्रिटेन सरकार अब इन मामलों में 'fast-track legal cooperation mechanism' को अपनाने पर विचार कर रही है। हम आपको बता दें कि नीरव मोदी की प्रत्यर्पण प्रक्रिया पहले से ही अंतिम चरण में है, जबकि ललित मोदी पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) और सीबीआई की रिपोर्टों को अब ब्रिटेन में न्यायालय के समक्ष और प्रभावी ढंग से रखा जा रहा है।
इस यात्रा में एक नया आयाम यह जुड़ा कि भारत और ब्रिटेन के बीच सुरक्षा और खुफिया सहयोग को और गहरा करने पर सहमति बनी। इसका उद्देश्य है- आतंकवादी वित्तपोषण और अलगाववादी आंदोलनों की फंडिंग पर नियंत्रण। दोनों देशों की एजेंसियों के बीच रीयल टाइम इंटेलिजेंस शेयरिंग। साइबर सुरक्षा, डिजिटल निगरानी और संदिग्ध व्यक्तियों की ट्रैकिंग में संयुक्त रणनीति। साथ ही यह भारत की "zero tolerance towards terrorism and economic fugitives" की नीति को वैश्विक सहयोग से जोड़ने की दिशा में भी बड़ा कदम है। हम आपको यह भी बता दें कि लंदन पहुँचने पर प्रधानमंत्री का भारतीय समुदाय ने गर्मजोशी से स्वागत किया था।
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