TMC की शहीद रैली में तो प्रशांत किशोर को जाना ही नहीं था

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तृणमूल कांग्रेस नेता ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रशांत किशोर के रैली में शामिल होने की कोई भी संभावना नहीं थी। शामिल होने की अटकलें तो मीडिया लगा रही।

चुनावी रणनीतिकार और जनता दल (यूनाइटेड) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर आखिर तृणमूल कांग्रेस की शहीद दिवस रैली में शामिल क्यों नहीं हुए? यह सवाल इस वक्त हर एक राजनीतिक दलों के मन में उपज रहा है। क्योंकि मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि प्रशांत किशोर इस रैली में जरूर शामिल होंगे। फिर ऐसा क्या हुआ कि ये दावे धरे के धरे रह गए। जब इस सवाल का जवाब खंगाला गया तो तृणमूल नेता का एक बयान सामने आया।

तृणमूल कांग्रेस नेता ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रशांत किशोर के रैली में शामिल होने की कोई भी संभावना नहीं थी। शामिल होने की अटकलें तो मीडिया लगा रही। इसके साथ ही टीएमसी नेता ने कहा कि उनका शामिल होना थोड़ा अस्वभाविक भी था क्योंकि वह जदयू के उपाध्यक्ष हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के साथ गठबंधन का हिस्सा हैं।

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कैसे शुरू हुई प्रशांत किशोर की ममता से मुलाकात

आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की सरकार बनाने वाले पीके यानी की प्रशांत किशोर की छवि चुनावी रणनीति को पार लगाने वाली आंकी जाती है। शायद इसीलिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने प्रशांत किशोर से मुलाकात की और बाद में फिर ममता बनर्जी से सचिवालय में मुलाकात कराई। यह मुलाकात करीब 90 मिनट तक चली थी। उसी वक्त से यह कहा जाने लगा कि 2021 में ममता बनर्जी को हैट्रिक दिलाने में प्रशांत किशोर अहम भूमिका निभाएंगे।

दरअसल लोकसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें हासिल हुईं थीं जो तृणमूल कांग्रेस से सिर्फ 4 सीटें ही कम हैं। इसका मतलब है कि साल 2014 में ममता को मिली 34 सीटों का आंकड़ा घटकर 2019 में 22 रह गया। जिसकी वजह से ममता बनर्जी बौखला गई और ईवीएम पर ढीकरा फोड़ने लगीं।

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शाह के कहने पर नीतीश ने PK को किया था शामिल

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं दावा किया था कि उन्हें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जद (यू) में शामिल कर लेने का दो बार सुझाव दिया था। किशोर को सितंबर 2018 में जद(यू) में शामिल किया गया था। बात प्रशांत किशोर की हो रही है तो यह सभी जानते हैं कि उनका जुड़ाव भाजपा के साथ है और शाह के कहने पर ही नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी में शामिल भी किया तो क्या भाजपा को परेशानी नहीं हो रही होगी कि प्रशांत किशोर अब ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीति बनाएंगे।

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रशांत किशोर द्वारा ममता बनर्जी के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा की रणनीति बनाने से भाजपा को परेशानी तो होगी ही लेकिन वह इसका खुलकर विरोध नहीं करेंगे। ऐसे में वह अंदर ही अंदर नीतीश कुमार को घेरने के लिए रणनीति जरूर बना सकते हैं। लेकिन एक पक्ष ऐसा भी रहा जब एक निजी चैनल ने भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से सवाल किया था तब उन्होंने कहा था कि अमित शाह से बड़ा कोई भी चुनावी रणनीतिकार नहीं है और रही बात प्रशांत किशोर की तो अमित शाह उस स्कूल के प्रिंसिपल हैं जहां पर प्रशांत किशोर अभी पढ़ाई कर रहे हैं।

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नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर के काम से छाड़ा था पलड़ा

प्रशांत किशोर के कामकाज को लेकर जब नीतीश कुमार से सवाल जवाब किए गए थे तो उन्होंने भी कहा था कि प्रशांत किशोर के नेतृत्व में एक संगठन काम कर रहा है और उनकी कम्पनी जो काम करती है उसके बारे में वहीं बता पाएंगे। लेकिन मैं यह जरूर बता सकता हूं कि उनके काम से हमारी पार्टी का कोई लेना देना नहीं है।

प्रशांत किशोर के नाम से कहीं जेडीयू को न हो जाए खतरा !

प्रशांत किशोर द्वारा ममता बनर्जी के लिए काम किए जाने की वजह से कहीं भाजपा नीतीश कुमार को तो निशाने पर नहीं ले ले। क्योंकि नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर द्वारा ममता बनर्जी के काम को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी और कुछ कहा भी तो यह कि उनके काम से हमारी पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में भाजपा अंदर ही अंदर से नीतीश कुमार को घेरने का काम कर सकती है क्योंकि लोकसभा चुनाव संपन्न हो जाने के बाद अब पार्टी को बिहार की राजनीतिक दशा की उतनी चिंता नहीं है जितनी चुनावों से पहले थी। चुनावों से पहले ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कहीं महागठबंधन सत्ताधारी पार्टी के अरमानों पर पानी न फेर दे इसलिए भाजपा ने जदयू और लोजपा को सीटें देने में ज्यादा आनाकानी नहीं की।

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लोकसभा चुनाव के नतीजें सामने आने के बाद यह तो स्पष्ट हो गया कि बिहार में लालू राज का खात्मा हो चुका है क्योंकि नजीतें बताते हैं कि राजग ने 40 में 39 सीटें जीतकर लालू के लाल को बिहार की राजनीति से गायब होने की वजह दे दी थी। ऐसे में अब बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा जद(यू) को मनचाही सीट तो नहीं देने वाली और इस बात का अंदाजा अब नीतीश कुमार को भी हो गया होगा। कुर्सी बचाने की लड़ाई बिहार में भी देखने को मिल सकती है और ममता बनर्जी ने तो प्रशांत किशोर को अपनी सत्ता बचाने के लिए ही बुलाया है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि तकरार को दोस्ती में बदलने वाले प्रशांत किशोर इस बार कौन सी रणनीति अपनाने वाले हैं। 

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