Mahaparinirvan Diwas | आंबेडकर की पुण्यतिथि पर पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि, कहा- 'लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रेरित किया'

प्रधानमंत्री मोदी ने महापरिनिर्वाण दिवस पर बाबासाहेब आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए न्याय, समानता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनके अमूल्य योगदान को याद किया। उन्होंने आंबेडकर के आदर्शों को विकसित भारत के निर्माण की दिशा में मार्गदर्शक बताया।
डॉ. बी. आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि हर साल 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है, ताकि राष्ट्र के लिए उनकी बेहतरीन सेवाओं को याद किया जा सके। परिनिर्वाण, जिसे बौद्ध धर्म के मुख्य सिद्धांतों और लक्ष्यों में से एक माना जाता है, एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है मृत्यु के बाद मुक्ति या आज़ादी। इसी तरह से डॉ. बी. आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि को भी इसी तरह से मनाया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को भारतीय संविधान के निर्माता बाबासाहेब आंबेडकर की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा, “महापरिनिर्वाण दिवस पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को याद करता हूं। न्याय, समानता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति उनकी दूरदर्शी नेतृत्व क्षमता और अटूट प्रतिबद्धता हमारे राष्ट्र का निरंतर मार्गदर्शन करती है।”
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प्रधानमंत्री ने कहा कि आंबेडकर ने पीढ़ियों को मानवीय गरिमा बनाए रखने और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रेरित किया। मोदी ने कहा, “विकसित भारत बनाने की दिशा में काम करते हुए उनके आदर्श हमारा मार्गदर्शन करते हैं।” प्रधानमंत्री ने उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन के साथ संसद भवन परिसर में स्थित प्रेरणा स्थल में आंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर पुण्यतिथि 2024: 6 दिसंबर को मनाया जाने वाला महापरिनिर्वाण दिवस, भारतीय संविधान के जनक डॉ. बी.आर. अंबेडकर की पुण्यतिथि है। डॉ. अंबेडकर एक प्रमुख नेता थे जिन्होंने आधुनिक भारत को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक न्यायविद, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और राजनीतिज्ञ थे। भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष के तौर पर, डॉ. अंबेडकर ने सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास किया। संविधान सभा में उनके योगदान ने एक लोकतांत्रिक और समावेशी भारत की नींव रखी।
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डॉ. अंबेडकर ने जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में पहले कानून और न्याय मंत्री के रूप में भी काम किया, जहाँ उन्होंने महत्वपूर्ण कानूनी सुधारों पर काम किया। बाद में, उन्होंने हिंदू धर्म की जाति-आधारित असमानताओं को अस्वीकार करते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया, और दलित बौद्ध आंदोलन के लिए एक मार्गदर्शक व्यक्ति बन गए, जिसने लाखों लोगों को सामाजिक समानता और सम्मान के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
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