राफेल सौदा: सुप्रीम कोर्ट ने दूसरी बार दी मोदी सरकार को क्लीन चिट
शीर्ष अदालत ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे के मामले में 14 दिसंबर, 2018 के निर्णय पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकायें खारिज करते हुये कहा कि इनमे कोई दम नहीं है।
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को भारतीय वायुसेना के लिये फ्रांस की कंपनी दसाल्ट एविऐशन से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीदारी के मामले में मोदी सरकार को क्लीन चिट देते हुये इस सौदे में कथित संज्ञेय अपराध के लिये प्राथमिकी दर्ज कराने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
Supreme Court dismisses Rafale review petitions against its December 14, 2018 judgement upholding the 36 Rafale jets' deal. pic.twitter.com/DCcgp4yFiH
— ANI (@ANI) November 14, 2019
शीर्ष अदालत ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे के मामले में 14 दिसंबर, 2018 के निर्णय पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकायें खारिज करते हुये कहा कि इनमे कोई दम नहीं है। इस फैसले में न्यायालय ने कहा कि 36 राफेल लड़ाकू विमान प्राप्त करने के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है। न्यायालय इन दलीलों से संतुष्ट नहीं था कि उसने 58,000 करोड़ रुपए के करार के बारे में विवाद के बिन्दुओं की जांच के बगैर ही समय से पहले फैसला कर दिया। पुनर्विचार याचिकायें खारिज होने का तात्पर्य राफेल सौदे के संबंध में शीर्ष अदालत द्वारा मोदी सरकार को दूसरी बार क्लीन चिट देना है।प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने कहा, ‘‘हम इसे एक निष्पक्ष कथन इस वजह से नहीं समझते क्योंकि इस मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता सहित सभी अधिवक्ताओं ने इन तीनों पहलुओं पर विस्तार से अपनी बात रखी।’’ पीठ ने कहा कि इसमे संदेह नहीं कि प्राथमिकी दर्ज करने और आगे जांच करने का अनुरोध किया गया था लेकिन एक बार जब हमने इन तीनों पहलुओं पर इनके गुण-दोष के आधार करने के बाद याचिकाकर्ताओं के इस आग्रह पर कोई निर्देश देना उचित नहीं समझा था जिसके दायरे मे प्राथिमकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध स्वत: ही आ जाता है।
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पीठ ने कहा, ‘‘पुनर्विचार आवेदनों पर उस समय तक विचार नहीं किया जा सकता जब तक उपलब्ध रिकार्ड में ‘गलती’ नहीं हो। ’’ पीठ ने कहा कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि वह विमानों के लिये करार से संबंधित मामले पर विचार कर रही है जो काफी समय से अलग अलग सरकारों के समक्ष लटका हुआ था और इन विमानों की जरूरत को लेकर कभी कोई विवाद नहीं था। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि इन तीन पहलुओं से इतर - निर्णय लेने की प्रक्रिया, कीमत और ऑफसेट - वह भी एक सीमा तक, न्यायालय ने एक रोविंग जांच कराना उचित नहीं समझा।’’ शीर्ष अदालत ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण की पुनर्विचार याचिकाओं पर 10 मई को सुनवाई पूरी की थी। इनके अलावा, अधिवक्ता विनीत ढांढा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इन याचिकाओं में न्यायालय से 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया गया था। इन लड़ाकू विमान की कीमतों में अनियमितताओं के आरोपों के बारे में न्यायालय ने कहा कि उसने उपलब्ध तथ्यों के आधार पर खुद को संतुष्ट किया और वैसे भी कीमतें निर्धारित करना और कतिपय व्यक्तियों की महज ‘शंकाओं’ के आधार पर कार्रवाई इस न्यायालय का काम नहीं है। पीठ ने कहा, ‘‘कीमतों के बारे मे आंतरिक तंत्र स्थिति को देखेगा। दस्तावेजों के अवलोकन पर हमने पाया कि आप सेब और संतरे के बीच तुलना नहीं कर सकते। अत: बुनियादी विमान की कीमत की तुलना करनी होगा जो प्रतिस्पर्धात्मक रूप से मामूली कम थी।’’
पीठ ने कहा, ‘‘विमान में क्या शामिल किया जाये या नहीं और इसमें कितनी कीमत और जोड़ी जाये जैसे मुद्दों को फैसले के लिये सक्षम प्राधिकारियों पर छोड़ देना सबसे बेहतर होगा।’’ निर्णय लेने की प्रक्रिया के संबंध में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने हासिल किये गये कतिपय दस्तावेजों के आधार पर सामग्री विरोधाभासी होने की दलील दी। पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ताओं ने इस सौदे के प्रत्येक पहलू पर निर्धारण करने के लिये खुद को ही अपीली प्राधिकार मान लिया और वही करने के लिये न्यायालय को शामिल कर रहे हैं। न्यायमूर्ति कौल ने फैसला सुनाते हुये कहा कि न्यायाधीश इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आरोपों की बेवजह जांच का आदेश देना उचित नहीं है। न्यायमूर्ति जोसफ ने अलग फैसला लिखा। उन्होंने कहा कि वह न्यायमूर्ति कौल के मुख्य निर्णय से सहमत हैं लेकिन इसके कुछ पहलुओं पर उन्होंने अपने कारण लिखे हैं।शीर्ष अदालत ने 14 दिसंबर, 2018 को 58,000 करोड़ रूपए के लड़ाकू विमानों की खरीद से सबंधित इस सौदे में कथित अनियमिततओं की जांच के लिये दायर याचिकायें खारिज कर दी थीं।
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