अपने पुराने शोध कार्य को पुन: प्रकाशित करना साहित्यिक चोरी के समान होगा: यूजीसी

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आयोग ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को निर्देश दिया है कि पदोन्नति, चयन और शोध उपाधियां प्रदान करना आवदेक के प्रकाशित शोधकार्यों के मूल्यांकन के आधार पर होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पदोन्नति और चयन के लिए जमा किये गये दस्तावेजों उन्होंने पूर्व में उपयोग नहीं किया हो।

नयी दिल्ली।  विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने शिक्षाविदों और शोधार्थियों को आगाह किया है कि उनके द्वारा खुद के शोध कार्य को पुन: प्रकाशित करना या उसका पूर्व में उपयोग होने का उल्लेख किये बगैर किसी अन्य संदर्भ में इस्तेमाल करना साहित्यिक चोरी के समान होगा। आयोग ने विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को निर्देश दिया है कि पदोन्नति, चयन और शोध उपाधियां प्रदान करना आवदेक के प्रकाशित शोधकार्यों के मूल्यांकन के आधार पर होना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पदोन्नति और चयन के लिए जमा किये गये दस्तावेजों उन्होंने पूर्व में उपयोग नहीं किया हो। यूजीसी के सचिव रजनीश जैन ने विश्वविद्यालयों को लिखे पत्र में यह कहा है। यूजीसी ने किसी शोधार्थी द्वारा अपने शोध कार्य का पूर्व में उपयोग होने का उल्लेख किये बगैर किसी अन्य संदर्भ में उसका इस्तेमाल किये जाने को अपनी ही कृति की साहित्यिक चोरी के रूप में परिभाषित किया है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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