'बाप' शब्द पर बिहार विधानसभा में बवाल, भाई वीरेंद्र बोले- माफी नहीं मांगूंगा, डिप्टी सीएम का पलटवार

भाई वीरेंद्र के इतना कहते ही सदन का माहौल पूरी तरह से गरम हो गया। इसके बाद पक्ष और विपक्ष, दोनों के सदस्य आपस में ही भिड़ गए। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने सदन की कार्यवाही को स्थगित कर ही।
बिहार विधानसभा का मानसून सत्र चल रहा है। आज सत्र का तीसरा दिन था और कार्यवाही भारी हंगामे की भेंट चढ़ गया। स्पेशल इलेक्टोरल रिवीजन मुद्दे पर विपक्षी नेता तेजस्वी यादव के भाषण के दौरान सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक हो गई। इस दौरान राजद विधायक भाई वीरेंद्र के एक बयान पर हंगामा और बढ़ गया। दरअसल, तेजस्वी यादव सदन में बोल रहे थे। वही सरकार को निशाना साध रहे थे। हालांकि, इस दौरान सत्ता पक्ष के कुछ सदस्य बीच में शोर करने लगे। इसी बात पर राजद के विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा कि सदन किसी के बाप का नहीं है। विपक्ष को भी यहां पर अपनी बात रखने का पूरा अधिकार है।
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भाई वीरेंद्र के इतना कहते ही सदन का माहौल पूरी तरह से गरम हो गया। इसके बाद पक्ष और विपक्ष, दोनों के सदस्य आपस में ही भिड़ गए। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने सदन की कार्यवाही को स्थगित कर ही। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘इस सत्र के केवल तीन दिन ही बचे हैं। जो कुछ भी कहना है, वो चुनाव के समय कहिएगा।’’ यादव राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर बयान दे रहे थे, जिस पर सदन के नेता ने आपत्ति जताई। इसे लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच तीखी बहस हुई, जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव ने कार्यवाही अपराह्न दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
वहीं, मीडिया से बात करते हुए आरजेडी विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा कि मैंने जो भी कहा है, मैं उस पर कायम हूँ। मैंने कहा है कि सदन किसी की जागीर नहीं है। मैंने जो कहा, उसमें ग़लत क्या था? ये संसदीय भाषा है। इसके बाद मंत्री गाली-गलौज करने लगे। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मैं किस बात की माफ़ी मांगूँ? मैंने क्या ग़लत किया है?... क्या विजय सिन्हा हमारे नेता हैं? क्या वो हमारे मालिक हैं? वो मेरे सामने पैदा हुए हैं।
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उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि सिर्फ़ 2 दिन बचे हैं, इसलिए जनहित के सवालों को शांतिपूर्वक उठाने दिया जाए। लेकिन उनके नेता भाई वीरेंद्र ने कहा कि सदन किसी के बाप का है क्या? इस तरह वो सदन के अंदर गुंडा राज स्थापित करना चाहते हैं. वो भूल गए हैं कि ये 90 का दशक नहीं है। हमने उनसे कहा कि अपनी भाषा के लिए माफ़ी मांगें। अगर वो माफ़ी नहीं मांगते हैं तो ऐसे लोगों को सदन में बैठने का कोई हक़ नहीं है।
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