Saudamini Pethe : खुद बधिर होते हुए भी अदालतों में बधिरों की आवाज‘‘ बनने’’ के लिए चुना वकालत का पेशा
सौदामिनी ने बताया कि चूंकि वह शुरूआती सीख चुकी थीं, इसलिए उन्होंने बोलने और सुनने में सक्षम बच्चों के स्कूल में ही पढ़ाई की। उस समय तक वह बधिरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सांकेतिक नहीं जानती थीं। उन्होंने बीए करने के बाद वर्ष 2000 में मुंबई विश्वविद्यालय से एमए किया और कॉपी राइटिंग के अलावा कुछ परियोजनाओं पर काम किया और कुछ जगह पर नौकरी भी की।
नयी दिल्ली। किसी व्यक्ति में समाज के किसी खास तबके के लिए कुछ करने का जज्बा होना नयी बात नहीं है, लेकिन यदि कोई बधिर महिला अपनी सांकेतिक में यह बताए कि उन्होंने सिर्फ इसलिए कानून की पढ़ाई की क्योंकि उन्हें अदालतों में इंसाफ चाहने वाले बधिरों की ‘‘आवाज’’ बनना है तो उनके प्रति सम्मान की एक अलग ही भावना पैदा होती है। सौदामिनी पेठे दिल्ली विधिज्ञ परिषद में पंजीकरण कराने वाली पहली बधिर वकील हैं और उन्हें बधिरों को रोजमर्रा के जीवन में सुगम्यता दिलानी है ताकि उनको उन तमाम परेशानियों से दो चार न होना पड़े, जो खुद उन्होंने झेली हैं। सौदामिनी (45) ने इसी वर्ष फरीदाबाद के विधि और शोध संस्थान से एलएलबी की पढ़ाई की है और वह भारतीय सांकेतिक (आईएसएल) दुभाषिए के माध्यम से अदालतों में अपने मामलों पर बहस करेंगी।
उन्होंने बताया कि उन्होंने दिल्ली में वकालत पर एक कार्यशाला के दौरान पहली बार एक बधिर वकील को देखा, जो अमेरिका की ‘नेशनल एसोसिएशन ऑफ डेफ’ के सीईओ थे। उन्होंने बताया कि अमेरिका में 500 से ज्यादा बधिर वकील हैं। सौदामिनी का कहना है कि उनकी यह बात सुनकर उन्हें बहुत अचंभा हुआ और उन्होंने ठान लिया कि वह भी कानून की पढ़ाई करेंगी। अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि उनके माता पिता और छोटी बहन सुन और बोल सकते हैं, उनके पति बधिर हैं और उनका 15 साल का बेटा भी सुन बोल सकता है। वह बताती हैं कि नौ साल की उम्र तक वह भी सुन बोल सकती थीं, लेकिन फिर दिमागी बुखार के कारण वह एक महीने तक अस्पताल में रहीं और इसी दौरान किसी दवा के असर से उनकी सुनने की शक्ति जाती रही।
सौदामिनी ने बताया कि चूंकि वह शुरूआती सीख चुकी थीं, इसलिए उन्होंने बोलने और सुनने में सक्षम बच्चों के स्कूल में ही पढ़ाई की। उस समय तक वह बधिरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सांकेतिक नहीं जानती थीं। उन्होंने बीए करने के बाद वर्ष 2000 में मुंबई विश्वविद्यालय से एमए किया और कॉपी राइटिंग के अलावा कुछ परियोजनाओं पर काम किया और कुछ जगह पर नौकरी भी की। सौदामिनी ने बताया कि बधिर होने के कारण उन्हें कदम कदम पर परेशानियों का सामना करना पड़ा। वर्ष 2005 में उनकी शादी के बाद जीवन में काफी कुछ बदल गया और बच्चा होने के बाद तो उनके लिए जैसे मुश्किलें और भी बढ़ गईं। ऐसे में उन्होंने बधिरों से जुड़ी संस्थाओं से संपर्क किया और नोएडा डेफ सोसायटी से जुड़ गईं। उनका कहना है कि सोसायटी के माहौल में उन्हें एक नयी ऊर्जा मिली। वहां सब लोग बिना बोले ही सांकेतिक में खूब बात किया करते थे।
लिहाजा उन्होंने भी सांकेतिक सीखने का फैसला किया। सौदामिनी कहती हैं, ‘‘अपने जैसे लोगों से जुड़ने के लिए उनकी को जानना सबसे ज्यादा जरूरी था और मैंने जब इस को सीखना शुरू किया तो मुझे इससे प्यार हो गया। बधिरों से जुड़ी बहुत सी समस्याएं उस दिन समाप्त हो जाएंगी, जब ज्यादा से ज्यादा लोग संकेतों की इस खूबसूरत को सीख लेंगे। पुलिस थाने, अस्पताल और अदालत में अगर सांकेतिक समझने वाले दुभाषिए होंगे तो मूक बधिर अपनी बात आसानी से दूसरों तक पहुंचा पाएंगे।’’ ‘विकलांगता’ और ‘अक्षमता’ को नकारात्मकता का प्रतीक मानने वाली सौदामिनी का कहना है, ‘‘हम भी उतने ही सामान्य हैं, जितने सुन और बोल सकने वाले लोग, बस हमारी अलग है। हम आपकी तरह नहीं बोल सकते, लेकिन आप तो हमारी सीखकर हमसे संवाद कर सकते हैं। हमें मदद या चैरिटी नहीं चाहिए, बस अपने अनुकूल माहौल चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बधिरों को उनके अधिकार दिलाने के लिए उनसे जुड़े कानून को समझना जरूरी था इसलिए उन्होंने कानून की पढ़ाई करने का फैसला किया। सब जानते हैं कि निशक्तजन अधिनियम 2016 में लिखा है कि ऐसे लोगों के लिए हर जगह सुगम्यता होनी चाहिए। बधिरों के लिए साइन लैंग्वेज जानने वाले दुभाषिए की व्यवस्था उनकी जरूरत की हर जगह होनी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है।
इसके लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को कानूनों का ज्ञान होना जरूरी है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरा लक्ष्य है कि मैं बधिर लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए अपनी कानून की डिग्री का इस्तेमाल करूं। मैं जीवन के हरेक पहलू, भले ही वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य सेवा हो, करियर हो या सबसे महत्वपूर्ण न्याय की बात हो, मैं भारत में बधिर समुदाय को इन तमाम जगहों पर अपने अधिकार हासिल करने में सक्षम बनाना चाहती हूं।’’ सौदामिनी ने कहा, ‘‘मैं और जागरुकता फैलानी चाहती हूं तथा बधिरों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में बताकर उन्हें सशक्त बनाना चाहती हूं। मैं बधिरों को कानूनी पेशे में शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहती हूं।’’
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उन्होंने बताया कि कानून की पढ़ाई करने में ‘डेफ लीगल एडवोकेसी वर्ल्डवाइड’ नामक संस्था ने उनकी बहुत मदद की और उनकी शिक्षा से जुड़ा तमाम खर्च उठाया। उन्होंने कहा कि बधिर होते हुए 42 साल की उम्र में एलएलबी पढ़ने का फैसला करना आसान नहीं था, लेकिन जब ठान लिया तो मुश्किलें अपने आप आसान होने लगीं। इस समय, वह अखिल भारतीय मूक बधिर महिला फाउंडेशन की निदेशक और ‘एक्सेस मंत्र फाउंडेशन’ की न्यासी हैं।
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