असम में कड़ी सुरक्षा के बीच दूसरे चरण का मतदान

गुवाहाटी। असम विधानसभा का दूसरे और अंतिम चरण का मतदान आज सुबह सात बजे से कड़ी सुरक्षा के बीच शुरू हो गया। इस चरण के मतदान में राज्य के कुल 126 विधानसभा क्षेत्रों में से 61 निर्वाचन क्षेत्रों में 525 उम्मीदवारों के चुनावी भाग्य का फैसला होना है। इन सीटों पर सत्ताधारी कांग्रेस, भाजपा-अगप-बीपीएफ गठबंधन और एआईयूडीएफ के बीच कड़ा मुकाबला है। मतदाताओं की कुल संख्या 1,04,35,271 है, जिसमें 53,91,204 पुरूष, 50,44,051 महिलाएं और 22 अन्य हैं। ये मतदाता निचले एवं मध्य असम में कुल 12,699 मतदान केंद्रों पर मतदान करके 477 पुरूष और 48 महिला उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे।
इन निर्वाचन क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करते हुए 50 हजार से ज्यादा चुनाव कर्मी तैनात किए गए हैं। चार बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्रीय जिलों (बीटीएडी) में विशेष तौर पर सुरक्षा मजबूत की गई है। इन इलाकों में एनडीएफबी (एस) उग्रवादी सक्रिय हैं। इसके अलावा हाल ही में बम विस्फोट का शिकार बने गोलपाड़ा जिले में भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है।
अल्पसंख्यक बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में भी सुरक्षा बढ़ाई गई है। धुबरी जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा के आसपास और बकसा जिले में भारत-भूटान सीमा के आसपास निगरानी की जा रही है। कांग्रेस 57 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि निवर्तमान विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी एआईयूडीएफ कुल 47 सीटों पर अपना भाग्य आजमा रही है। भाजपा कुल 35 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि इसके सहयोगी- बोडो पीपल्स फ्रंट (बीपीएफ) 10 सीटों पर और असम गण परिषद (एजीपी) 19 सीटों पर लड़ रही है। माकपा नौ सीटों पर और भाकपा पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अन्य दल कुल 129 सीटों पर और निर्दलीय उम्मीदवार 214 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।
इन चुनावों में जाने-माने उम्मीदवारों में कैबिनेट मंत्री रकीबुल हुसैन, चंदन सरकार और नजरूल इस्लाम (कांग्रेस), एजीपी से दो बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रफुल्ल महंत, एआईयूडीएफ के प्रमुख और धुबरी के सांसद बदरूद्दीन अजमल और पिछले साल भाजपा में शामिल होने से पहले मुख्यमंत्री के विरोध का नेतृत्व करने वाले कांग्रेस के पूर्व मंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा शामिल हैं। इन चुनावों के जरिए कांग्रेस जहां लगातार चौथी बार सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रयास कर रही है, वहीं भाजपा ने परिवर्तन का आह्वान किया है। एआईयूडीएफ का लक्ष्य अगली सरकार के गठन में ‘किंग मेकर’ की भूमिका निभाने का है।
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