दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में नाम आने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा बोले, जिम्मेदारी निभाने को तैयार

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अंकित सिंह । Aug 8 2019 1:43PM

शीला दीक्षित तब तक उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ा रही थी। शीला दीक्षित को कमान सौंपते ही दिल्ली में भाजपा के एकछत्र राज को समाप्त करने में कांग्रेस कामयाब हो पाई।

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित के निधन के बाद पार्टी ने नए प्रेदश अध्यक्ष के लिए माथा-पच्ची शुरू कर दी है। दिल्ली कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी आलाकमान के लिए परेशानी का सबब है। आलाकमान भी दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में सावधानियां बरत रहा है। जहां पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि दिल्ली के ही वरिष्ठ नेताओं में से किसी एक को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए तो दूसरी ओर कुछ नेता यह भी कह रहे हैं कि किसी बाहरी को यह जिम्मेदारी दी जाए ताकि गुटबाजी पर काबू पाया जा सके। आलाकमान भी किसी बाहरी को ही यह जिम्मेदारी देने पर ज्यादा जोर दे रहा है क्योंकि दिल्ली में उसका यह प्रयोग पहले सफल हो चुका है। 

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सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभालते ही दिल्ली में यह प्रयोग किया था। 1998 में विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने शीला दीक्षित को दिल्ली की कमान सौंपी थी। शीला दीक्षित तब तक उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ा रही थी। शीला दीक्षित को कमान सौंपते ही दिल्ली में भाजपा के एकछत्र राज को समाप्त करने में कांग्रेस कामयाब हो पाई। कांग्रेस ने ना सिर्फ दिल्ली में भाजपा की जड़ें कमजोर कीं बल्कि 15 वर्षों तक शीला के नेतृत्व में सत्ता में रही। 2013 में कांग्रेस की हार के बाद से ही शीला सक्रिय राजनीति से दूर होती गई। उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया। लोकसभा से चुनाव से पहले उन्हें आनन-फानन में एक बार फिर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाया गया और तीन नंबर पर गई पार्टी दूसरे नंबर पर आने में कामयाब हो पाई। शीला ने अपने आखिरी सांस तक प्रेदश इकाई की कमान को संभाले रखा। हालांकि पार्टी की गुटबाजी उन्हें परेशान करती रही।

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अब जब शीला दीक्षित का निधन हो गया है और विधानसभा चुनाव सर पर हैं, ऐसे में कांग्रेस कोई भी रिस्क लेने को तैयार लहीं है। आलाकमान ने नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर विचार करना शुरू कर दिया है और कई नाम सामने आने लगे हैं। इन नामों में जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं वह हैं शत्रुघ्न सिन्हा और नवजोत सिंह सिद्धू। दोनों भाजपा से कांग्रेस में गए हैं पर पार्टी में अच्छी पकड़ बना चुके हैं। सिद्धू जहां पंजाब कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद खाली है तो वहीं शत्रुघ्न के पास पटना साहिब से चुनाव हारने के बाद कोई जिम्मेदारी नहीं है। यह खबर उड़ती-उड़ती शत्रुघ्न सिन्हा के पास भी पहुंची कि पार्टी उन्हें दिल्ली की कमान सौंप सकती है जिसके बाद उनके मन में भी उम्मीदों के फुव्वारें उफान पर हैं। शत्रुघ्न सिन्हा ने एक बयान में कहा कि पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी उसे वे निभाने के लिए तैयार हैं। 

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शत्रुघ्न ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से उनकी कोई मांग नहीं है और नाही मैं उम्मीद रखता हूं पर पार्टी के कार्यकर्ता होने के नाते तय जिम्मेदारी को निभाने के लिए तैयार हूं। अगर कांग्रेस उन्हें दिल्ली की कमान को सौंपती है तो उनका मुकाबला भाजपा के मनोज तिवारी और आप के अरविंद केजरीवाल से रहेगा। शत्रुघ्न मनोज तिवारी के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं क्योंकि दोनों बिहार से आते हैं और दोंनों लोकप्रिय भी हैं। दिल्ली में बिहार और पूर्वाचंल के लोगों की तादाद अच्छी-खासी है। हालांकि पार्टी के कुछ नेता उनके खिलाफ हैं क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करने के बाद कहा था कि उनके लिए परिवार पहले है। शत्रुघ्न की पत्नी सपा के टिकट पर लखनऊ से चुनाव लड़ रही थीं। वहीं अनुच्छेद 370 पर अमित शाह की तारीफ करना उनके लिए भारी पड़ सकता है। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या कांग्रेस उन्हें दिल्ली की कमान सौंपती है या नहीं।

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