Uddhav Thackeray vs Eknath Shinde: शिंदे कहते रहे हम शिवसेना हैं... चीफ जस्टिस का एक सवाल, और दुविधा में पड़ गए कोश्यारी!

Uddhav Thackeray
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अभिनय आकाश । Mar 15 2023 4:02PM

ठाकरे के वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जबकि शिंदे के वकील हरीश साल्वे, नीरज किशन कौल और देवदत्त कामत ने अपनी दलीलें पूरी कीं जबकि राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए।

शिवसेना में फूट से जुड़े मुकदमों की आज सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा बेंच के अन्य सदस्य हैं। ठाकरे के वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जबकि शिंदे के वकील हरीश साल्वे, नीरज किशन कौल और देवदत्त कामत ने अपनी दलीलें पूरी कीं जबकि राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए।पीठ ने 21 फरवरी से गुण-दोष के आधार पर मामले की सुनवाई शुरू की थी। 16 फरवरी को उसने मामले के गुण-दोष के साथ इसे निर्धारित करने का विकल्प चुनकर बड़ी पीठ के संदर्भ के प्रारंभिक मुद्दे पर फैसला टालने का फैसला किया था। 

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दोनों पक्षों की बहस खत्म होने के बाद और राज्यपाल की ओर से बहस कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने एक सवाल पूछा, जिसने न केवल राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को बल्कि एकनाथ शिंदे को भी दुविधा में डाल दिया। शुरुआत में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समझाया कि मैं सात बातों के आधार पर राज्यपाल का केस पेश कर रहा हूं. लेकिन बहस चल ही रही थी कि चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ मेहता से सवाल पूछने लगे. मेहता ने कहा कि मेरे बोलने के बाद आप मुझसे प्रश्न पूछें। चीफ जस्टिस ने निर्देश दिया कि इस पर मेरे पास जो सवाल हैं, मैं उनसे पूछता रहूंगा, आप अपनी राय पेश करते रहें। 

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राज्यपाल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की बजाय बहुमत परीक्षण कराने का निर्देश दिया। अगर विधायक पार्टी के आदेश के खिलाफ वोट करते हैं तो दसवीं अनुसूची के अनुसार कार्रवाई होगी। लेकिन पहले राष्ट्रपति शासन का चरम कदम उठाने की बजाय बहुमत की परीक्षा ली जानी चाहिए। अधिवक्ता तुषार मेहता ने तर्क दिया कि इस मामले में राज्यपाल ने यही किया। अगर शिवसेना इस पर विभाजित नहीं होती। आप बार-बार कहते हैं कि आप शिवसेना हैं... इसका मतलब है कि जो 34 विधायक आपके साथ हैं, वे भी शिवसेना के सदस्य हैं। यदि वे स्वयं शिवसेना के सदस्य हैं। तो सदन में बहुमत साबित करने का सवाल कहां से आता है? ये सवाल पूछकर चीफ जस्टिस ने तुषार मेहता का मुंह बंद कर दिया। 

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राज्यपाल की कार्रवाई पार्टी को तोड़ने वाला कदम है: चीफ जस्टिस

महाविकास अघाड़ी सरकार में वो पार्टियां तीन साल शासन कर रही थी, फिर रातों-रात ऐसा क्या हुआ, जिसने तीन साल की जनजीवन को तोड़ दिया। यह भी एक बहुत बड़ा समूह है। शिवसेना के 56 में से 34 विधायकों ने अविश्वास जताया। इसलिए तीनों पार्टियों में मतभेदों के बाद भी शिवसेना ही आगे रही। बहुमत परीक्षण बुलाने से पहले राज्यपाल ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया? विधायकों का सरकार विरोधी रुख या पार्टी नेतृत्व से मतभेद सरकार बनने के एक महीने के भीतर नहीं हुआ। यह सब तीन साल बाद हुआ है। तो अचानक एक दिन शिवसेना के 34 सदस्यों को लगा कि कांग्रेस-राष्ट्रवादियों से उनके मतभेद हैं। फिर अगर विचारधारा का मामला था तो तीन साल तक चुप क्यों रहे?

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