Jan Gan Man: New Parliament Building के उद्घाटन को लेकर मोदी सरकार का रुख सही है या विपक्ष का ?

New Parliament Building
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जो लोग सवाल उठा रहे हैं कि नयी संसद की जरूरत ही क्या थी, वह वे लोग हैं जिन्होंने हमेशा गुलामी के प्रतीकों पर ही गर्व किया। ऐसे लोगों ने अपने कार्यकाल में कुछ किया नहीं और अब वह दूसरों को भी कुछ करने नहीं देना चाहते।

वैसे तो आपने अक्सर सुना होगा कि संसद में हुआ भारी हंगामा लेकिन अभी संसद के नये भवन का उद्घाटन हुआ भी नहीं है कि भारी हंगामा होना शुरू हो गया है। विपक्ष ने संसद के नये भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करने का दुर्भाग्यपूर्ण फैसला कर देश के उत्साह संबंधी रंग में जो भंग डाला है उससे हर भारतीय स्तब्ध है। देखा जाये तो लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि सभी राजनीतिक दल किसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसर पर एक साथ खड़े हों लेकिन विपक्ष ने अपने आचरण से एक बार फिर लोकतंत्र का अनादर किया है। विपक्ष को सोचना चाहिए कि जिस तरह उसने राष्ट्र के एक बड़े आयोजन का बहिष्कार किया है यदि उसको देखते हुए जनता आगामी चुनावों में इन दलों का बहिष्कार कर देगी तो उन नेताओं का क्या होगा जिन्होंने 28 मई के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे भारतीयों का मन दुखाया है।

सवाल उठाने वालों से कुछ सवाल

जो लोग सवाल उठा रहे हैं कि नयी संसद की जरूरत ही क्या थी, वह वे लोग हैं जिन्होंने हमेशा गुलामी के प्रतीकों पर ही गर्व किया। ऐसे लोगों ने अपने कार्यकाल में कुछ किया नहीं और अब वह दूसरों को भी कुछ करने नहीं देना चाहते। ऐसे लोगों को हम बता दें कि लोकतंत्र की जननी भारत के संसद भवन की कार्यवाही को देखने देश-दुनिया के लोग रोजाना आते हैं। वह जब देखते हैं कि संसद भवन की दीवारों पर क्रैक दिख रहे हैं, कहीं पानी रिस रहा है तो कहीं कोई दिक्कत है तो सोचिये हमारी मजबूत राष्ट्र वाली छवि के बारे में क्या संदेश जाता होगा। यही नहीं, कुछ वर्षों पहले इस प्रकार की भी खबर आई थी कि 26 जनवरी की परेड से पहले जब राष्ट्रपति की ओर से तिरंगा फहराये जाने के बाद सामूहिक राष्ट्रगान का आयोजन होता है तब तोप दागे जाने से जो कंपन होती है उससे संसद भवन की दीवारों को नुकसान पहुँच सकता है। यही नहीं, अभी हाल ही में कोरोना महामारी के दौरान जब हमने देखा कि सीमित स्थान की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं हो सकता था तो दो पालियों में दोनों सदनों की कार्यवाही का संचालन किया गया था। इसके अलावा, कांग्रेस नेत्री मीरा कुमार जब लोकसभा की अध्यक्ष थीं तब उन्होंने ही सबसे पहले नये संसद भवन की आवश्यकता को रेखांकित किया था और इस संबंध में एक पत्र भी केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय को लिखा था।

विपक्ष चाहता क्या है?

दूसरी ओर, विपक्ष ने अपने बहिष्कार के संदर्भ में जो भी तर्क दिये हैं उन्हें जायज नहीं ठहराया जा सकता। सरकार का विरोध करना है तो खुलकर करिये लेकिन जब देश के लिए कुछ बड़ा होने वाला है तो देश के साथ खड़ा होना ही चाहिए। देश के साथ खड़े होने से यह संदेश नहीं जाता कि कोई विपक्षी दल सरकार के साथ खड़ा है। यही नहीं, विपक्ष की इस दुर्भाग्यपूर्ण हरकत के बारे में जब आने वाली पीढ़ियां पढ़ेंगी और जानेंगी तो यकीनन वह भी ऐसे नेताओं को कोसेंगी ही। विपक्ष बात लोकतंत्र की करता है लेकिन उसका आचरण दर्शाता है कि लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में उसकी आस्था नहीं रही है। राष्ट्र के महत्वपूर्ण अवसरों पर देश के साथ खड़े नहीं होना, मन-मुताबिक अदालती फैसला नहीं आने पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करना और संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणियां करना अब विपक्ष की आदत में शुमार हो चुका है।

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विपक्ष ने बहिष्कार के क्या कारण बताये?

जहां तक संसद के नये भवन के उद्घाटन कार्यक्रम से विपक्ष के बहिष्कार के कारणों की बात है तो आपको बता दें कि विपक्ष के 19 दलों ने संसद के नए भवन के उद्घाटन समारोह का सामूहिक रूप से बहिष्कार करने का ऐलान करते हुए आरोप लगाया है कि इस सरकार के कार्यकाल में संसद से लोकतंत्र की आत्मा को निकाल दिया गया है तथा समारोह से राष्ट्रपति को दूर रखना 'अशोभनीय कृत्य' एवं लोकतंत्र पर सीधा हमला है। विपक्ष के 19 दल जहां संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से नहीं कराये जाने का विरोध कर रहे हैं तो दूसरी ओर एआईएमआईएम के प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी का कहना है कि राष्ट्रपति को नहीं बल्कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को नये संसद भवन का उद्घाटन करना चाहिए। उधर, सरकार ने विपक्ष के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा है कि विपक्षी पार्टियों को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। सरकार का कहना है कि लोकसभा अध्यक्ष संसद के संरक्षक हैं और उन्होंने ही प्रधानमंत्री को संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया है।

कांग्रेस जरा अपने गिरेबां में झाँके

संसद के नये भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाने का सुझाव देने वाली कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि उसके कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्रियों ने अपनी कितनी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाया था? दरअसल नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने का सुझाव देने के पीछे कांग्रेस का प्रयास है कि किसी तरह नरेंद्र मोदी को नया इतिहास रचने से रोका जाये। कांग्रेस को पता है कि जब आने वाली पीढ़ियां नये संसद भवन के इतिहास को जानेंगी और जब उन्हें नये संसद भवन के द्वार पर यह लिखा हुआ मिलेगा कि यह परियोजना मोदी सरकार के कार्यकाल में बनी और पूरी हुई और इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था तो उनके मन में सवाल उठेगा ही कि कांग्रेस ने दशकों के शासनकाल में देश को क्या दिया? सवाल उठेगा ही कि क्यों कांग्रेस शासनकाल में गुलामी के प्रतीकों पर ही गर्व किया गया? 

शुरू से रोड़े अटकाता रहा है विपक्ष

विपक्ष का यह भी कहना है कि राष्ट्रपति न केवल राष्ट्राध्यक्ष होते हैं, बल्कि वह संसद का अभिन्न अंग भी हैं क्योंकि वही संसद सत्र आहूत करते हैं, उसका अवसान करते हैं और साल के पहले सत्र के दौरान दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित भी करते हैं। संक्षेप में, राष्ट्रपति के बिना संसद कार्य नहीं कर सकती है। फिर भी, प्रधानमंत्री ने उनके बिना नए संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय लिया है। लेकिन यहां विपक्ष को यह समझना होगा कि सरकार की सलाह पर ही राष्ट्रपति संसद सत्र आहूत करने या सत्र का अवसान करने का निर्णय लेते हैं। साल की शुरुआत में राष्ट्रपति का जो अभिभाषण होता है वह भी सरकार की उपलब्धियों और देश के समक्ष चुनौतियों का वर्णन होता है। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख हैं लेकिन प्रधानमंत्री लोकतंत्र के प्रतीक होते हैं और जब लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन होना है तो यह प्रधानमंत्री से कराना ही बेहतर होगा क्योंकि हर पांच साल में अपने कामकाज का रिपोर्ट कार्ड जनता के समक्ष प्रधानमंत्री को ही रखना होता है। खासतौर पर देश को नया संसद भवन देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने जितनी अदालती लड़ाईयां लड़ीं और विपक्ष की ओर से समय-समय पर खड़ी की जाने वाली बाधाओं पर विजय पाई उसको देखते हुए तो नये संसद भवन का उद्घाटन करने का पहला हक सिर्फ प्रधानमंत्री का ही बनता है। सेंट्रल विस्टा परियोजना के विरोध में जैसे जैसे तर्क विपक्ष की ओर से बड़े-बड़े वकीलों ने रखे थे उससे तो कई बार देश को लगा था कि नये संसद भवन का इंतजार लंबा होता जायेगा लेकिन जब मोदी किसी संकल्प को सिद्ध करने का प्रण लेते हैं तो उसे पूरा करके रहते हैं। यहां सवाल यह भी उठता है कि जिस परियोजना को रोकने के लिए विपक्ष ने हर तरह के प्रयास किये क्या उन्हें उद्घाटन को लेकर कोई सुझाव देने का नैतिक हक है? 

कांग्रेस के सुझाव की असल मंशा क्या है?

दूसरी ओर, राष्ट्रपति से नये संसद भवन का उद्घाटन कराने का सुझाव कांग्रेस ने इसलिए नहीं दिया है कि देश के संवैधानिक प्रमुख के लिए उसके मन में बहुत सम्मान है। दरअसल विपक्ष राष्ट्रपति की आड़ लेकर विरोध की राजनीति कर रहा है। देश को कांग्रेस नेताओं के वह अमर्यादित बयान याद हैं जो उन्होंने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनाये जाने पर और उनके निर्वाचन के बाद दिये थे। कांग्रेस यदि राष्ट्रपति और संविधान का बहुत सम्मान करती है तो उसे बताना चाहिए कि क्यों साल 2021 में संसद के सेंट्रल हॉल में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा संबोधित किए जाने वाले संविधान दिवस समारोह का बहिष्कार किया था? कांग्रेस के अलावा जो अन्य दल नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने का सुझाव देते हुए मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वह देश के संवैधानिक प्रमुख के प्रति असम्मान व्यक्त कर रही है वह दल जरा बताएं कि क्यों उन्होंने इस साल संसद के बजट सत्र के दौरान राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया था?

लोकतंत्र के मंदिर के नये भवन से खुश है जनता

बहरहाल, देखा जाये तो संसद का नया भवन नये भारत की नयी उम्मीदों का केंद्र बनने वाला है। यह वक्त है जब देश को एकजुटता के साथ भारत में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन की नई इमारत के उद्घाटन अवसर को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा। वैसे नेता भले राजनीतिक कारणों से अपना अपना राग अलाप रहे हों लेकिन जनता संसद के नये भवन को लेकर काफी प्रसन्न है। जहां एक ओर देश का हर आम से लेकर खास नागरिक इस बात को लेकर उत्सुक है कि नयी संसद कैसी दिखती है तो वहीं वह इस बात को लेकर खुश भी है कि यह हमारी अपनी बनाई हुई संसद है जिसमें भारत की संस्कृति, कला, इतिहास और परम्पराओं की झलक दिखेगी। आम आदमी इस बात को लेकर खुश है कि नये संसद भवन के निर्माण में भूमिका निभाने वाले श्रमजीवियों का प्रधानमंत्री सम्मान करेंगे और इस भवन के इतिहास में उनका नाम भी उल्लिखित होगा। देश इस बात को लेकर भी प्रसन्न है कि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को हस्तांतरित की गई सत्ता के प्रतीक ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। भारत के नये और आधुनिक संसद भवन को प्राचीन परम्पराओं और भारत के गौरवशाली इतिहास से जोड़ कर आधुनिकता और पारम्परिकता का जो समावेश हुआ है उसका जनता दिल खोल कर स्वागत कर रही है।

-नीरज कुमार दुबे

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