भीमा कोरेगांव मामले में तीन साल बाद रिहा हुईं सुधा भारद्वाज, मीडिया से बात करने की इजाजत नहीं

Sudha Bharadwaj
अंकित सिंह । Dec 10 2021 7:48PM

जेल से बाहर निकलने के बाद और कार में बैठने से पहले उन्होंने मीडिया कर्मियों के लिए हाथ में हिलाया। बताया जा रहा है कि भारद्वाज को कड़े गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था।

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी वकील और कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज आखिरकार जमानत मिलने के बाद जेल से रिहा हो गई है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुधा भारद्वाज को 1 दिसंबर को जमानत हुई थी। इसके साथ ही एएनआई की विशेष अदालत को उन पर लगाई जाने वाली पाबंदियों को भी तय करने का निर्देश दिया था। इसके बाद एएनआई कोर्ट ने भारद्वाज को 50000 रुपये के मुचलके पर रिहा करने का निर्देश दिया था। तमाम औपचारिकताओं को पूरी करने के बाद बृहस्पतिवार को भायखला महिला कारागार से उन्हें रिहा किया गया है।

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जेल से बाहर निकलने के बाद और कार में बैठने से पहले उन्होंने मीडिया कर्मियों के लिए हाथ में हिलाया। बताया जा रहा है कि भारद्वाज को कड़े गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था। जमानत से पहले हाई कोर्ट ने भारद्वाज पर कई तरह की शर्ते भी लगाई है। इसमें बताया गया है कि कोर्ट की अनुमति के बगैर वह मुंबई नहीं छोड़ सकती हैं। एएनआई को अपना पासपोर्ट सपना होगा तथा मामले के बारे में मीडिया से कोई बात नहीं करनी होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि वह ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल ना हो जिसके आधार पर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 

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यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार-परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इसकी वजह से शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी। पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था। मामले में 12 से अधिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है। इसकी जांच बाद में एनआईए को सौंप दी गई थी। भारद्वाज को अगस्त, 2018 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। विशेष एनआईए अदालत ने भारद्वाज पर कई अन्य शर्तें भी लगाईं, जिसमें अदालत की अनुमति के बिना मुंबई से बाहर नहीं जाना, एनआईए को अपना पासपोर्ट सौंपना और मामले के बारे में मीडिया से बात नहीं करना शामिल है।

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