सबरीमाला पर बोले भागवत, सुप्रीम कोर्ट ने परम्परा पर विचार नहीं किया
सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि शीर्ष अदालत ने समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा की प्रकृति पर विचार नहीं किया और इसने समाज में ‘विभाजन’ को जन्म दिया।
नागपुर। सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि शीर्ष अदालत ने समाज द्वारा स्वीकृत परंपरा की प्रकृति पर विचार नहीं किया और इसने समाज में ‘विभाजन’ को जन्म दिया। उन्होंने कहा कि लोगों के दिमाग में यह सवाल पैदा होता है कि सिर्फ हिंदू समाज को ही अपनी आस्था के प्रतीकों पर बार-बार हमलों का सामना क्यों करना पड़ता है।
सरसंघचालक ने विजयादशमी के अवसर पर अपने वार्षिक संबोधन में कहा, ‘यह स्थिति समाज की शांति एवं सेहत के लिए अनुकूल नहीं है।’ उन्होंने कहा कि सभी पहलुओं पर विचार किए बगैर सुनाए गए फैसले और धैर्यपूवर्क समाज की मानसिकता सृजित करने को न तो वास्तविक व्यवहार में कभी अपनाया जाएगा और न ही बदलते वक्त में इससे नई सामाजिक व्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। भागवत ने कहा, ‘सबरीमला मंदिर पर हालिया फैसले से पैदा हुए हालात ऐसी ही स्थिति दर्शाते हैं। समाज द्वारा स्वीकृत और वर्षों से पालन की जा रही परंपरा की प्रकृति एवं आधार पर विचार नहीं किया गया। इस परंपरा का पालन करने वाली महिलाओं के एक बड़े तबके की दलीलें भी नहीं सुनी गई।’
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि इस फैसले ने शांति, स्थिरता एवं समानता के बजाय समाज में अशांति, संकट और विभाजन को जन्म दिया है। बीते 28 सितंबर को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केरल स्थित सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग (10-50 वर्ष) की महिलाओं के प्रवेश पर लगी सदियों पुरानी पाबंदी निरस्त कर दी थी और उन्हें मंदिर में जाने की इजाजत दे दी।
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