BBC documentary | सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को जारी किया नोटिस, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री विवाद पर मांगा तीन हफ्तों मे जवाब

Supreme Court
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रेनू तिवारी । Feb 3 2023 4:46PM

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित बीबीसी के वृत्तचित्र को प्रतिबंधित करने के उसके आदेश से जुड़े मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया।

नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों (Gujarat riots 2002) पर बीबीसी वृत्तचित्र (BBC documentary) तक सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक सीरीज पर केंद्र को नोटिस जारी किया। यह देखते हुए कि लोग बीबीसी की अवरुद्ध डॉक्यूमेंट्री तक पहुंच बना रहे हैं, शीर्ष अदालत ने केंद्र से तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने केंद्र को सुनवाई की अगली तारीख पर विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री के लिंक साझा करने वाले ट्वीट को हटाने के आदेश से संबंधित मूल रिकॉर्ड पेश करने का भी निर्देश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एमएम सुंदरेश की पीठ ने तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, पत्रकार एन राम, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अधिवक्ता एमएल शर्मा की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया।

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बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर SC ने केंद्र को नोटिस जारी किया

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित बीबीसी के वृत्तचित्र को प्रतिबंधित करने के उसके आदेश से जुड़े मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने वरिष्ठ पत्रकार एन राम, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा, कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अधिवक्ता एम एल शर्मा की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया। शर्मा ने एक अलग याचिका दाखिल की थी, जिसे अब वृत्तचित्र पर प्रतिबंध से संबंधित सरकारी आदेश के खिलाफ दायर अन्य याचिकाओं के साथ संबद्ध कर दिया गया है। मामले में अगली सुनवाई अप्रैल में होगी।

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कोर्ट ने दी केंद्र को जवाब देने के लिए तीन हफ्तों की मोहलत

पीठ ने कहा, “हम नोटिस जारी कर रहे हैं। जवाबी हलफनामा तीन हफ्ते के भीतर दाखिल किया जाना चाहिए। प्रत्युत्तर उसके दो हफ्ते के बाद दिया जाना चाहिए। प्रतिवादी सुनवाई की अगली तारीख पर इस अदालत में मूल दस्तावेज भी पेश करेंगे।” इससे पहले, पीठ ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि उन्होंने इस मामले में उच्च न्यायालय का रुख क्यों नहीं किया। पत्रकार एन राम व अन्य की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी यू सिंह ने दलील दी कि सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के तहत हासिल आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल कर वृत्तचित्र को प्रतिबंधित किया है। उन्होंने कहा कि वह पीठ से केंद्र को प्रतिबंध के आदेश से संबंधित सभी मूल रिकॉर्ड शीर्ष अदालत के समक्ष रखने का निर्देश देने की मांग कर रहे हैं।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह भी एक तथ्य है कि लोग वृत्तचित्र तक पहुंच हासिल कर रहे हैं। इससे पहले, न्यायालय अधिवक्ता शर्मा और सिंह की दलीलों का संज्ञान लेते हुए सरकार द्वारा अपनी आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल कर दो कड़ियों वाले बीबीसी वृत्तचित्र पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को सुनवाई के लिए तत्काल सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गया था। एक याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि वृत्तचित्र ‘इंडिया : द मोदी क्वेश्चन’ पर प्रतिबंध ‘दुर्भावनापूर्ण, मनमाना और असंवैधानिक’ है।

राम द्वारा दायर याचिका पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने ट्वीट किया था, “वे इस तरह माननीय सर्वोच्च न्यायालय का कीमती समय बर्बाद कर रहे हैं, जहां हजारों आम नागरिक न्याय का इंतजार कर रहे हैं और उसके लिए तारीख मांग रहे हैं।” राम और अन्य ने अपनी याचिकाओं में केंद्र को वृत्तचित्र के संबंध में ‘सूचना प्राप्त करने और उसे प्रसारित करने’ के अपने अधिकार पर अंकुश लगाने से रोकने के लिए एक निर्देश जारी करने की मांग की है। इन याचिकाओं में अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर शीर्ष अदालत के विभिन्न आदेशों का जिक्र करते हुए कहा गया है, “प्रेस सहित सभी नागरिकों को वृत्तचित्र को देखने, उस पर राय कायम करने, उसकी समालोचना करने, उससे संबंधित शिकायत करने और उसे कानूनी रूप से प्रसारित करने का मौलिक अधिकार है, क्योंकि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में सूचना प्राप्त करने और प्रसारित करने का अधिकार शामिल है।”

याचिकाओं में सोशल मीडिया पर साझा की गई सूचनाओं सहित सभी सूचनाओं को ‘प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सेंसर करने वाले आदेशों’ को रद्द करने की भी मांग की गई है। इनमें ट्विटर कम्युनिकेशन्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और गूगल इंडिया को पक्ष बनाते हुए याचिकाकर्ताओं की ओर से किए गए ट्वीट को बहाल करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।

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