Fourth Phase of LokSabha Elections in UP: अखिलेश, साक्षी महाराज, अजय मिश्र टेनी और अनु टंडन की किस्मत होगी लॉक

Fourth Phase of LokSabha Elections in UP
Prabhasakshi
संजय सक्सेना । Apr 30 2024 5:15PM

अवध, तराई और सेंट्रल यूपी के 13 जिलों में होने वाले चुनाव में भाजपा और सपा-कांग्रेस के बीच ही लड़ाई है, जिसे बसपा त्रिकोणीय बनाने में लगी है। जातीय गणित और भावनाओं के सहारे पक्ष-विपक्ष अपनी उम्मीदों की जमीन बनाने में जुटे हैं।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में चौथे चरण के चुनाव की भी तस्वीर साफ हो गई है। 13 सीटों पर 130 उम्मीदवार मैदान में हैं। चौथे चरण में शाहजहांपुर, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई मिश्रिख, उन्नाव, फर्रूखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर व बहराइच में मतदान होगा। बता दें कि चतुर्थ चरण के लिए 220 प्रत्याशियों ने नामांकन पत्र दाखिल किया था। गत 26 अप्रैल को नामांकन पत्रों की जांच में 82 प्रत्याशियों के नामांकन खारिज हो गए थे। मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवाने बताया कि नाम वापसी के दिन जिन आठ प्रत्याशियों ने अपने नाम वापस लिए उसमें धौरहरा लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी नर सिंह, हरदोई (अजा) सीट से निर्दलीय प्रत्याशी प्रफुल्ल कुमार वर्मा, मिश्रिख (अजा) से निर्दलीय प्रत्याशी मनोज कुमार राजवंशी, फर्रूखाबाद से निर्दलीय प्रत्याशी सौभाग्यवती राजपूत, इटावा से निर्दलीय प्रत्याशी डॉ. मृदुला, कन्नौज सीट से निर्दलीय प्रत्याशी नेहा पाठक और राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी से राम बख्श सिंह व अकबरपुर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी प्रेमशीला शामिल हैं। उन्होंने बताया कि ददरौल विधानसभा उप निर्वाचन के लिए 10 प्रत्याशियों के नामांकन वैध पाए गए थे, इसमें किसी भी प्रत्याशी ने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली है। चौथे चरण में कन्नौज से सपा प्रमुख अखिलेश यादव के  मैदान में उतरने से यह चरण काफी महत्वपूर्ण हो गया है।

अवध, तराई और सेंट्रल यूपी के 13 जिलों में होने वाले चुनाव में भाजपा और सपा-कांग्रेस के बीच ही लड़ाई है, जिसे बसपा त्रिकोणीय बनाने में लगी है। जातीय गणित और भावनाओं के सहारे पक्ष-विपक्ष अपनी उम्मीदों की जमीन बनाने में जुटे हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर भाजपा ने ही जीत हासिल की थी। इसलिए, दांव पर भी उसकी ही पूंजी लगी है। चौथे चरण में शाहजहांपुर (सुरक्षित), खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई (सुरक्षित), मिश्रिख (सुरक्षित), उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा (सुरक्षित), कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच (सुरक्षित) में चुनाव होंगे। इनमें कन्नौज सीट 2014 में सपा ने जाती थी, जबकि बाकी 12 सीटों पर भाजपा का कब्जा हुआ था। 2019 में 12 सीटों को फिर कब्जाने के साथ कन्नौज को भी भाजपा ने अपनी झोली में डाल लिया था। शहरी, कस्बाई व दलित बहुल इलाकों को समाहित करने वाली इन सीटों में इस बार विपक्ष ने भी सामाजिक समीकरणों को कसने पर ध्यान लगाया है। वहीं, भाजपा मोदी की गारंटी व पिछले दो चुनावों में वोट बैंक के जमीनी विस्तार के भरोसे फिर क्लीन स्वीप का ख्वाब देख रही है। 13 मई को इन 13 सीटों के साथ शाहजहांपुर की ददरौल विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव भी होगा। यह सीट भाजपा विधायक मानवेंद्र सिंह के निधन के चलते खाली हुई है।

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चौथे चरण में लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट पर ब्राह्मण, दलित व कुर्मी बाहुल्य इस सीट के नतीजे स्थानीय नहीं राष्ट्रीय सियासत के लिहाज से भी अहम हैं। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी को भाजपा ने यहां लगातार चौथी बार चुनाव में उतारा है। पिछले दो चुनाव में जीत का परचम लहराने वाले टेनी के पास इस बार हैट्रिक का मौका है। किसान आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शन में यहां जीप से कुचलकर किसानों की मौत के मामले में टेनी के बेटे आशीष मिश्रा आरोपित हैं। इसलिए, विपक्ष टेनी की उम्मीदवारी को किसान बेल्ट में मुद्दा बना रहा है। सपा ने इस बार नए चेहरे उत्कर्ष वर्मा को टिकट दिया है।

प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगे जिला उन्नाव की सीट के नतीजे पर भी सबकी नजर होगी। पिछली दो बार यहां से एकतरफा जीत हासिल कर रहे साक्षी महाराज तीसरी बार भी भाजपा के उम्मीदवार है। 2009 में यहां कांग्रेस को जीत दिलाने वाली अनु टंडन इस बार यहां सपा का चेहरा हैं। पिछली बार उनको 1.85 लाख वोट मिले थे। जबकि, सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी अरुण शंकर शुक्ला को 3.02 लाख वोट हासिल हुए थे। यानी विपक्ष का कुल वोट यहां लगभग 33 फीसदी था, जबकि भाजपा ने 56 फीसदी से अधिक वोट अपने खाते में किए थे। इसलिए, विपक्ष के सामने यहां कठिन लड़ाई है। बसपा ने अशोक पांडेय को उम्मीदवार बनाया है।

समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे मुलायम सिंह यादव की इस पसंदीदा कन्नौज सीट पर समाजवादी पार्टी की तरफ से अखिलेश यादव मैदान में हैं। राम मनेाहर लोहिया को संसद भेज चुकी यह सीट समाजवादियों का गढ़ रही है। 1998 से सपा की लगातार जीत का क्रम 2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक ने तोड़ दिया था। सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी सपा मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव 12,353 वोटों से हार गई थीं। भाजपा ने फिर पाठक को टिकट दिया है। सपा के लिए यह सीट नाक का सवाल है क्योंकि सैफई परिवार से इसकी दावेदारी जुड़ती है। अखिलेश यादव के खुद यहां लड़ने से इत्र के शहर में जीत की खुशबू के लिए पक्ष-विपक्ष के सामने कठिन लड़ाई है।

उत्तर प्रदेश की औद्योगिक और गंगा किनारे बसे कानपुर का सियासी वैतरणी पार करने की जिम्मेदारी प्रमुख सियासी दलों ने इस बार नए चेहरों को दी है। भाजपा ने सांसद सत्यदेव पचौरी का टिकट काटकर रमेश अवस्थी को दे दिया है। विपक्षी गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के पास है। कांग्रेस ने अपने दिग्गज चेहरे श्रीप्रकाश जायसवाल की जगह आलोक मिश्रा को मौका दिया है। बसपा से कुलदीप भदौरिया उम्मीदवार हैं। कानपुर की सियासी चौसर पर जनता कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के पक्ष में पासा फेंकती रही है। 99 से 2009 तक कांग्रेस ने यहां हैटट्रिक लगाई। 2014 से जीत रही भाजपा के पास इस बार हैटट्रिक लगाने का मौका है।

सेंट्रल यूपी की इटावा सीट 2009 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का गृह जिला होने के चलते इटावा के नतीजों को सैफई परिवार की साख से जोड़ कर देखा जाता है। 99 से 2009 तक सपा ने यहां लगातार तीन बार जीत दर्ज की। हालांकि, 2014 में भाजपा ने सपा के जीत का सिलसिला तोड़ा और 2019 में भी उसे कायम रखा। मौजूदा सांसद रामशंकर कठेरिया इस बार भी भाजपा के चेहरे हैं जबकि सपा ने जितेंद्र दोहरे को सीट वापस लाने और भाजपा की हैट्रिक रोकने की जिम्मेदारी दी है। बसपा ने हाथरस की पूर्व सांसद सारिका सिंह को टिकट दिया है। बसपा यहां केवल 1991 में जीती थी, जब उसके संस्थापक कांशीराम उम्मीदवार थे। मुलायम ने भी उनका साथ दिया था।

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