संजय राउत ने UPA का दायरा बढ़ाने का किया आह्वान, बोले- विपक्ष को केंद्र के 'तानाशाही रवैये' के खिलाफ होना चाहिए एकजुट

Sanjay Raut

संप्रग का नेतृत्व राकांपा प्रमुख शरद पवार को देने के कयासों के बारे में पूछे जाने पर राउत ने कहा कि देश में नेताओं की कोई कमी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘ लोगों का समर्थन महत्वपूर्ण है। सोनिया गांधी के साथ शरद पवार को भी समाज के विभिन्न धड़ों का समर्थन प्राप्त है।’’

मुंबई। शिवसेना सांसद संजय राउत ने शनिवार को कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा (संप्रग) का दायरा बढ़ाने का आह्वान किया और कहा कि विपक्ष को केंद्र के ‘तानाशाही रवैये’ के खिलाफ एकजुट होना चाहिए और नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ ‘मजूबत विकल्प’ देना चाहिए। राउत ने संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि सोनिया गांधी ने गत वर्षों में संप्रग का प्रभावी तरीके से नेतृत्व किया है और अब समय आ गया है कि और सहयोगियों को शामिल कर इसका विस्तार किया जाए। संप्रग का नेतृत्व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार को देने के कयासों के बारे में पूछे जाने पर राउत ने कहा कि देश में नेताओं की कोई कमी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘ लोगों का समर्थन महत्वपूर्ण है। सोनिया गांधी के साथ शरद पवार को भी समाज के विभिन्न धड़ों का समर्थन प्राप्त है।’’ 

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राज्यसभा सदस्य राउत ने कहा, ‘‘सभी विपक्षी पार्टियों को केंद्र सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ एकसाथ आना चाहिए। कमजोर विपक्ष लोकतंत्र के लिए खराब है।’’ राउत ने संप्रग और भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को‘‘खाली माचिस की डिब्बियां’’ करार देते हुए कहा कि कोई नहीं जानता कि कौन सी पार्टी किस गठबंधन में है। गौरतलब है कि शिवसेना पहले भाजपा नीत राजग का हिस्सा थी। जब राउत से पूछा गया कि संप्रग का नेतृत्व किसे करना चाहिए तो उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गत वर्षों में संप्रग का बहुत सफलतापूर्वक नेतृत्व किया है। अब समय आ गया है कि इसके दायरे को बढ़ाया जाए।’’ 

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उन्होंने कहा विभिन्न राज्यों में कई पार्टियों ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा है लेकिन अब भी संप्रग का हिस्सा नहीं हैं। राउत ने कहा, ‘‘सभी विपक्षी पार्टियों को एक साथ आना चाहिए और भाजपा एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मजबूत विकल्प देना चाहिए, जो काफी सशक्त हैं।’’ शिवसेना प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि विकास कार्यों के लिए गैर भाजपा शासित राज्यों को केंद्र सरकार के असहयोगात्मक रवैये का सामना करना पड़ रहा है।

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