Waqf Boards के पास है 50 देशों जितनी जमीन, जमीन हड़पने वाले सबसे बड़े संस्थान पर लगाम लगाना जरूरी हो गया था!
ओवैसी ने आरोप लगाया है कि एनडीए सरकार वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनना चाहती है। ओवैसी ने दावा किया कि भाजपा शुरू से ही वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के खिलाफ रही है और उसने अपने हिंदुत्व एजेंडे के तहत वक्फ संपत्तियों तथा वक्फ बोर्ड को खत्म करने का प्रयास शुरू किया है।
वक्फ बोर्ड की संपत्तियों और उसकी अपार शक्तियों को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं इसलिए मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड के पर कतरने का फैसला लिया है। हम आपको बता दें कि मोदी सरकार वक्फ बोर्ड को नियंत्रित करने वाले 1995 के कानून में संशोधन करने के लिए संसद में एक विधेयक लाने वाली है ताकि इनके कामकाज में अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके तथा इन निकायों में महिलाओं की अनिवार्य भागीदारी हो सके। हालांकि सरकार नेक उद्देश्य से विधेयक लेकर आ रही है लेकिन विपक्षी दल खासकर वोट बैंक की राजनीति करने वाले दल मोदी सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं।
एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि एनडीए सरकार वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनना चाहती है। ओवैसी ने दावा किया कि भाजपा शुरू से ही वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के खिलाफ रही है और उसने अपने हिंदुत्व एजेंडे के तहत वक्फ संपत्तियों तथा वक्फ बोर्ड को खत्म करने का प्रयास शुरू किया है। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि वक्फ बोर्ड की कानूनी स्थिति और शक्तियों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लॉ बोर्ड ने एनडीए के सहयोगी दलों और विपक्षी दलों से भी आग्रह किया कि वे ऐसे किसी भी कदम को पूरी तरह से खारिज करें और संसद में ऐसे संशोधनों को पारित न होने दें।
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दूसरी ओर, सरकार के सूत्रों का कहना है कि वक्फ कानून में संशोधन का कदम मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठ रही मांगों की पृष्ठभूमि में उठाया गया है। हम आपको बता दें कि वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करने वाला विधेयक वक्फ बोर्ड के लिए अपनी संपत्तियों का वास्तविक मूल्यांकन सुनिश्चित करने को लेकर जिलाधिकारियों के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य कर देगा। अभी देश में 30 वक्फ बोर्ड हैं। मूल रूप से, पूरे भारत में वक्फ बोर्ड के पास करीब 52,000 संपत्तियां हैं। वर्ष 2009 तक चार लाख एकड़ भूमि पर 3,00,000 पंजीकृत वक्फ संपत्तियां थीं और आज की तारीख में, आठ लाख एकड़ से अधिक भूमि पर 8,72,292 ऐसी संपत्तियां हैं।
बताया जा रहा है कि सभी वक्फ संपत्तियों से प्रति वर्ष 200 करोड़ रुपये का राजस्व आने का अनुमान है। वक्फ द्वारा अर्जित राजस्व का उल्लेख करते हुए सूत्रों ने रेखांकित किया कि इस धन का उपयोग केवल मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए किया जा सकता है, किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं। मौजूदा कानून में 40 से अधिक बदलावों वाला संशोधन विधेयक मौजूदा संसद सत्र में लाया जा सकता है। सूत्रों ने बताया कि सरकार की योजना विधेयक को संसद में पेश किए जाने के बाद लंबित छोड़ने की नहीं है। कानून में प्रस्तावित प्रमुख बदलावों में बोर्ड द्वारा किसी भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसका सत्यापन सुनिश्चित करना शामिल है।
प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, विभिन्न राज्य बोर्ड द्वारा दावा की गई विवादित भूमि का नए सिरे से सत्यापन भी किया जाएगा। वक्फ बोर्ड की संरचना के संबंध में किए गए बदलावों से इन निकायों में महिलाओं को शामिल करना सुनिश्चित होगा। सूत्रों ने कानून में संशोधन के लिए न्यायमूर्ति सच्चर आयोग और के. रहमान खान की अध्यक्षता वाली संसद की संयुक्त समिति की सिफारिशों का हवाला दिया। सरकार के फैसले से अवगत एक सूत्र ने कहा, ‘‘समुदाय के भीतर से पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए कानून में संशोधन की मांग की गई है। उच्च न्यायालय के कुछ मुस्लिम न्यायाधीशों ने कहा था कि वक्फ बोर्ड द्वारा लिए गए फैसले को अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती। अब संशोधन विधेयक इसे सही करने का प्रयास करता है।’’
उधर, ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा, ‘‘भाजपा सरकार हमेशा ऐसा करना चाहती थी। 2024 (लोकसभा) चुनाव संपन्न होने के बाद, हमने सोचा था कि भाजपा के रवैये में बदलाव आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालांकि, मुझे लगता है कि यह सही कदम नहीं है।’’ वकील रईस अहमद ने कहा कि यह एक ‘‘गलत धारणा’’ है कि वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है। उन्होंने कानून में संशोधन के कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड मुसलमानों के लाभ के लिए बनाया गया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने एक बयान में कहा कि बोर्ड इस कदम को विफल करने के लिए सभी प्रकार के कानूनी और लोकतांत्रिक उपाय अपनाएगा।
प्रस्तावित संशोधनों को लेकर निशाना साधते हुए ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘‘भाजपा शुरू से ही वक्फ बोर्ड और वक्फ संपत्तियों के खिलाफ रही है और उसने अपने हिंदुत्व एजेंडे के तहत वक्फ संपत्तियों तथा वक्फ बोर्ड को खत्म करने का प्रयास शुरू किया है।’’
इस बीच, अल्पसंख्यक मामलों के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने रविवार को ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘वक्फ की कार्यशैली को ‘टच मी नॉट’ (अछूत) की सनक-सियासत से बाहर आना होगा।’’ उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘समावेशी सुधारों पर सांप्रदायिक वार ठीक नहीं है।''
दूसरी ओर, इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि वक्फ बोर्ड के पास 10 लाख एकड़ जमीन है अर्थात दुनिया के 50 देशों से ज्यादा जमीन है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार सराहनीय कदम उठा रही है।
वक्फ बोर्ड से संबंधित विवादों पर एक नजर
जहां तक वक्फ बोर्ड की बात है तो आपको बता दें कि यह जमीन कब्जाने वाला एक संगठन बन कर रह गया है। वोट बैंक की सियासत के चलते कांग्रेस सरकारों ने वक्फ बोर्ड के काले कारनामों की हमेशा अनदेखी की। कांग्रेस सरकारों ने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते वक्फ बोर्ड के फलने-फूलने के लिए कई रास्ते खोले। कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड को असीम शक्तियां दीं जिसके चलते वक्फ बोर्ड की संपत्ति दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ने लगी। वक्फ बोर्ड के महत्वपूर्ण पदों पर बड़े नेता और दबंग आसीन होने लगे और महत्वपूर्ण जमीनों पर कब्जा कर बंदरबांट का खेल शुरू हो गया।
देखा जाये तो वक्फ बोर्ड में कुंडली मारे बैठे लोगों का धर्म-कर्म से कोई नाता नहीं रह गया है, इनका सारा ध्यान ऐसी जमीनों को हथियाने पर लगा रहता है जिसको लेकर कहीं कोई विवाद चल रहा हो या फिर या फिर ऐसी कोई जमीन हो जिसका कोई वैध वारिस नहीं हो। इसके अलावा वक्फ बोर्ड जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। जिसके चलते अवैध मजारों और नई-नई मस्जिदों की भी बाढ़-सी आ रही है। 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है? इसको लेकर कानून में बिल्कुल भी स्पष्टता नहीं है। अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है, सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है। कौन नहीं जानता है कि कई परिवारों के पास पुस्तैनी जमीन के पुख्ता कागज नहीं होते हैं। वक्फ बोर्ड इसी का फायदा उठाता है क्योंकि उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना है। इसी के चलते वक्फ बोर्ड की संपत्ति में लगातार बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है। वक्फ बोर्ड को अपनी दावेदारी साबित करने के लिए कुछ ज्यादा नहीं करना पड़ता है, वह एक बैनर या बोर्ड लगाकर किसी भी संपत्ति को अपना बता देता है।
हम आपको बता दें कि 1947 में आजादी मिलने के साथ भारत के बंटवारे से पाकिस्तान नया देश बना। तब जो मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए, उनकी जमीनों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया था। उसी समय 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते में तय हुआ था कि विस्थापित होने वालों का भारत और पाकिस्तान में अपनी-अपनी संपत्तियों पर अधिकार बना रहेगा। वो अपनी संपत्तियां बेच सकेंगे। हालांकि, पाकिस्तान में नेहरू-लियाकत समझौते के अन्य प्रावधानों का जो हश्र हुआ, वही हश्र इसका भी हुआ।
हिन्दुस्तान में तो वोट बैंक की सियासत के चलते वक्फ बोर्ड खूब फलाफूला वहीं पाकिस्तान में हिंदुओं की छोड़ी जमीनें, उनके मकानों, अन्य संपत्तियों पर वहां की सरकार या स्थानीय लोगों का कब्जा हो गया। उसी समय भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यहां से पाकिस्तान गए मुसलमानों की संपत्तियों को कोई हाथ नहीं लगाएगा। इसके बाद 1954 में वक्फ बोर्ड का गठन हुआ। देखा जाये तो दुनिया के किसी इस्लामी देश में वक्फ बोर्ड नाम की कोई संस्था नहीं है। यह सिर्फ भारत में है जो इस्लामी नहीं, धर्मनिरपेक्ष देश है।
वक्फ बोर्ड पर सरकारें कैसे मेहरबान रहती थीं इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्ष 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय देखने को मिला जब केन्द्र सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं। इसके बाद वर्ष 2013 में मनमोहन सरकार ने वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन कर इसे और शक्तियां प्रदान कर दीं। हम आपको बता दें कि बड़ी बात है कि अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दिया गया है तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते। आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी। वक्फ बोर्ड का फैसला आपके खिलाफ आया, तब भी आप कोर्ट नहीं जा सकते। तब आप वक्फ ट्राइब्यूनल में जा सकते हैं। इस ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं। उसमें गैर-मुस्लिम भी हो सकते हैं। हालांकि, राज्य की सरकार किस दल की है, इस पर निर्भर करता है कि ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे। संभव है कि ट्राइब्यूनल में भी सभी के सभी मुस्लिम ही हो जाएं। वैसे भी अक्सर सरकारों की कोशिश यही होती है कि ट्राइब्यूनल का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों के साथ ही हो। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है।
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