जब संसद में राहुल गांधी सरकार को घेर रहे थे, उसी समय अदालत में सोनिया गांधी पर उठ गया बड़ा सवाल

हम आपको बता दें कि यह मामला वर्षों से विवादों में रहा है, लेकिन राहुल गांधी द्वारा सदन में चुनावी गड़बड़ियों पर आक्रामक हमला करने वाले दिन ही इस मामले का फिर उभर आना भारतीय राजनीति में गहरी प्रतीकात्मकता छोड़ता है।
जिस दिन लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी मतदाता सूचियों के विशेष पुनरीक्षण और कथित वोट चोरी के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेर रहे थे, ठीक उसी दिन उनकी माँ और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी से जुड़ा एक पुराना लेकिन गंभीर आरोप फिर सुर्खियों में आ गया। दरअसल, दिल्ली की एक विशेष अदालत ने आज कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस से उस पुनरीक्षण याचिका पर जवाब माँगा, जिसमें यह चुनौती दी गई है कि मजिस्ट्रेट ने 1980 में उनके नाम को मतदाता सूची में शामिल किए जाने की शिकायत पर जाँच करने से इंकार क्यों किया। यह याचिका अधिवक्ता विकास त्रिपाठी ने दायर की है, जिनका दावा है कि सोनिया गांधी का नाम 1980 में मतदाता सूची में शामिल किया गया था, जबकि वह 1983 में भारतीय नागरिक बनी थीं। अर्थात् भारतीय नागरिक बनने से तीन वर्ष पहले ही सोनिया गांधी को मतदाता सूची में शामिल कर लिया गया था। हम आपको बता दें कि मजिस्ट्रेट ने इस याचिका को सितंबर में यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह शिकायत कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग प्रतीत होती है और आरोप बिना ठोस साक्ष्यों के लगाए गए हैं। लेकिन अब विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने इस मामले में नोटिस जारी कर 6 जनवरी 2026 को आगे की सुनवाई की तारीख दे दी है।
हम आपको बता दें कि याचिकाकर्ता का आरोप है कि वर्ष 1980 की कथित मतदाता सूची में उनका नाम होना किसी जालसाजी या धोखाधड़ी का संकेत देता है। हालांकि पहले मजिस्ट्रेट ने इसे मात्र फोटोकॉपी की फोटोकॉपी बताते हुए अविश्वसनीय माना था। हम आपको बता दें कि यह मामला वर्षों से विवादों में रहा है, लेकिन राहुल गांधी द्वारा सदन में चुनावी गड़बड़ियों पर आक्रामक हमला करने वाले दिन ही इस मामले का फिर उभर आना भारतीय राजनीति में गहरी प्रतीकात्मकता छोड़ता है।
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दूसरी ओर, कांग्रेस ने अपनी पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के 79वें जन्मदिन पर उन्हें दूरदर्शी नेता बताते हुए बधाइयों की बौछार कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सोनिया गांधी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं हैं। देखा जाये तो सोनिया गांधी की राजनीतिक यात्रा जितनी लंबी और प्रभावशाली रही है, उतनी ही विवादों से घिरी भी रही है। दिलचस्प यह है कि उनके 79वें जन्मदिन पर एक बार फिर वही पुराना प्रश्न सामने आ खड़ा हुआ कि क्या 1980 में उनका नाम गलत तरीके से मतदाता सूची में दर्ज हुआ था? वैसे यह आरोप नया नहीं है, लेकिन अदालत द्वारा नोटिस जारी होते ही राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ गई है। दूसरी ओर, सोनिया गांधी को उनके जन्मदिन पर कांग्रेस ने उन्हें अधिकार आधारित कानूनों की जननी बताते हुए महिमामंडित किया है और कहा है कि मनरेगा, आरटीई, आरटीआई, खाद्य सुरक्षा कानून आदि निश्चित रूप से व्यापक प्रभाव वाले निर्णय थे। लेकिन यह भी सच है कि इन उपलब्धियों के समानांतर कई विवाद भी चलते रहे जैसे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की संवैधानिक स्थिति पर प्रश्न, विदेशी मूल का मुद्दा, 10 जनपथ की निर्णय-शैली और अब फिर से वही मतदाता सूची का मामला।
माना जाता है कि सोनिया गांधी का भारत की राजनीति में प्रवेश अनायास था, लेकिन उनकी यात्रा बेहद असाधारण रही। 1998 में उन्होंने कांग्रेस की कमान संभाली, लगभग दो दशकों तक वह पार्टी की अध्यक्ष रहीं, यह भारत के इतिहास में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में किसी के कार्यकाल की सबसे लंबी अवधि थी। सोनिया गांधी यूपीए सरकारों के दौरान निर्णायक शक्ति मानी जाती थीं। उन्होंने राहुल और प्रियंका को आगे बढ़ाकर परिवार की राजनीतिक विरासत को संरक्षित करने में सफलता भी हासिल की है। देखा जाये तो यह यात्रा जितनी प्रभावशाली है, उतनी ही आलोचनाओं से भी भरी है। त्याग की मूर्ति से लेकर सत्ता का केंद्र तक, दो परस्पर विपरीत नैरेटिव हमेशा उनके साथ चले।
कुल मिलाकर देखें तो सोनिया गांधी की राजनीतिक यात्रा निर्विवाद रूप से भारतीय राजनीति के केंद्र में रही है। लेकिन केंद्र में होना केवल तालियों का अधिकार नहीं देता, यह जवाबदेही भी माँगता है। अदालत की अगली तारीख पर क्या निकलता है, यह भविष्य बताएगा। परंतु इतना तो स्पष्ट है कि जन्मदिन पर लौट आया यह विवाद उनके राजनीतिक अध्याय पर एक और बड़ा सवाल खड़ा कर चुका है।
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