Jan Gan Man: संपत्ति को आधार से लिंक करने की राह में क्यों अटकाये जा रहे हैं रोड़े?

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सरकारें भले प्रयास नहीं कर रही हों और खुद को कट्टर ईमानदार बताने वाले मुख्यमंत्री भले संपत्ति को आधार से जोड़ने की राह में अड़चन पैदा कर रहे हों लेकिन भारत के पीआईएल मैन और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने जो संकल्प लिया है वह उसे सिद्ध किये बिना रुकते नहीं हैं।

आधार कार्ड लोगों के बैंक अकाउंट और पैन कार्ड के साथ लिंक हुआ तो काले धन पर कुछ अंकुश लगा। आधार कार्ड आपके राशन कार्ड और एलपीजी कनेक्शन से जुड़े तो गरीबों के हिस्सा मारने वाले कालाबाजारियों पर गाज गिरी, आधार कार्ड मतदाता सूची से जुड़ा तो कई क्षेत्रों की मतदाता सूची में अपना नाम शामिल करवा कर फर्जी वोट डालने का खेल बंद होने लगा। आधार कार्ड के जरिये ही केंद्र और राज्य सरकारों की तमाम कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लाभार्थियों के बैंक खाते तक सीधा पहुँचने लगा और बिचौलियों की भूमिका खत्म होने लगी। इस तरह आधार कार्ड ने जहां नागरिकों को तमाम सुविधाओं का लाभ दिलाया है वहीं भ्रष्टाचार पर भी करारी चोट की है। परन्तु अब भी एक ऐसा क्षेत्र बाकी है जिस पर यदि ध्यान नहीं दिया गया तो बेनामी संपत्ति या भ्रष्टाचार जैसी बड़ी बुराइयां कभी खत्म नहीं होगी। हम बात कर रहे हैं संपत्ति को आधार से जोड़ने की। सरकारें भले इस दिशा में प्रयास नहीं कर रही हों और खुद को कट्टर ईमानदार बताने वाले मुख्यमंत्री भले संपत्ति को आधार से जोड़ने की राह में अड़चन पैदा कर रहे हों लेकिन भारत के पीआईएल मैन और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने जो संकल्प लिया है वह उसे सिद्ध किये बिना रुकते नहीं हैं। बेनामी संपत्ति का उदाहरण आप ऐसे समझ सकते हैं कि रेल मंत्री रहने के दौरान लालू प्रसाद यादव पर नौकरी के बदले जमीन घोटाला मामले के जो आरोप लगे। आरोप है कि नौकरी के बदले अभ्यर्थियों ने लालू परिवार के नाम पर अपनी संपत्ति की रजिस्ट्री कराई। सोचिये यदि संपत्ति को आधार से लिंक करने का प्रावधान पहले से होता तो यह चोरी तभी पकड़ ली जाती।

बहरहाल, जहां तक अश्विनी उपाध्याय की याचिका की बात है तो आपको बता दें कि इस सप्ताह उनकी याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने केन्द्र से जवाब दाखिल करने को कहा है। अश्विनी उपाध्याय की याचिका में भ्रष्टाचार, काले धन के सृजन और 'बेनामी' लेन-देन पर अंकुश लगाने के लिए लोगों की चल-अचल संपत्ति के दस्तावेजों को आधार संख्या से जोड़ने की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पीठ ने वित्त, कानून, आवास और शहरी मामलों तथा ग्रामीण विकास मंत्रालयों को याचिका पर जवाब दायर करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "यह एक अच्छा मामला है और जवाब आने दें।" पीठ ने कहा कि मामले में आगे की सुनवाई 18 जुलाई को होगी।

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सुनवाई के दौरान, केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे केंद्र सरकार के स्थायी अधिवक्ता मनीष मोहन के साथ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने इस मुद्दे को महत्वपूर्ण बताया। उधर, याचिकाकर्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि यह राज्य का कर्तव्य है कि वह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए उचित कदम उठाए और अवैध तरीकों से अर्जित 'बेनामी' संपत्तियों को जब्त करे ताकि यह संदेश दिया जा सके कि सरकार भ्रष्टाचार और काले धन के सृजन से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। हम आपको बता दें कि अश्विनी उपाध्याय की याचिका में कहा गया है, "अगर सरकार संपत्ति को आधार से जोड़ती है, तो इससे वार्षिक प्रगति में दो प्रतिशत की वृद्धि होगी। यह चुनाव प्रक्रिया को ठीक करेगी, जिसमें काले धन और बेनामी लेनदेन का प्रभुत्व रहता है।’’ 

हम आपको यह भी बता दें कि इस मामले में 2019 में दायर एक हलफनामे में दिल्ली सरकार ने कहा था कि आधार को संपत्ति पंजीकरण और भूमि के दाखिल-खारिज के वास्ते पहचान के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन यह केवल एक वैकल्पिक आवश्यकता होती है और कानून में इसे अनिवार्य बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। सोमवार को भी सुनवाई के समय दिल्ली सरकार ने इस मुद्दे पर विचार के लिए और समय मांग लिया जिस पर अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि यह खुद को कट्टर ईमानदार बताने वालों की काली सच्चाई है। उन्होंने कहा है कि यदि आधार को संपत्ति से लिंक किया जाता है तो इससे कालाधन, हवाला, अपहरण, सूदखोरी, घूसखोरी, जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावटखोरी, मुनाफाखोरी, कमीशनखोरी, नशा तस्करी और मानव तस्करी ही नहीं बल्कि जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, माओवाद, नक्सलवाद, जिहाद और मजहबी उन्माद पर भी नियंत्रण होगा। उन्होंने कहा कि साथ ही इससे घरेलू ड्राईवर, घरेलू सहायक और रिश्तेदारों के नाम पर प्लॉट, फ्लैट, बंगला और फॉर्म हाउस खरीदने वाले सफेदपोश पाखंडियों का कालाधन, बेनामी संपत्ति और आय से अधिक संपत्ति पकड़ना भी बहुत आसान हो जायेगा। आइये देखते हैं मामले में सुनवाई टलने के बाद अश्विनी उपाध्याय ने इस विषय की गंभीरता पर कैसे प्रकाश डाला है।

-नीरज कुमार दुबे

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