37 साल बाद मिला CM, पूर्ण राज्य बनाने की मांग, आखिर इतनी पेचीदगियों से क्यों भरी है दिल्ली की व्यवस्था, केंद्र क्यों चाहता है कंट्रोल

Delhi
ANI
अभिनय आकाश । Apr 29 2022 8:13PM

1956 तक दिल्ली की अपनी विधानसभा होती थी। दिल्ली में पहली बार विधानसभा के चुनाव 1952 में हुए थे। राज्य के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के चौधरी ब्रह्मप्रकाश बने। चौधरी ब्रह्मप्रकाश 1952 से 1955 तक मुख्यमंत्री रहे फिर जीएन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया।

राजधानी दिल्ली में क्षेत्राधिकार को लेकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच अदालती लड़ाई चल रही है। केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि दिल्ली देश की राजधानी है इसलिए नियंत्रण जरूरी है। दिल्ली सरकार बनाम केंद्र मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर अब केंद्रीय अधिकार की वकालत की गई है। दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का मसला संविधान पीठ को सौंपने पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने संकेत दिया है कि अगर मामला 5 जजों की बेंच को भेजा जाता है, तो भी सुनवाई 15 मई तक पूरा करने की कोशिश की जाएगी। मामले की सुनवाई करते हुए जब सीजेआई ने पूछा कि अब सरकार क्या विधानसभा के अधिकार को लेकर पीछे हट रही है? जिस पर तुषार मेहता ने दुनिया के कई विकसित देशों की राजधानियों का जिक्र करते हुए संविधान के मुताबिक दिल्ली के विधानसभा को दिए अधिकारों का हवाला दिया। मेहता ने कहा कि विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होते हुए भी दिल्ली की स्थिति पुडुचेरी से अलग है। इन विषयों के विधानसभा और दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर करने के पीछे भी बड़ी प्रशासनिक और संवैधानिक वजहें हैं। यहां केंद्र राज्य यानी संघीय स्वरूप पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर को रोकने के लिए यह व्यवस्था की गई है। राष्ट्रीय राजधानी होने से यहां केंद्र के पास अहम मुद्दे होने जरूरी हैं। दिल्ली को लेकर केंद्र बनाम राज्य की लड़ाई कोई नई नहीं है। एक साल पहले भी गर्वमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2021 को पास किया गया था और उपराज्यपाल को कुछ और अधिकार दिए गए थे। आप ने इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। आम आदमी पार्टी की तरफ से केंद्र सरकार पर चुनी हुई सरकार के कामकाज में उपराज्यपाल के माध्यम से अवरोध पैदा करने के आरोप लगाए जाते रहे हैं।

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अंग्रेजों ने दिल्ली को ब्रिटिश इंडिया की राजधानी बनाया

साल 1803 में दिल्ली अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गई। भारत की राजधानी 1911 में कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित हुई। ब्रिटेन के राजा रानी उस समय भारत के दौरे पर आए हुए थे और उन्होंने दिल्ली के बाहरी इलाके में आयोजित दिल्ली दरबार में यह ऐलान किया था कि भारत की राजधानी कलकत्ता की बजाय अब दिल्ली होगी। 13 फरवरी 1931 को दिल्ली 20 सालों के इंतजार के बाद अविभाजित भारत की राजधानी बनी। आजादी के बाद दिल्ली को ही भारत की राजधानी बनाया गया। 

3 किस्म के राज्यों की व्यवस्था

आजादी के बाद बने संविधान में तीन किस्म के राज्यों की व्यवस्था की गई थी। ए कैटेगरी में नौ राज्य शामिल थे। जिसमें चुने गए राज्यपाल और विधानसभा के माध्यम से संचालिक किया जाना था। दूसरी कैटेगरी यानी बी में आठ राज्यों को रखा गया। इन राज्यों का शासन राष्ट्रपति के द्वारा चुने गए राजप्रमुख और जनता के द्वारा चुनी गई विधानसभा के द्वारा चलाया जाना था। तीसरी यानी सी कैटेगरी में राज्यों का शासन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर के माध्यम से चलाया जाना था। दिल्ली इसी कैटेगरी में आती थी। 

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दिल्ली में विधानसभा 

1956 तक दिल्ली की अपनी विधानसभा होती थी। दिल्ली में पहली बार विधानसभा के चुनाव 1952 में हुए थे। राज्य के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के चौधरी ब्रह्मप्रकाश बने। चौधरी ब्रह्मप्रकाश 1952 से 1955 तक मुख्यमंत्री रहे फिर जीएन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन 1956 में राज्य पुनर्गठन कानून की वजह से राज्यों का बंटवारा हुआ और दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बन गया। इस दौरान विधानसभा को भंग कर दिया गया। 1966 में दिल्ली को एक महानगर पालिका का रूप दे दिया गया। 1991 में संविधान में संशोधन करके इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किया गया। नए परिसीमन के तहत विधानसभा का गठन किया गया। लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासक बनाया गया। संवैधानिक बदलावों के लिए नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट 1991 पास किया गया। इसी नए कानून के तहत 1993 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए। बीजेपी ने बहुमत से सरकार बनाई। मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।

कहां फंसा है पेंच

आप कह रहें होंगे की विधानसभा हो गई अब भला क्या परेशानी है। तो बता दें कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश होने के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भी है, जिसकी वजह से इसकी प्रशासनिक स्थिति काफी पेचीदा है। यहां चुनाव आयोग के द्वारा अन्य राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की तरह चुनाव कराया जाता है और जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार शासन करती है। लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने की वजह से इसमें केंद्र सरकार का भी दखल रहता है। खासकर पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि अधिकार के संबंध में। मतलब दोनों के द्वारा मिलकर दिल्ली को चलाया जाता है और यहीं मामला अटक जाता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने एलजी को दिल्ली का एडमिनिस्ट्रेटिव बॉस बताया था। जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि दिल्ली में जमीन, पुलिस या पबल्कि ऑर्डर से जुड़े फैसलों के अलावा राज्य सरकार को उपराज्यपाल से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। हालांकि दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए फैसले की सूचना उपराज्यपाल को दी जाएगी।

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अन्य देशों की राजधानी को लेकर क्या है सिस्टम?

राजधानी वाले शहरों में एक अलग तरह की व्यवस्था दुनिया के कई देशों में है और वहां केंद्रीय सरकार का नियत्रंण है। अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन, ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा और कनाडा की राजधानी ओटावा में संघीय सरकार हैं। यहां अन्य राज्यों की तर्ज पर अलग से कोई प्रशासनिक इकाई नहीं होती है। वहीं विभिन्न राजनीतिक दलों की तरफ से देश की सत्ता सेंटर में रह कर चलाई जाती है। इस सिस्टम की वजह से पॉवर सेंटर और एक ही जगह दो सरकार की वजह से विरोधाभास जैसी चीजें नजर नहीं आती। जबकि दिल्ली में अक्सर आपने सीएम को ये कहते हुए सुना होगा कि मोदी जी हमें काम नहीं करने दे रहे और कई बार तो नौबत एलजी के दफ्तर में धरने तक भी पहुंच गई।

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