के चंद्रशेखर राव क्यों कर रहे हैं पीएम मोदी की इतनी आलोचना, इन 5 वजहों से समझिये

केसीआर भारतीय प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए राज्य सरकार के अधिकारों में दखल, जीएसटी, प्रशासनिक सेवाओं में नियुक्ति जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। लेकिन क्या केसीआर प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना बस इन्हीं वजहों से कर रहे हैं या प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना के पीछे वास्तविक कारण कुछ और है।
हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के बड़े आलोचक बन के उभरे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) 2024 के चुनाव को लेकर अभी से मोर्चाबंदी में जुट गए हैं। रविवार को एक दिवसीय दौरे पर मुंबई पहुंचे केसीआर ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और एनसीपी के मुखिया शरद पवार से मुलाकात की। मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने एक ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस की। केसीआर ने कहा आज देश की राजनीति और विकास का आजादी के 75 साल बाद जो हाल है। उस पर चर्चा करने के लिए मैं महाराष्ट्र आया हूं। लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में केसीआर की अचानक सक्रियता की वजह क्या है?
केसीआर भारतीय प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए राज्य सरकार के अधिकारों में दखल, जीएसटी, प्रशासनिक सेवाओं में नियुक्ति जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। लेकिन क्या केसीआर प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना बस इन्हीं वजहों से कर रहे हैं या प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना के पीछे वास्तविक कारण कुछ और है। प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना के पीछे वास्तविक कारणों का अंदाजा इन बातों से लगाया जा सकता है।
तीसरी पारी
राजनीति में कुछ भी संभव है। केसीआर ने कभी नहीं सोचा होगा कि उन्हें तीसरी पारी खेलने का मौका मिल सकता है। हाल फिलहाल के प्रेस बैठकों में वह कहते हैं जब मेरा जन्म हुआ होगा तब क्या मेरे पिता ने सोचा होगा कि 1 दिन में मुख्यमंत्री बनूंगा। राजनीति में कुछ भी संभव है। केसीआर ने अपनी सियासत तेलुगू देशम पार्टी के साथ शुरू की थी। वह मिडल लेवल के नेता थे और कुछ वक्त तक उन्होंने इस स्थिति में काम किया। यह उनके राजनीतिक जीवन की पहली पारी थी। केसीआर स्वर्गीय एनटी रामा राव के बड़े प्रशंसक हैं। उन्होंने अपने बेटे का नाम उन पर ही रखा है।
सियासी जीवन की दूसरी पारी में उन्होंने अपनी पार्टी का गठन किया और बीते दो दशकों के दौरान तमाम बाधाओं को पार करते हुए अपनी पार्टी स्थापित की। तेलंगाना राज्य के गठन के साथ वो न केवल मुख्यमंत्री बने बल्कि निर्विवादित रूप से राज्य के सबसे बड़े नेता बन गए। मौजूदा समय में उन्होंने अपने लिए बड़ा लक्ष्य रखा है। उनका ध्यान दिल्ली की ओर है।
प्रधानमंत्री मोदी को बनाया नया दुश्मन
राजनीति में कहा जाता है कि कोई दुश्मन नहीं होता, केवल विरोधी होते हैं। लेकिन केसीआर की सियासत में हमेशा एक दुश्मन रहा है। बीजेपी की सियासत की तरह ही तेलंगाना राष्ट्र समिति की सियासत में ध्रुवीकरण एक पहलू रहा है। आंध्र प्रदेश के विभाजन के समय संसदीय प्रक्रिया का सही से पालन नहीं हुआ और तेलंगाना के गठन का प्रस्ताव संसद में बंद दरवाजे से अंधेरे में लिया गया जैसे मोदी का बयान इस्तेमाल करते हुए केसीआर उन्हें राज्य के दुश्मन के तौर पर पेश करते हैं। वो हर चुनाव में मतदाताओं को भावनात्मक रूप से जोड़ने के लिए किसी ना किसी को दुश्मन बनाते रहे हैं। 2009 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की अगुवाई वाली कांग्रेस दुश्मन थी। 2014 में आंध्र प्रदेश के नेता दुश्मन थे। 2019 में चंद्रबाबू नायडू दुश्मन थे। आज की तारीख में मोदी उनके नए दुश्मन हैं।
बीजेपी का नया लक्ष्य और बदलते समीकरण
हाल फिलहाल तक बीजेपी के टीआरएस के सथ उनके रिश्ते मधुर थे। बीजेपी संसद में जो प्रस्ताव रखती टीआरएस संसद में उसका समर्थन करती थी। माना जाता है जब तक तेलंगाना बीजेपी की कमान किशन रेड्डी के हाथों में थी, तब तक दोनों पार्टी एक सीमा तक ही एक दूसरे की आलोचना करती थीं।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं। बीजेपी के लिए उत्तर भारत में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अब ज्यादा जगह नहीं है। ऐसे में बीजेपी उन राज्यों की ओर देख रही है जहां वह अपनी ताकत बढ़ा सकती है। भगवा पार्टी दक्षिण भारत में भी अपना विस्तार चाहती है और तेलंगाना उसी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा ने तेलंगाना को पश्चिम बंगाल के बाद अपना नया लक्ष्य बनाया है।
भाजपा का युवा नेतृत्व तेलंगाना में केसीआर पर रोज हमले कर रहा है। दरअसल हैदराबाद नगर निगम में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन और 2 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में जीत ने बीजेपी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा दिया है। जातिगत समीकरण भी कुछ बदले हुए नजर आते हैं। अतीत में राज्य बीजेपी की कमान वेलम्मा और रेड्डी जाति के नेताओं के पास थी। अब टीआरएस की कमान भी वेलम्मा नेतृत्व के हाथों में है, ऐसे में बीजेपी पिछड़ी जातियों पर भरोसा कर रही है। यहां बीजेपी की मजबूती की सबसे बड़ी वजह है कि पिछड़ी जातियां उस पर भरोसा कर रही हैं। और यह टीआरएस के लिए खतरा हो सकता है। केसीआर जिस तरह से मोदी की लगातार आलोचना कर रहे हैं उससे यह भी संकेत मिलता है कि टीआरएस के लिए मुख्य विपक्षी दल तेलंगाना में अब बीजेपी है। ऐसे में आने वाले दिनों में इन दोनों राजनीतिक दलों में टकराहट और बढ़ सकती है।
रणनीति एक निशाने दो
केसीआर की चुनावी राजनीति में मोदी को चुनौती देने का फैसला बेहद महत्वपूर्ण है। वह एक रणनीति से दो निशाने लगाना चाहते हैं। जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगा तो असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राहुल गांधी पर आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करते हुए हमला बोला। केसीआर ने असम के मुख्यमंत्री के बयान को आधार बनाकर मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, ऐसी अपमानजनक भाषा से मेरी आंखों में आंसू आ गए। आप ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं? यह आप की संस्कृति है? क्या आप उन्हें पार्टी से हटाएंगे?
केसीआर की यही रणनीति मानी जाती है कि वह अपना दुश्मन जिसे घोषित कर देते हैं, उस पर हमला शुरू कर देते हैं। दूसरी ओर राज्य में कांग्रेस विपक्षी पार्टी है लेकिन उसके प्रति सहानुभूति दिखाकर उन्होंने यह संकेत दिया कि राज्य में उनको कांग्रेस से कोई खतरा नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी के बिना किसी तीसरे मोर्चे का आगे बढ़ पाना संभव नहीं होगा। केसीआर ने इस पहल के साथ आने वाले दिनों में जरूरत पड़ने पर कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं का रास्ता भी खोल दिया है। कांग्रेस के साथ गठबंधन टीआरएस के लिए नई बात नहीं है। दोनों पार्टियां अतीत में भी एक साथ आ चुकी हैं अतीत मेरे देखें तो केसीआर ने यहां तक घोषणा की थी कि अगर तेलंगाना को राज्य का दर्जा मिल जाता है तो वो टीआरएस इस का विलय है कांग्रेस में कर देंगे।
लक्ष्य नहीं बदला गति बदली है
इन दिनों राष्ट्रीय मीडिया में किसी और केसीआर को लेकर जो खबरें और विश्लेषण लिखे जा रहे हैं आने वाले दिनों में वह और बढ़ सकते हैं। केसी र का केंद्र में दिखना भले नया लग रहा हो लेकिन उनकी महत्वकांक्षी पुरानी है। तेलंगाना में दूसरी बार सरकार बनने के बाद 2019 के आम चुनावों से ठीक पहले उन्होंने एक मोर्चा बनाने की कोशिश की थी। तब उन्होंने मौका लपकने की कोशिश की थी। वो ममता बनर्जी से मिलने बंगाल भी गए। उन्होंने एम के स्टालिन, नवीन पटनायक और पीनारायी विजयन से भी बातचीत की। केसीआर देवेगौड़ा से भी मिले।
बीजेपी 2019 में बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल रही। अब दो साल बाद लोकसभा चुनाव होने हैं लेकिन केसीआर एक बार फिर अपनी कोशिशें शुरू कर चुके हैं। इसी कड़ी में वो तीसरा मोर्चा बनाने के लिए क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मिल रहे हैं। उन्होंने चुनावी जंग का बिगुल फूंक दिया है और संकेत दे रहे हैं कि मोदी को चुनौती देने वाले संभावित नेताओं में सबसे आगे हैं।
मौजूदा समय में तेलुगु भाषी क्षेत्र में केसीआर जैसी वाकपटुता किसी दूसरे नेता में नहीं है। धाराप्रवाह हिंदी बोलना उनकी खासियत है। केसीआर को राजनीतिक तौर पर ऐसा लग रहा है कि भारतीय राजनीति अभी उस दौर में है जहां आने वाले दिनों में कुछ भी संभव है। उन्होंने यह सुनिश्चित कर लिया है कि लोग उनकी आंख मक्का पर ध्यान दे रहे हैं और वह चर्चा में बने हुए हैं।
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