बिहार में नीतीश कैबिनेट का क्यों नहीं हो पा रहा विस्तार? यहां जानें कारण

Nitish
अंकित सिंह । Jan 20 2021 2:05PM

ऐसे में देखें तो बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार अति आवश्यक है। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि विस्तार से विकास की रफ्तार को धार तो मिलेगी ही इसके अलावा वर्तमान मंत्रियों के पास जो दो-तीन विभाग हैं, वह कम भी हो जाएंगे।

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली नई सरकार के गठन को 2 महीने से ज्यादा हो गए है। लेकिन अभी भी कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पाया है। 16 नवंबर को नीतीश कुमार के अतिरिक्त 14 अन्य मंत्रियों ने शपथ ली थी। इन 14 मंत्रियों में भाजपा के कोटे से सात मंत्री थे जबकि जदयू से पांच, हम और वीआईपी पार्टी से 1-1 मंत्री थे। मेवालाल चौधरी के इस्तीफे के बाद अब जदयू कोटे के सिर्फ चार ही मंत्री हैं। ऐसे में देखें तो बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार अति आवश्यक है। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि विस्तार से विकास की रफ्तार को धार तो मिलेगी ही इसके अलावा वर्तमान मंत्रियों के पास जो दो-तीन विभाग हैं, वह कम भी हो जाएंगे। 

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लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर यह विस्तार क्यों नहीं हो पा रहा है? क्या भाजपा और जदयू में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है? या फिर कहीं ना कहीं अभी भी दांव-पेंच की गुंजाइश नजर आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि नीतीश मंत्रिमंडल में भाजपा अब बड़े भाई की भूमिका चाहती है लेकिन जदयू किसी भी कीमत पर राजी नहीं है। जदयू 50-50 फार्मूले के तहत आगे बढ़ना चाहती है। वर्तमान चुनाव की बात करें तो भाजपा 74 सीटों के साथ जदयू से आगे है। जदयू को इस चुनाव में सिर्फ 43 सीटें ही हासिल हो पाई थी। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकास इंसाफ पार्टी को 4-4 सीटें मिली। संवैधानिक प्रावधान के लिहाज से देखें तो 243 सदस्यों वाली बिहार विधान सभा से 15 फ़ीसदी सदस्य मंत्री बनाए जा सकते हैं। यानी कि कुल 36 लोगों को मंत्री बनाया जा सकता है।

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पिछले कैबिनेट की बात करें तो जदयू कोटे से मुख्यमंत्री को मिलाकर 22 मंत्री थे जबकि उपमुख्यमंत्री के अलावा भाजपा कोटे से 12 मंत्री थे। उस दौरान जदयू के विधायकों की संख्या 71 थी और भाजपा की संख्या 54 थी। लेकिन इस बार यह बिल्कुल उल्टा है। ऐसे में भाजपा नीतीश कैबिनेट में ज्यादा मंत्री पद मांग रही है। पिछली सरकार में नीतीश मंत्रिमंडल का बटवारा 3.5 विधायकों पर एक मंत्री पद का था। भाजपा इस बार भी वही फार्मूला अपनाना चाहती है। अगर यह फार्मूला अपनाया जाता है तो जदयू को संख्या बल के हिसाब से 14 मंत्री पद मिलेंगे जबकि भाजपा के हिस्से में 19 आएंगे। लेकिन जदयू अब इस फार्मूले पर राजी नहीं हो रही है।

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नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि सिर्फ 14 मंत्रियों के जरिए वह बिहार में अपना क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण को कैसे साध पाएंगे। जदयू चाहती है कि हर क्षेत्र से उसके मंत्री बने। इसीलिए वह 50-50 के फार्मूले को ज्यादा महत्व दे रही है। जबकि भाजपा यह चाहती हैं कि उसके 19 लोग मंत्री बनेंगे तो कहीं ना कहीं उसे संगठन के विस्तार में राज्य में मदद मिलेगी। अब तक कैबिनेट विस्तार को लेकर पूछे जा रहे सवालों को नीतीश टालते रहे हैं। कभी वह यह भी कह देते हैं कि कि भाजपा की तरफ से अब तक सूची नहीं आई है। ऐसे में वह क्या कर सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है बिहार में मंत्रिमंडल का विस्तार कब होगा? शाहनवाज हुसैन के जाने से अब बिहार मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर नए-नए कयास लगाए जा रहे हैं।

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