मोदी सरकार के अध्यादेश से केजरीवाल केवल नाम के CM रह जाएंगे? क्या इसे दी जा सकती है चुनौती, अब केंद्र और SC में भी हो सकता है टकराव, हर पेंच यहां समझें

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अभिनय आकाश । May 20 2023 12:49PM

दिल्ली में आला अफसरों के ट्रांसफर- पोस्टिंग अब दिल्ली सरकार नहीं कर सकेगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र ने देर रात जारी अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए सिविल सर्विस अथॉरिटी बनाने का फैसला किया है। राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी।

सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार को अधिकारों की लड़ाई का विजेता घोषित किए हुए अभी हफ्ता भर ही गुजरा था कि केंद्र की तरफ से बैक टू बैक दो दिनों में दो बड़े निर्णय ले लिए गए। पहले तो शुक्रवार की शाम केंद्र की तरफ से अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट ने सिविल सर्विस अथॉरिटी बनाने का फैसला ले लिया। फिर अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट में 11 मई के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दिया। ऐसे में अब दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई अब आगे और भी जारी रहने वाली है। ऐसे में आपको इस रिपोर्ट के जरिए बताते हैं कि अध्यादेश क्या होता? इसे कौन जारी करता है, इसके जारी होने से क्या असर होगा और केजरीवाल के पास क्या ऑपशन रह गए हैं। यानी की दिल्ली में एलजी बनाम केजरीवाल की जंग के हर कानूनी पेंच को यहां आपको आसान भाषा में समझाते हैं। 

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सुप्रीम कोर्ट के सामने क्या था मामला?

2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक अधिसूचना में कहा गया था कि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर सेवाओं पर नियंत्रण रखेंगे। दिल्ली सरकार ने इसे दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जिसने 2017 में अधिसूचना को बरकरार रखा। अपील पर सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने इस मुद्दे को एक बड़ी संविधान पीठ के पास भेज दिया। 2018 में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक सर्वसम्मत फैसले में दिल्ली और केंद्र के बीच संबंधों को नियंत्रित करने वाले कानून को निर्धारित किया। फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में था। जबकि संविधान पीठ ने बड़े सवालों का फैसला किया,  जबकि विशिष्ट मुद्दों को दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा तय किया जाना था। 2019 में दो न्यायाधीशों, (जो 2018 में 5-न्यायाधीशों की बड़ी बेंच का भी हिस्सा थे), जस्टिस अशोक भूषण और एके सीकरी ने सेवाओं के विशिष्ट मुद्दे पर विभाजित फैसला सुनाया। खंडित फैसला तब तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ और अंततः पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास गया, जिसने अब अपना फैसला सुनाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

दिल्ली में सर्विसेज किसके हाथ में है, इस अहम कानूनी सवाल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनाया गया। दिल्ली में सर्विसेज के अधिकार को लेकर केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो तर्क रखा था, काफी हद तक कोर्ट उस पर राजी दिखा। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में एक बड़ीलकीर भी खींची जिससे भविष्य में दिल्ली का  बॉस कौन वाले सवाल पर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच टकराव की स्थिति न पैदा हो। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा कि एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवाल का अधिकार होना चाहिए। उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी। पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा। 

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आर्टिकल 239एए पर क्या हुई स्थिति साफ

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 239एए पर भी बहुत कुछ साफ कर दिया। अब तक दिल्ली सरकार और केंद्र अपने-अपने तरह से व्याख्या करते थे और मतभेद बरकरार रहता था। इसी आर्टिकल 239 में केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अधिकार है और दिल्ली केलिए एए विशेष रूप से जोड़ा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि आर्टिकल 239एए में दिल्ली विधानसभा को कई अधिकार दिए गए हैं। लेकिन केंद्र के साथ शक्तियों के संतुलन की बात भी कही गई है। 

केंद्र लेकर आ गई अध्यादेश

दिल्ली में आला अफसरों के ट्रांसफर- पोस्टिंग अब दिल्ली सरकार नहीं कर सकेगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र ने देर रात जारी अध्यादेश के जरिए अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए सिविल सर्विस अथॉरिटी बनाने का फैसला किया है। राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी। दिल्ली के सीएम अथॉरिटी के चेयरमैन होंगे। दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी सदस्य होंगे। दिल्ली के गृह सचिव इसके सदस्य सचिव बनाए गए हैं। अध्यादेश में यह साफ किया गया है कि अथॉरिटी में फैसले वहुमत के आधार पर होंगे। देर रात अध्यादेश जारी किया गया। इसमें कहा गया कि अगर उपराज्यपाल इस अथॉरिटी के फैसले से सहमत नहीं होते तो वे इन फैसलों को पुनर्विचार के लिए ( दोवारा अथॉरिटी को भेज सकेंगे। लेकिन अगर अथॉरिटी दूसरी बार भी उपराज्यपाल को वही प्रस्ताव भेजती है तो उन्हें उसकी मंजूरी देनी होगी। कहा गया है कि दिल्ली के एलजी, अन्य राज्यपालों की तरह नहीं हैं। वे दिल्ली के प्रशासक भी हैं।

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सीएम ने पहले ही जताया था अंदेशा

अध्यादेश आने से पहले ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आशंका जताई थी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश ला सकती है। उन्होंने कहा था कि उम्मीद है कि केंद्र ऐसा नहीं करेगा। दो दिन पहले ही दिल्ली सरकार ने सेक्रेटी सर्विसेज के तबादले से जुड़ी फाइल एलजी को भेजी थी। लेकिन मंजूरी न मिलने की स्थिति में शुक्रवार को दिल्ली सरकार। के कई मंत्री LG दफ्तर में पहुंचे थे। बाद में सीएम के साथ सभी एलजी से मिले थे। आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि दिल्ली में नौकरशाहों के तबादले से जुड़ा केंद्र का अध्यादेश असंवैधानिक है और यह सेवा संबंधी मामलों में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिल्ली सरकार को दी गई शक्तियों को छीनने के लिए उठाया गया एक कदम है। दिल्ली की मंत्री आतिशी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि केंद्र सरकार ने यह अध्यादेश लाने के लिए जानबूझकर ऐसा समय चुना, जब उच्चतम न्यायालय अवकाश के कारण बंद हो गया है। केंद्र सरकार ने दानिक्स काडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से एक अध्यादेश जारी किया था। 

अध्यादेश क्या है? कौन जारी करता है?

संविधान के अनुच्छेद 123 में राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्तियों का वर्णन है। अगर कोई ऐसा विषय हो जिस पर तत्काल कानून बनाने की जरूरत हो और उस समय संसद न चल रही हो तो अध्यादेश लाया जा सकता है। अध्यादेश का प्रभाव उतना ही रहता है, जितना संसद से पारित कानून का होता है। इन्हें कभी भी वापस लिया जा सकता है। अध्यादेश के जरिए नागरिकों से उनके मूल अधिकार नहीं छीने जा सकते। केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करते हैं। 

 अध्यादेश को चुनौती दी जा सकती है?

सुप्रीम कोर्ट ने आरसी कपूर बनाम भारत संघ 1970 में कहा था कि राष्ट्रपति के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है। इस आधार पर कि तत्काल कार्रवाई की जरूरत नहीं थी। अध्यादेश को चुनौती दी जा सकती है। फिर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ को तय करना होगा कि मामले पर संविधान बेंच बनाए या नहीं। कुल मिलाकर कहे तो दिल्ली में पावर की खींचतान अभी लंबी चलने वाली है। 

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