Bhikaiji Cama Birth Anniversary: भीकाजी कामा के बुलंद हौसलों से कांप उठी थी ब्रिटिश हुकूमत, विदेश में फहराया था भारतीय ध्वज

Bhikaiji Cama
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भारत की महान शख्सियत मैडम भीकाजी कामा का 24 सितंबर को जन्म हुआ था। हालांकि भीकाजी कामा के योगदान और नाम को काफी कम लोग जानते हैं। उन्होंने अंग्रेजी तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई थी और भारत की आजादी की नींव रखने में अहम योगदान दिया था।

आज ही के दिन यानी की 24 सितंबर को भारत की महान शख्सियत मैडम भीकाजी कामा का जन्म हुआ था। उनको भारत में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की जननी माना जाता है। भीकाजी कामा ने सबसे पहले भारतीय ध्वज फहराया था। हालांकि भीकाजी कामा के योगदान और नाम को काफी कम लोग जानते हैं। उन्होंने अंग्रेजी तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई थी और भारत की आजादी की नींव रखने में अहम योगदान दिया था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर भीकाजी कामा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

बॉम्बे में 24 सितंबर 1861 को भीकाजी कामा का जन्म हुआ था। वह एक अमीर पारसी व्यापारिक परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा बॉम्बे से पूरी की और वह स्कूली जीवन में ऐसे माहौल से प्रभावित हुईं, जहां पर भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन अपनी जड़ें जमा रहा था। बेहद कम उम्र से ही भीकाजी कामा राजनीतिक मुद्दों की ओर आकर्षित हुईं। साल 1885 में उनका विवाह एक प्रसिद्ध वकील रुस्तमजी कामा से हुआ। लेकिन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों में भीकाजी कामा की भागीदारी के कारण दोनों में मतभेद पैदा होने लगे। वैवाहिक समस्याओं और खराब सेहत के चलते वह भारत छोड़कर लंदन चली गईं।

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अंग्रेजों के खिलाफ बुलंद की आवाज

मैडम भीकाजी कामा अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और वह भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने के लिए जानी जाती हैं। इंग्लैंड में प्रवास के दौरान उनकी मुलाकात दादाभाई नौरोजी से हुई। वह भारत में ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के कट्टर आलोचक थे। दादाभाई नौरोजी से मुलाकात के बाद भीकाजी कामा के जीवन की दिशा बदल गई और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए काम करने लगीं। इस दौरान वह लाला हर दयाल, वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे अन्य भारतीय राष्ट्रवादियों के साथ जुड़ी। इसके साथ ही उन्होंने लंदन के हाइड पार्क में कई सभाओं को संबोधित किया था।

महिला अधिकारों के लिए उठाई आवाज

साल 1907 में स्टटगार्ट में हुए सम्मलेन के बाद भीकाजी कामा ने एक लंबा व्याख्यान दौरा शुरू किया। इस दौरे का मुख्य मकसद प्रवासी भारतीयों के बीच, भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत को तैयार करना था। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई थी। इसी बीच ऐसी अफवाहें उड़ने लगीं कि उनको इंग्लैंड से निकाल दिया गया है। फिर साल 1909 में वह पेरिस चली गईं। पेरिस में भीकाजी कामा का घर भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों का केंद्र बन गया था।

नजरबंद हो गई थीं भीकाजी कामा

फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के दौरान जब ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस सहयोगी बन गए, तो फ्रांसीसी अधिकारियों ने मैडम भीकाजी कामा को ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों की वजह से तीन साल के लिए नजरबंद कर दिया। हालांकि इस दौरान भी उन्होंने भारतीय, आयरिश और मिस्र के क्रांतिकारियों से संपर्क बनाए रखा।

मृत्यु

वहीं 75 साल की उम्र में मैडम भीकाजी कामा को भारत लौटने की अनुमति मिली। इसके एक साल बाद यानी की 13 अगस्त 1936 को मैडम भीकाजी कामा का निधन हो गया।

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