Subhash Chandra Bose Anniversary: आज भी रहस्य बनी हुई है सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु, जानिए क्या है लापता होने का रहस्य

Subhash Chandra Bose
Prabhasakshi

भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी की तरह है। आज ही के दिन यानी की 18 अगस्त को सुभाष चंद्र बोस का निधन हुआ था। हालांकि आज भी नेता जी की मृत्यु एक रहस्य बनी हुई है।

भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी की तरह है। उनके जीवन में भी फिल्म की तरह ही एक्शन, रोमांस और रहस्य तीनों ही है। वह आजादी की लड़ाई लड़ने वाले असली हीरो थे। जिन्होंनें अंग्रेजों की गुलामी को स्वीकार न करने हुए आजाद हिंद फौज का गठन किया था। वहीं उनकी लव लाइफ भी काफी ज्यादा दिलचस्प थी। बोस ने अपनी सेक्रेटरी एमिली से लव मैरिज की थी। एमिली मूल रूप से ऑस्ट्रिया की रहने वाली थी। 18 अगस्त को सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हुई थी। हालांकि बोस की मृत्यु पर आज भी रहस्य बना हुआ था। आइे जानते हैं उवकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर सुभाष चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

उड़ीसा के बंगाली परिवार में 23 जनवरी 1897 को सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था। उनके 7 भाई और 6 बहनें थी। वहीं बोस अपनी माता-पिता के 9वीं संतान थे। वह अपने भाई शरदचंद्र बोस के काफी नजदीक थे। बोस के पिता जानकीनाथ कटक के महशूर और सफल वकील थे। नेताजी बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में काफी ज्यादा होशियार थे। हालांकि उनकी खेल-कूद में कभी रुचि नहीं रही। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा कटक से पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह कलकत्ता चले गए। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से फिलोसोफी में BA किया। यहां पर पढ़ाई के दौरान ही उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ जंग शुरू हुई थी।

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बोस सिविल सिविल सर्विस करना चाहते थे, ब्रिटिश के शासन के चलते उस समय भारतीयों के लिए यह सर्विस काफी मुश्किल थी। जिसके चलते नेताजी के पिता ने उन्हें सिविल सर्विस की तैयारी के लिए इंग्लैंड भेज दिया। इस परीक्षा में बोस ने चौथा स्थान हासिल किया था। उन्हें इंग्लिश में सबसे ज्यादा नंबर मिले थे। वह विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे। इसी के साथ उनके मन में देश की आजादी को लिए भी चिंता थी। इसी कारण साल 1921 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की नौकरी ठुकरा दी और वापस भारत आ गए।

आजादी की लड़ाई में योगदान

बता दें कि देश वापस आने के बाद वह आजादी की लड़ाई में कूद गए। उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन कर ली। शुरूआत में वह कलकत्ता में कांग्रेस पार्टी के नेता रहे। वह चितरंजन दास के नेतृत्व में काम किया करते थे। बोस चितरंजन दास को अपना राजनैतिक गुरु मानते थे। वहीं साल 1922 में चितरंजन दान से कांग्रेस और नेहरू का साथ छोड़ दिया। जिसके बाद उन्होंने अलग पार्टी स्वराज बना ली। वहीं इस दौरन तक नेता जी ने कलकत्ता के नोजवान, छात्र-छात्रा व मजदूर लोगों के बीच अपनी बेहद खास जगह बना ली थी। वह जल्द से जल्द अपने देश को स्वाधीन भारत के रूप में देखना चाहते थे। 

नेशनल इंडियन आर्मी

साल 1939 में जब सेकेंड वर्ल्ड वार चल रहा था तो नेता जी ने वहां अपना रुख किया। नेता जी पूरी दुनिया से मदद चाहते थे। जिससे कि अंग्रेज दबाव में आकर भारत को छोड़ दें। इस बात का उन्हें बहुत अच्छा असर देखने को मिला। लेकिन तब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। करीब 2 सप्ताह तक नेता जी ने जेल में ना तो कुछ खाया और ना पिया। उनकी हालत बिगड़ती देख देश के नौजवान उग्र होने लगे। जिसके बाद सरकार ने उन्हें कलकत्ता में नजरबंद करते रखा। साल 1941 में बोस अपनी भतीजे की मदद से कलकत्ता से भाग निकले। इस दौरान वह सबसे पहले बिहार गए और फिर वहां से पाकिस्तान के पेशावर पहुंचे। फिर सोवियत संघ होते हुए सुभाष चंद्र बोस जर्मनी पहुंचे और वहां के शासक एडोल्फ हिटलर से मुलाकात की।

साल 1943 में सुभाष चंद्र बोस जर्मनी छोड़ जापान जा पहुंचे। यहां पर वह मोहन सिंह से मिले। मोहन सिंह उस दौरान आजाद हिंद फौज के मुख्य थे। जिसके के बाद बोस ने मोहन सिंह और रास बिहारी के साथ मिलकर 'आजाद हिंद फौज' का पुनर्गठन किया। इसके साथ ही उन्होंने आजाद हिंद फौज सरकार नामक पार्टी बनाई। साल 1944 में नेता जी ने अपनी आजाद हिन्द फ़ौज को 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा दिया। उनके इस नारे मे देश भर में एक नई क्रांति को जन्म दिया।

मौत

साल 1950 तक यह खबरे सामने आने लगीं कि नेता जी तपस्वी बन गए हैं। लेकिन 1960 में इतिहासकार लियोनार्ड ए. गॉर्डन ने इसे अफवाह बताया। कुछ रिपोर्ट के अनुसार, जब मित्सुबिशी के-21 बमवर्षक विमान, जिस पर वे सवार थे, वह 18 अगस्त 1945 को क्रैश हो गया। हालांकि इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि बोस की मृत्यु कब हुई थी। क्योंकि उनकी बॉडी नहीं मिली थी, जिसके कुछ समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था।

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