Jawaharlal Nehru Death Anniversary: लोकतंत्र के सबसे बड़े मार्गदर्शक थे जवाहर लाल नेहरु, चीन से मिला धोखा बना मौत का कारण

Jawaharlal Nehru
Prabhasakshi

स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु का 27 मई को निधन हो गया था। नेहरु जी ने देश के हित में कई कार्य किए और स्वतंत्रता की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने देश की आर्थिक नींव को मजबूत करने का काम किया था।

जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। आज के दिन यानी की 27 मई को उनका निधन हुआ था। उनकी याद में 27 मई को नेहरू की पुण्यतिथि के तौर पर मनाया जाता है। बताया जाता है कि जवाहर लाल नेहरू को चीन के धोखे ने तोड़कर रख दिया था। उसका सदमा ही नेहरू की जान ले गया। जवाहरलाल नेहरू का जीवन भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तरह रहा। बता दें कि वह गांधीजी के विचारों से बहुत प्रभावित रहते थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सिरी के मौके पर नेहरू जी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

उत्‍तर प्रदेश के इलाहाबाद में 14 नवंबर को 1889 को जवाहर लाल नेहरू का जन्म एक कश्‍मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इसके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था। जो कि पेशे से वकील और स्वतंत्रता आंदोलन के नेता थे। नेहरू की माता का नाम स्वरूप रानी था। इंग्लैंड के हैरो स्कूल से जवाहरलाल नेहरू ने अपनी शुरूआती पढ़ाई की थी। इसके बाद उन्होंने आगे की शिक्षा कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज से प्राप्त की। इस दौरान उन्होंने नैचरल साइंस में ऑनर्स की डिग्री हासिल की। वहीं उन्‍होंने लंदन के इनर टेंपल में बैरिस्टर की पढ़ाई भी पूरी की।

बता दें कि इस दौरान उन्होंने इंग्लैंड में सात साल बिताए। लेकिन इस दौरान उन्हें लगता था कि न तो वह पूरी तरह से भारत में हैं और न ही इंग्लैंड में। इसके बाद साल 1912 के आसपास वह भारत वापस लौट आए। वहीं साल 1916 में जवाहर लाल नेहरू ने कमला कौल से शादी की और साल 1917 में इंदिरा गांधी का जन्म हुआ। जो बाद में भारत की पहली प्रधानमंत्री भी बनीं। साल 1916 में नेहरू की महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। इस दौरान वह गांधीजी से काफी प्रभावित हुए। 

साल 1917 में नेहरू होम-रुल-लीग से जुड़ गए। जवाहर लाल नेहरू को महात्मा गांधी से राजनीतिक ज्ञान प्राप्त हुआ। यह वही समय था उन्होंने पहली बार भारतीय राजनीति में कदम रखा था और इसको करीब से जानने समझने का मौका मिला था। साल 1919 में महात्मा गांधी ने रोलेट-अधिनियम के खिलाफ़ मोर्चा सम्भाल रखा था। नेहरू जी महत्मा गांधी ने सविनय-अवज्ञा आंदोलन से काफी प्रभावित हुए। जिसके बाद न सिर्फ नेहरू बल्कि उनके परिवार ने भी महात्मा गांधी का अनुसरण किया। नेहरू जी के पिता मोतीलाल नेहरू ने गांधीजी का अनुसरण करते हुए अपनी संपत्ति का त्याग कर खादी को अपना लिया। 

वहीं साल 1920-22 में जवाहर लाल नेहरू ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया और पहली बार जेल भी गए। इसके बाद साल 1924 में वह इलाहाबाद नगर-निगम के अध्यक्ष बनें और इस पद पर दो साल तक कार्यरत रहे। साल 1926-28 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस के महासचिव बनें। बता दें कि महात्मा गांधी को जवाहर लाल नेहरू में देश का भविष्य और एक महान नेता नजर आ रहा था और समय के साथ उनका यह अनुमान सच भी हुआ।

साल 1928-29 में कांग्रेस के वार्षिक-सत्र का आयोजन मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में किया गया। इस सत्र में दो गुट बनें। जिसमें पहले गुट में सुभाषचंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग का समर्थन किया तो वहीं दूसरे गुट में मोतीलाल नेहरु व अन्य नेताओं ने सरकार के आधीन ही प्रभुत्व सम्पन्न राज्य की मांग की। इन दो प्रस्तावों की मांग पर महात्मा गांधी ने बीच का रास्ता निकाला। गांधीजी वने ब्रिटने को 2 साल का समय दिया और कहा कि वह भारत को राज्य का दर्जा दें वरना कांग्रेस द्वारा एक राष्ट्रीय लड़ाई की जाएगी। 

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जब सरकार नें कोई जवाब नहीं दिया तो साल 1929 में नेहरूजी का अध्यक्षता में लाहौर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन किया गया। जिसमें सभी नेताओं ने एकजुट व एकमत होकर 'पूर्ण स्वराज' की मांग का प्रस्ताव पारित किया। जवाहर लाल नेहरू ने 26 जनवरी 1930 को लाहौर में भारतीय ध्वज फहराया। वहीं महात्मा गांधी ने 1930 में सविय अवज्ञा आन्दोलन का आह्वाहन किया। यह आंदोलन बेहद सफल रहा। जिस कारण ब्रिटिश सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा और साल 1935 में ब्रिटिश सरकार ने भारत अधिनियम का प्रस्ताव पारित किया। 

इसके बाद कांग्रेस ने चुनाव लड़े जाने का फैसला किया। वहीं जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस का समर्थन चुनाव के बाहर रहकर किया। वहीं कांग्रेस से हर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई और अधिक जगहों पर जीत दर्ज की। साल 1936-37 में नेहरू जी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। साल 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में भारत छोडो आन्दोलन के दौरान नेहरु जी को जेल जाना पड़ा। फिर वह 1945 में जेल से बाहर आए। भारत और पाकिस्तान की आजादी के समय 1947 में नेहरु जी ने सरकार के साथ बातचीत में अहम भूमिका निभाई। 

ऐसे बनें देश के पहले प्रधानमंत्री

देश की आजादी के समय कांग्रेस में प्रधानमंत्री की दावेदारी के लिए चुनाव किये गए। इस दौरान सरदार वल्लभ भाई पटेल और आचार्च कृपलानी को सबसे अधिक वोट मिले थे। लेकिन गांधीजी के आग्रह पर जवाहर लाल नेहरू को देश का प्रतम प्रधानमंत्री बनाया गया। इसके बाद वह तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बनें। इस दौरान नेहरुजी ने मजबूत राष्ट्र की नींव के निर्माण का कार्य किया। नेहरु जी ने भारत को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने का काम किया। जवाहर लाल नेहरु ने आधुनिक-भारत के स्वप्न की मजबूत नींव रखने का काम किया। हालांकि काफी मेहनत के बाद भी वह भारत और चीन के बीच मैत्री संबंध नहीं बना पाए। 

सम्मान

साल 1955 में जवाहर लाल नेहरू को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत-रत्न’ से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

जवाहर लाल नेहरु ने अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान व चीन से हमेशा संबंध सुधारने का प्रयास किया। लेकिन दोनों ही देश हमेशा भारत को धोखा देते हुए। साल 1962 में जब चीन ने धोखे से भारत पर हमला कर दिया। तो इससे नेहरु जी को गहरा आघात पहुंचा था। असल मायने में इसे उनकी हार से जोड़ा जाने लगा। वहीं कश्मीर के मसले के कारण भारत के पाकिस्तान से भी संबंध अच्छे नहीं रहे। 27 मई 1964 को पहले नेहरु जी को पैरालाइसिस हुआ और उसके फौरन बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा। जिससे उनकी मौत हो गई।

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