Ishwar Chandra Vidyasagar Birth Anniversry: विधवा विवाह को दिलाई कानूनी वैधता, विद्यासागर महिलाओं के सम्मान के लिए उठाते थे आवाज

Ishwar Chandra Vidyasagar
Prabhasakshi

ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक समाज सुधारक, लेखक, प्रासिद्ध दार्शनिक और परोपकारी व्यक्ति थे। विद्यासागर का जन्म बंगाल के निर्धन परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही तीव्र बुद्धिमत्ता के मालिक थे। आज ही के दिन 26 सितंबर को ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म हुआ था।

ईश्वर चंद्र विद्यासागर एक समाज सुधारक, लेखक, प्रासिद्ध दार्शनिक और परोपकारी व्यक्ति थे। विद्यासागर का जन्म बंगाल के निर्धन परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही तीव्र बुद्धिमत्ता के मालिक थे। जिसके कारण उनको अध्यापक द्वारा विद्यासागर की उपाधि मिली थी और लोग उन्हें ईश्वरचंद्र विद्यासागर के नाम से जानने लगे। जबकि उनके बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था। आज ही के दिन यानी की 26 सितंबर को ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा 

बंगाल के मोदिनीपुर जिले में 26 सितंबर 1820 को ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम ठाकुरदास बन्दोपाध्याय था। ईश्वरचंद्र ब्राम्हण परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह बचपन से ही होनहार छात्रों में गिने जाते थे। 9 साल की उम्र से कोलकाता के संस्कृति विद्यालय से उनकी शिक्षा शुरू हो गई। बचपन से ही पढ़ाई में तेज होने के कारण यह हर साल पहला स्थान प्राप्त करते थे। 

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साल 1839 में विद्यासागर ने लॉ की पढ़ाई पूरी की। फिर साल 1841 में वह फोर्ट विलियम कॉलेज में शिक्षक के रूप में कार्यरत हो गए। यहां पर वह छात्रों को संस्कृत पढ़ाया करते थे। कार्य की निष्ठा और ईमानदारी के चलते जल्द ही विद्यासागर को सहायक सचिव का पद सौंपा गया। उन्होंने कई बार शिक्षा में बदलाव करने के लिए प्रशासन को प्रस्ताव भेजा। जिसके चलते उन्हें मजबूरन विद्यालय छोड़ना पड़ा। लेकिन कुछ सालों बाद वह फिर से शिक्षण कार्य करने लगे।

समाज सुधारक

इसके बाद ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने अपना पूरा जीवन समाज सुधारक कार्यों में लगाया। वह महिलाओं के लिए अधिक चिंतित रहते थे। ईश्वरचंद्र ने समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे भेदभाव को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी। वह नारी सशक्तिकरण और नारी पुनर्विवाह के समर्थक थे। जिस कारण महिलाओं को समाज में सम्मान मिल सके। जिसकी वजह से महिलाओं को पहचान मिल सके।

महिला पुनर्विवाह कानून

विद्यासागर के लगातार प्रयासों के बाद साल 1856 में महिला पुनर्विवाह कानून पारित हो सका। इस कानून के पारित होने से विधवा महिलाओं के जीवन में फिर से खुशियां लौट सकीं। इतना ही नहीं विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देने के लिए विद्यासागर ने अपने इकलौते बेटे नारायण चंद्र का विवाह एक विधवा औरत से करवाया। जिससे कि समाज में जागरुकता फैल सके। इस तरह से विद्यासागर ने महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके सम्मान व अधिकार के लिए जीवन भर संघर्ष किया।

मौत

बता दें कि 29 जुलाई 1891 में 70 साल की आयु में ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से काफी बीमार चल रहे थे। ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मौत पर रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि 'किसी को आश्चर्य होता है कि भगवान ने, चालीस मिलियन बंगालियों को पैदा करने की प्रक्रिया में, एक आदमी कैसे पैदा किया।'

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