Madhavrao Sadashiv Rao Golwalkar Death Anniversary: माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने खींची थी संघ और राजनीति के बीच लकीर

Madhavrao Sadashiv Rao Golwalkar
Prabhasakshi

नागपुर के पास रामटेक में एक मराठी परिवार में 19 फरवरी 1906 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ था। शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बीएचयू से एमएससी की डिग्री हासिल की थी। वह राष्ट्रवादी नेता और विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से काफी ज्यादा प्रभावित थे।

आज ही के दिन यानी की 05 जून को RSS के 'गुरुजी' माधवराव सदाशिव गोलवलकर का निधन हो गया था। RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के निधन के बाद वह साल 1940 में संघ के दूसरे सरसंघचालक बने थे। गोलवलकर हमेशा राजनीति से दूर रहने की सलाह देते थे, क्योंकि वह राजनीति को अच्छा नहीं मानते थे। बता दें कि महाभारत के एक श्लोक में राजनीति को वेश्याओं का धर्म बताया गया है और महाभारत की यही लाइन गोलवलकर की राजनीति के लिए थी। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर माधवराव सदाशिव गोलवलकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म 

नागपुर के पास रामटेक में एक मराठी परिवार में 19 फरवरी 1906 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का जन्म हुआ था। शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बीएचयू से एमएससी की डिग्री हासिल की थी। वह राष्ट्रवादी नेता और विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय से काफी ज्यादा प्रभावित थे। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद बीएचयू में जंतु शास्त्र पढ़ाया। इसी दौरान उनका उपनाम 'गुरुजी' पड़ा। 

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बीएचयू में पढ़ाने के दौरान किसी छात्र ने गोलवलकर के बारे में RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को बताया। जिसके बाद साल 1932 में उन्होंने हेडगेवार से मुलाकात की और फिर गोलवलकर को बीएचयू में संघचालक नियुक्त किया गया। 

RSS और राजनीति के बीच खींची लकीर

केंद्र और देश में आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। लेकिन इसके बाद भी RSS और राजनीति के बीच एक साफ लकीर नजर आती है। सीधे तौर पर संघ का राजनीति में हस्तक्षेप नहीं है और RSS खुद को राजनीति से अलग बताया है। संघ का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज को सशक्त और संगठित करना है। आपको बता दें कि संघ और राजनीति के बीच की यह लाइन गोलवलकर ने खींची थी। 

महाभारत के श्लोक जिसमें राजनीति को वेश्याओं का धर्म बताया गया है, उस श्लोक को पहले गोलवलकर और फिर सरसंघचालक दोहराया करते थे। वह देश के संघ को राजनीति से दूर रहने की सलाह देते थे। आज भी संघ इसी लाइन पर चलता है। हालांकि यह अलग बात है कि संघ देश की राजनीति को प्रभावित करता है।

मृत्यु

साल 1972-73 में गोलवलकर ने देशभर में एक आखिरी दौरा किया था। इसी कारण से उनकी सेहत बिगड़ने लगी। गोलवलकर ने बांग्लादेश लिबरेशन वार में पाकिस्तान पर भारत की जीत के ठीक बाद आखिरी दौरा किया था। जिसके बाद उनका स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया। जिसके बाद 05 जून 1973 को माधवराव सदाशिव गोलवलकर का निधन हो गया।

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