Mahadevi Verma Death Anniversary: महादेवी वर्मा को कहा जाता है 'आधुनिक युग की मीरा', ऐसे बनीं छायावादी कवियत्री

Mahadevi Verma
Prabhasakshi

कवयित्री, निबंधकार और समाजसेवी महादेवी वर्मा का 11 सितंबर को निधन हो गया था। उनको छायावादी युग के चार स्तंभों में गिना जाता है। उनका साहित्यिक योगदान बहुत अहम और व्यापक है। इसी वजह से महादेवी वर्मा को 'हिंदी साहित्य की मीरा' भी कहा जाता है।

आज ही के दिन यानी की 11 सितंबर को कवयित्री, निबंधकार और समाजसेवी महादेवी वर्मा का निधन हो गया था। महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की प्रमुख कवयित्रियों में से एक मानी जाती थीं। उनको छायावादी युग के चार स्तंभों में गिना जाता है। उनका साहित्यिक योगदान बहुत अहम और व्यापक है। इसी वजह से महादेवी वर्मा को 'हिंदी साहित्य की मीरा' भी कहा जाता है। उन्होंने अपने लेखन में भारतीय नारी की पीड़, उनके संघर्षों और उनकी इच्छाओं को सजीव तरीके से प्रस्तुत किया है। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर महादेवी वर्मा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और शिक्षा

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में 26 मार्च 1907 को महादेवी वर्मा का जन्म हुआ था। उनके परिवार की भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी आस्था थी। ऐसे में महादेव की झुकाव भी साहित्य और कला की ओर था। महादेवी की शुरूआती शिक्षा उज्जैन से हुई। फिर उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संस्कृत में एम.ए किया। महादेवी वर्मा लंबे समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्य रहीं। इस दौरान वह इलाहाबाद से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'चांद' की संपादिका थीं।

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साहित्यिक जीवन

हिंदी साहित्य के छायावादी युग की महादेवी वर्मा प्रमुख कवयित्री थीं। उनकी रचनाएं प्रेम, विरह, मानवीय संवेदनाओं और अध्यात्म की गहरी अनुभूतियों से भरी हुई हैं। वहीं महादेवी वर्मा की कविताओं में नारी की व्यथा, पीड़ा और उनकी शक्ति का सूक्ष्म चित्रण किया है। उनकी फेमस काव्य कृतिया दीपशिखा और यामा, नीरजा, सांध्यगीत, जिसको ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने न सिर्फ कविताएं लिखीं, बल्कि संस्मरण, निबंध और कहानियां भी लिखीं। महादेवी वर्मा की प्रमुख गद्य रचनाओं में 'पथ के साथी', 'स्मृति की रेखाएँ', 'अतीत के चलचित्र' शामिल हैं।

उपलब्धियां

बता दें कि महादेवी वर्मा ने न सिर्फ साहित्यिक क्षेत्र में बल्कि शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया था। हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए महादेवी को 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा भारत सरकार ने उनको 'पद्म विभूषण' से नवाजा था। महादेवी वर्मा को उनके काव्य संग्रह 'यामा' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1979 को महादेवी वर्मा को साहित्यिक सेवाओं के लिए साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित फैलोशिप पुरस्कार दिया गया था।

मृत्यु

वहीं 11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा का प्रयागराज में निधन हो गया था।

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