नसीरुद्दीन शाह: अपनी बात को मजबूती से कहने वाला मुकम्मल इंसान

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[email protected] । Dec 30 2018 2:01PM

1975 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘निशांत’ से नसीरूद्दीन शाह ने रूपहले पर्दे पर कदम रखा और उसके बाद कई फिल्मों में इतना स्वाभाविक अभिनय किया कि उनके प्रशंसकों की तादाद लगातार बढ़ती रही।

 नयी दिल्ली। बॉलीवुड के व्यवसायिक और समानान्तर सिनेमा में समान रूप से सफल सशक्त अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े किरदारों को तो पर्दे पर उतारा ही है, लेकिन हाल ही में एक घटना पर अपनी बेबाक राय जाहिर करके यह साबित करने की कोशिश की है कि वह दूसरों के लिखे संवादों को भावपूर्ण तरीके से अदा करने वाले कलाकार होने के साथ ही देश और समाज के हालात पर अपनी मुख्तलिफ़ राय रखते हैं और जरूरत पड़ने पर अपनी बात कहने का हक भी रखते हैं।

नसीरूद्दीन अपने आप में अभिनय की मुकम्मल किताब हैं। उन्होंने हर तरह की भूमिकाओं को इतनी खूबसूरती से रंगमंच और रूपहले पर्दे पर उतारा है कि उन्हें उनके चमकदार करियर के दौरान राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से लेकर पद्म श्री और पद्म विभूषण जैसे शीर्ष पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। तीन राष्ट्रीय पुरस्कार और तीन फिल्म फेयर पुरस्कार के अलावा छोटे बड़े बहुत से अवार्ड उनके अभिनय के आसमान पर सितारों की तरह चमक रहे हैं।

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उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में अली मोहम्मद शाह और फरूख सुलतान के तीन पुत्रों में से एक नसीर ने सेंट अंसेल्म स्कूल अजमेर से शुरूआती शिक्षा ग्रहण करने के बाद नैनीताल के सेंट जोसेफ कालेज से आगे की पढ़ाई की और 1971 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण की। उनके भीतर अभिनय की तासीर उन्हें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और फिर फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान ले गई, जहां उनके भीतर के कलाकार को एक सशक्त अभिनेता के रूप में आकार लेने का मौका मिला और अभिनय की दुनिया में आने का अपना फैसला सही लगने लगा।

यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि नसीरूद्दीन शाह के पिता उनके अभिनय की दुनिया में जाने के हक में नहीं थे और इसी बात को लेकर अपने पिता से उनके रिश्ते तल्ख बने रहे। सपनों की नगरी में भाग्य आजमाने पहुंचे नसीर को संघर्ष के दिनों ने मजबूत बने रहने का हौंसला दिया। अपनी आत्मकथा ‘ऐंड देन वन डे’ में नसीर ने इस बात को बड़ी बेबाकी से स्वीकार किया है। वह लिखते हैं, 'मेरे लिए मेरे पिता के सपने धीरे-धीरे ध्वस्त हो रहे थे। मैं अपने सपनों पर भरोसा करने लगा था।'  इसके अलावा उन्होंने अपनी इस किताब में अपनी जिंदगी के कई ऐसे पन्नों को भी खोला है, जिनके बारे में उनके अलावा शायद किसी को नहीं पता था। उन्होंने इसमें अभिनय के सफर के दौरान मिली कामयाबी और नाकामयाबी के साथ ही अपने पहले प्यार, पहली शादी और पहली बेटी के साथ अपने रिश्तों को बड़ी ईमानदारी से जगह दी है। नसीरूद्दीन शाह की पहली शादी मनारा सीकरी से हुई थी, जिनसे उनकी एक बेटी हीबा शाह है। पहली पत्‍नी की मृत्‍यु के बाद उन्‍होंने रत्‍ना पाठक से शादी कर ली। इन दोनों के दो पुत्र इमाद और विवान हैं।

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1975 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘निशांत’ से नसीरूद्दीन शाह ने रूपहले पर्दे पर कदम रखा और उसके बाद कई फिल्मों में इतना स्वाभाविक अभिनय किया कि उनके प्रशंसकों की तादाद लगातार बढ़ती रही। इस दौरान उन्होंने निशांत, आक्रोश, स्पर्श, मिर्च मसाला, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, मंडी, जुनून, मोहन जोशी हाजिर हो और अर्थ सहित बहुत सी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। 1980 में आई फिल्म ‘हम पांच’ से मुख्य धारा सिनेमा में नसीरुद्दीन शाह के सफर की शुरुआत हुई। समानांतर सिनेमा के मंझे हुए अभिनता ने एक गांव में विद्रोह की आवाज उठाने वाले नौजवान के किरदार को बेहद संजीदगी से निभाया। इसके बाद आई तमाम फिल्में उनके अभिनय को निखारती चली गईं और वह समानांतर सिनेमा के साथ ही व्यावसायिक सिनेमा के भी बेहतरीन फनकार बनकर उभरे।

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