Sumitranandan Pant Death Anniversary: अभावों में भी स्वाभिमान से जिए पंत, जानिए 'प्रकृति के सुकुमार कवि' के जीवन की अनसुनी बातें

Sumitranandan Pant
Prabhasakshi

आज ही के दिन यानी की 28 दिसंबर को प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत का निधन हो गया था। वह छायावादी युग के प्रमुख कवि थे। उनको ऐसे साहित्यकारों में गिना जाता है, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन रहा था।

प्रकृति के सुकुमार कवि व छायावाद के चार स्तंभों में से एक सुमित्रानंदन पंत का 28 दिसंबर को निधन हो गया था। सुमित्रानंदन पंत अपनी कविताओं में प्रकृति की सुवास को चहुंओर बिखेर देते हैं। वह प्रकृति को अपनी मां मानते थे। कवि सुमित्रानंदन पंत ने कभी भी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया, हालांकि वह अभावपूर्ण जीवन से भयभीत रहे। बताया जाता है कि सुमित्रानंदन पंत ज्योतिष के अच्छे जानकार थे और उन्होंने अपनी मृत्यु की गणना स्वयं ही कर ली थी। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर कवि सुमित्रानंदन पंत के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

अल्मोड़ा के कौसानी गांव में 20 मई 1900 को सुमित्रानंदन पंत का जन्म हुआ था। जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी मां का निधन हो गया था। ऐसे में उन्होंने गांव की प्रकृति को अपनी मां मान लिया था। हारमोनियम और तबले की धुन पर गीत गाने के साथ ही महज 7 साल की उम्र में सुमित्रानंदन पंत ने अपनी सृजनशीलता का परिचय देते हुए काव्य करना शुरूकर दिया था।

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शुरूआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह अपने बड़े भाई देवीदत्त के साथ काशी आ गए। यहां पर उन्होंने आगे की शिक्षा के लिए क्वींस कॉलेज में एडमिशन लिया। वहीं इस दौरान वह अपनी कविताओं से सबके चहेते बन गए थे।

नारी स्वतंत्रता के पक्षधर

बता दें कि 25 वर्ष तक सुमित्रानंदन पंत सिर्फ स्त्रीलिंग पर कविता लिखते रहे। वह नारी स्वतंत्रता के कटु पक्षधर थे। सुमित्रानंदन पंत का कहना था कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का पूर्ण उदय तभी संभव है, जब नारी स्वतंत्र वातावरण में जी रही हो।

आर्थिक तंगहाली

सुमित्रानंदन पंत, महात्मा गांधी से काफी प्रभावित रहे। उनका मानना था कि जिन परिस्थितियों में महात्मा गांधी ने अहिंसा का प्रयोग किया, वह शायद ही अन्य कोई कर सकता है। सुमित्रानंदन पंत ने अपना रचना धर्म निभाते हुए गांधी जी के असहयोग आंदोलन में सहयोग दिया। हालांकि इस बीच उनको आर्थिक तंगहाली से गुजरना पड़ा। स्थिति इतनी खराब हुई कि उनको अल्मोड़ा स्थित अपनी जमीन-जायदाद बेचने के साथ अपना पुश्तैनी घर भी बेचना पड़ा था।

कालजयी कृतियां

वहीं जल्द ही साल 1931 में कालाकांकर जाकर अपने मकान में सुमित्रानंदन ने कई कालजयी कृतियों की रचना की थी। पंत ताउम्र अविवाहित रहे थे। उनकी प्रारंभिक कविताएं 'वीणा' में संकलित हैं। पल्लव और उच्छवास उनकी छायावादी कविताओं का संग्रह है। युगांत, स्वर्ण किरण, ग्रंथी, ग्राम्या, स्वर्ण धूलि, कला और बूढ़ा चांद और सत्यकाम आदि सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख कृतियां हैं। उन्होंने न सिर्फ गेय बल्कि अगेय दोनों में ही अपनी लेखन कला का लोहा मनवाया है।

पुरस्कार

साहित्य में उल्लेखनीय योगदान की वजह से सुमित्रानंद पंत को ज्ञानपीठ, पद्मभूषण और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से विभूषित किया गया था।

मृत्यु

वहीं 28 दिसंबर 1977 को हृदयाघात की वजह से सुमित्रानंदन पंत का निधन हो गया था।

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