भारत में सुदूर संवेदन के जनक थे पिशरोथ रामा पिशरोटी

Pishroth Rama Pishroti was the father of remote sensing in India

आज कई क्षेत्रों में सुदूर संवेदन का उपयोग किया जा रहा है। चाहे बात प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान की हो या फिर भौगोलिक नक्शों की। हर क्षेत्र में सुदूर संवेदन का दखल है। सुदूर संवेदन के उपयोग के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो ने कई उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है।

नवनीत कुमार गुप्ता/इंडिया साइंस वायर: आज कई क्षेत्रों में सुदूर संवेदन का उपयोग किया जा रहा है। चाहे बात प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान की हो या फिर भौगोलिक नक्शों की। हर क्षेत्र में सुदूर संवेदन का दखल है। सुदूर संवेदन के उपयोग के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो ने कई उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है। सुदूर संवेदन जैसे महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी का उपयोग हमारे देश में 1960 के दशक में आरंभ हुआ। उस समय, वर्तमान में उपस्थित उन्नत प्रौद्योगिकी नहीं थी। लेकिन फिर भी सुदूर संवेदन के महत्व से पूरे देश को एक वैज्ञानिक ने अपने प्रयोगों से अवगत कराया गया। वह वैज्ञानिक थे प्रोफेसर पिशरोथ रामा पिशरोटी।

प्रोफेसर पिशरोथ रामा पिशरोटी को भारतीय सुदूर संवेदन का जनक माना जाता है। 1960 के दशक के अंत में उन्होंने नारियल विल्ट रोग का पता लगाने के लिए अपने सुदूर संवेदन संबंधी अग्रणी प्रयोग किए जो सफल रहे। उन्होंने अपने प्रयोगों के लिए हवाई जहाज का उपयोग किया। अपने प्रयोगों के लिए उन्होंने अमेरिका द्वारा विकसित उपकरणों का उपयोग किया। इस प्रकार उन्होंने में दूरदराज क्षेत्रों में इस तकनीक की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

यह समय भारतीय सुदूर संवेदन संबंधी प्रयोगों के लिए आरंभिक समय था। आज तो सुदूर संवेदन के माध्यम से फसलों की उपज और प्राकृतिक आपदाओं जैसे ओलावृष्टि एवं हिमपात से फसलों का होने वाले नुकसान का आकलन किया जाता है। अब सुदूर संवेदन क्षेत्र कृषि सहित अनेक क्षेत्रों में उपयोगी साबित हुआ है।

पिशरोटी  का जन्म 10 फरवरी 1909 को केरल में कोलेंगोड़े में हुआ था। उनका शैक्षणिक जीवन उपलब्धियों से भरा रहा। उन्होंने 1954 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उन्हें विश्व के अनेक प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ कार्य करने का अवसर मिला। भारत में उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में एशिया के पहले नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर सी वी रमन के साथ काम करने का भी अवसर मिला था। उन्होंने सामान्य परिसंचरण, मानसून मौसम विज्ञान और जलवायु के विभिन्न पहलुओं पर काम किया। उन्होंने मौसम विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध कार्य किए। और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में सौ से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशनों किया।

उनके सबसे महत्वपूर्ण योगदान में भारतीय मानसून की समझ पर आधारित था। उन्होंने यह भी पता लगाया कि गर्मियों के दौरान भारतीय मानसून और ठंडे के दिनों में उत्तरी गोलार्ध में  ऊष्मा के संचरण का गहरा संबंध है। उन्होंने बताया था कि मानसून में अरब सागर की नमी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रोफेसर पिशारोटी ने भारतीय वैज्ञानिक विभागों में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे थे। वह भारत मौसम विज्ञान विभाग और कुलाबा वेधशाला वह पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के संस्थापक निदेशक थे।

1967 में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। वे 1972-1975 के दौरान वह भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन के अंतर्गत कार्यरत अहमदाबाद स्थित सुदूर संवेदन और उपग्रह मौसम विज्ञान के निदेशक रहे।

उन्होंने अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भी अपना योगदान दिया। वह विश्व मौसम विज्ञान संगठन के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड में भी रहे। उन्होंने वैश्विक वायुमंडलीय अनुसंधान कार्यक्रम के अध्यक्ष पद का भी दायित्व निभाया।

उनके सम्मान में इसरो के अंतर्गत कार्यरत विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र द्वारा विकसित रेडियोसोनडे को पिशरोटी रेडियोसोनडे नाम दिया गया है। जिसके द्वारा तापमान, आर्द्रता और वायुदाब को मापा जाता है। पिशरोटी रेडियोसोनडे अत्याधुनिक उपकरण है जिसका भार 125 ग्राम है और इसमें जीपीएस भी लगा है।

प्रोफेसर पिशारोटी भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के रामन शताब्दी पदक (1988) और प्रोफेसर के आर आर रामनाथन मेडल (1990) के प्राप्तकर्ता थे। उन्हें 1970 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री प्रदान किया गया था। उन्हें 1989 में प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय मौसम पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। 24 सितम्बर 2002 को 93 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ। इंडियन सोसायटी ऑफ रिमोट सेंसिंग द्वारा उनके सम्मान में सुदूर संवेदन के क्षेत्र में प्रति वर्ष ‘पी आर पिशरोटी सम्मान’ प्रदान किया जाता है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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