Veer Savarkar Birth Anniversary: हिंदुत्व के पुरोधा थे विनायक दामोदर सावरकर, दो बार मिली थी आजीवन कारावास

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर क्रांतिकारियों में से एक वीर सावरकर ने स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने का काम किया था। सावरकर अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी थे, जिन्होंने सशस्त्र क्रांति की अलख जगाई था।
एक भारतीय राजनीतिज्ञ, कार्यकर्ता और लेखक विनायक दामोदर सावरकर का 28 मई को जन्म हुआ था। उन्होंने सशस्त्र क्रांति और हिंदुत्व की विचारधारा से स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने का काम किया था। हालांकि नासिक षड्यंत्र कांड के कारण सावरकर को कालापानी की सजा मिली, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर विनायक दामोदर सावरकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और परिवार
महाराष्ट्र के नासिक के पास स्थिति भगूर गांव में विनायक दामोदर सावरकर का जन्म हुआ था। वह मराठी हिंदू चितपावन ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। इनके पिता का नाम दामोदर और मां का नाम राधाबाई सावरकर था। स्कूली जीवन से ही सावरकर के अंदर राजनीतिक चेतना थी। उन्होंने साल 1903 में अपने बड़े भाई गणेश सावरकर के साथ मिलकर मित्र मेला नामक संगठन की स्थापना की। जिसको बाद में अभिनव भारत सभा के नाम से भी जाना गया। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन को जड़ से उखाड़ना था और हिंदू गौरव को पुनर्जीवित करना था।
अंग्रेजों के लिए खतरा थे सावरकर
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का सावरकर पर गहरा प्रभाव पड़ा था। साल 1905 में सावरकर ने बंगाल विभाजन का विरोध किया था और तिलक की उपस्थिति में उन्होंने अन्य छात्रों के साथ विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। वहीं सावरकर से तिलक भी काफी प्रभावित हुए थे और साल 1906 में लंदन में कानून की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप दिलाने में सहायता की थी।
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फिर साल 1909 में वीर सावरकर पर ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने और अंग्रेजी अफसरों की हत्या का आरोप लगा। ऐसे में गिरफ्तारी से बचने के लिए सावरकर पेरिस चले गए और बाद में लंदन गए। वहीं मार्च 1910 में सावरकर को लंदन में हथियार बांटने, भड़काऊ भाषण देने और सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसे कई आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजों के मन में सावरकर के प्रति इसलिए भी डर था, क्योंकि वह सिर्फ एक क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि एक प्रखर विचारक भी थे।
सावरकर के हिंदुत्व की अवधारणा ने भारतीय समाज को एकजुट करने का काम किया था। जिसको अंग्रेज 'फूट डालो और राज करो' नीति से कमजोर करना चाहते थे। वहीं सावरकर के भाषणों और लेखन में स्वाभिमान और देशभक्ति की ऐसी आग थी कि अंग्रेजों को डर था कि यह आग ब्रिटिश साम्राज्य को भस्म कर देगी। साल 1936 में किसी मुद्दे पर कांग्रेस और वीर सावरकर में मतभेद हो गया था। पार्टी के भीतर विरोध की आवाज तेज होने लगी। इस दौरान मशहूर पत्रकार, शिक्षाविद, कवि और नाटककार पीके अत्रे ने सावरकर का साथ दिया। अत्रे ने ही सावरकर को वीर की उपाधि से संबोधित किया था। आगे चलकर वह वीर सावरकर ने नाम से मशहूर हो गए थे।
साल 1949 में वीर सावरकर पर गांधी हत्याकांड में शामिल होने का आरोप लगा था। वहीं अन्य 8 लोगों के साथ उनको भी इस साजिश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। इस कारण से वीर सावरकर की छवि को धक्का लगा था। लेकिन ठोस सबूतों के अभाव में सावरकर को बरी कर दिया गया था।
मृत्यु
बता दें कि 26 फरवरी 1966 को 82 साल की उम्र वीर सावरकर का निधन हो गया था। बताया जाता है कि सावरकर ने एक महीने पहले से उपवास करना शुरूकर दिया था। जिसके कारण उनका शरीर कमजोर होता चला गया था।
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