जानिए गुजरात की उन 10 सीटों का हाल जहां भाजपा ने बदले उम्मीदवार

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संतोष पाठक । Apr 22 2019 10:51AM

कपास की खेती के लिए मशहूर सौराष्ट्र के इस संसदीय क्षेत्र में कोली समुदाय का बाहुल्य है। बीजेपी ने 2014 में भारी अंतर से चुनाव जीतने वाले देवजी भाई का टिकट काटकर महेन्द्रभाई मुंजपारा को उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद सोमाभाई पटेल को उम्मीदवार बनाया है जो पहले कई बार कांग्रेस और बीजेपी दोनो के टिकट पर यहां से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।

गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों के लिए एक साथ 23 अप्रैल को मतदान होगा। राज्य के लगभग 4.47 करोड़ मतदाता 371 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला तो करेंगे ही साथ ही उनका वोट यह भी बताएगा कि क्या गुजरात में अभी भी नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार है या कांग्रेस उसमें सेंध लगा पाने में कामयाब हो गई है। हम आपको बताने जा रहे हैं उन 10 लोकसभा सीटों का हाल जहां बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसदों का टिकट काटकर नए चेहरों को मौका दिया है।

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1. गांधीनगर लोकसभा सीट (कुल वोटर 19.45 लाख)– को गुजरात की वीआईपी सीट और बीजेपी का गढ़ कहा जाता है। पिछले 30 वर्षों से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता यहां से चुनाव जीत कर सांसद बने है। बीजेपी ने इस बार लाल कृष्ण आडवाणी की बजाय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को यहां से मैदान में उतारा है। इस लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 2.5 लाख के लगभग पाटीदार मतदाता है। वैश्य वोटर 1.4 लाख, ठाकोर 1.3 लाख और दलित 1.88 लाख के लगभग है। कांग्रेस ने अमित शाह के खिलाफ इस संसदीय क्षेत्र में 2017 में चुनाव जीते अपने इकलौते विधायक सीजे चावड़ा को मैदान में उतारा है। विधानसभा चुनाव में महज 5,500 वोटों से जीते चावड़ा को अमित शाह के मुकाबले काफी कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा है। 

2. अहमदाबाद पूर्व (कुल वोटर 18.09 लाख)– लोकसभा सीट वर्ष 2004 तक अहमदाबाद निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा था। 2009 लोकसभा चुनाव के पहले इसे पूर्व और पश्चिम में विभाजित किया गया। 1989 से 2004 तक बीजेपी के हरिन पाठक अहमदाबाद और 2009 में अहमदाबाद पूर्व से चुनाव जीते थे। 2014 में उनका टिकट काटकर बीजेपी ने परेश रावल को उम्मीदवार बनाया। इस बार भी बीजेपी ने वर्तमान सांसद परेश रावल का टिकट काटकर हसमुख पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है। दरअसल, कांग्रेस द्वारा इस सीट से पाटीदार आंदोलन से जुड़ी हार्दिक पटेल की सहयोगी गीता पटेल को उम्मीदवार बनाने के बाद बीजेपी के लिए भी यहां से पटेल उम्मीदवार को उतारना जरूरी हो गया था क्योंकि पाटीदार आंदोलन का सबसे अधिक असर निकोल, बापूनगर और ठक्करबापा जैसे यहां के इलाकों में ही देखा गया था। 

3. मेहसाणा लोकसभा क्षेत्र (कुल वोटर 16.47 लाख)– प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसी जिले के वडनगर से हैं। पाटीदार आंदोलन की शुरुआत इसी इलाके से हुई थी। भाजपा ने लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए यहां से अपने 3 बार के सांसद जयश्री पटेल का टिकट काटकर पूर्व बीजेपी नेता दिवंगत अनिल पटेल की पत्नी (एक घरेलू महिला) शारदाबेन पटेल को मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व ब्यूरोक्रेट आई जे पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है। पटेल बाहुल्य इस इलाके में कड़वा पटेलों की संख्या ज्यादा है। यहां की 90 फीसदी से ज्यादा आबादी हिंदू है जबकि मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 7 फीसदी के लगभग है। 

4. बनासकांठा लोकसभा सीट (कुल वोटर 16.96 लाख)– देशभर में मार्बल और ग्रेनाइट के लिए मशहूर बनासकांठा को प्रदेश के सबसे पिछड़ो इलाकों में माना जाता है। बीजेपी ने यहां से अपने दिग्गज सांसद और केन्द्रीय मंत्री हरिभाई चौधरी का टिकट काटकर परबतभाई पटेल को उम्मीदवार बनाया है जबकि कांग्रेस की ओर से पारथीभाई मैदान में हैं। शंकर सिंह बाघेला के बेटे महेन्द्र सिंह वाघेला द्वारा कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी में शामिल होने को इस सीट पर कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। 85 फीसदी ग्रामीण आबादी वाले इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति 10.33 फीसदी और अनुसूचित जनजाति 11.21 फीसदी है।

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5. पोरबंदर लोकसभा (कुल वोटर 16.60 लाख)– गांधी की जन्मभूमि पोरबंदर से बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसद विट्ठलभाई रदाड़िया को बीमार होने की वजह से टिकट नहीं दिया है। बीजेपी ने जहां रमेश धड़ुक को चुनावी मैदान में उतारा है वहीं कांग्रेस ने पाटीदार आंदोलन के चेहरे और हार्दिक पटेल के करीबी धोराजी से विधायक ललित वसोया को अपना उम्मीदवार बनाया है। पोरबंदर को बीजेपी का गढ़ माना जाता है लेकिन इस बार कांग्रेस यहां से कड़ी टक्कर दे रही है। 

6. आणंद लोकसभा सीट (कुल वोटर 16.55 लाख)– कांग्रेस के कद्दावर नेता भरत सिंह सोलंकी का गढ़ माने जाने वाले इस सीट से इस बार भी सोलंकी ही कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं। 2014 में मोदी लहर के बावजूद सोलंकी यह सीट सबसे कम अंतर से हारे थी लेकिन 2014 में उन्हे हराने वाले दिलीपभाई पटेल का टिकट इस बार बीजेपी ने काट दिया है। बीजेपी ने इस बार यहां से मितेश रमेशभाई पटेल को टिकट दिया है। कांग्रेस इसे जीती हुई सीट मान रही है लेकिन बीजेपी का दावा कुछ और ही है।

  

7. सुरेन्द्रनगर लोकसभा सीट (कुल वोटर 18.47 लाख)- कपास की खेती के लिए मशहूर सौराष्ट्र के इस संसदीय क्षेत्र में कोली समुदाय का बाहुल्य है। बीजेपी ने 2014 में भारी अंतर से चुनाव जीतने वाले देवजी भाई का टिकट काटकर महेन्द्रभाई मुंजपारा को उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद सोमाभाई पटेल को उम्मीदवार बनाया है जो पहले कई बार कांग्रेस और बीजेपी दोनो के टिकट पर यहां से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। पिछले दो दशकों में बारी-बारी से दो बार बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवार यहां से चुनाव जीते हैं। कोली समुदाय की दो उपजाति मेर और तारबदा से दो अन्य दिग्गज नेताओं के चुनाव लड़ने की वजह से इस बार यहां का मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

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8. पाटन ( कुल वोटर 18.05 लाख)– लोकसभा संसदीय क्षेत्र से बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसद लीलाधर वाघेला को टिकट ना देकर भारत सिंह दाभी को अपना उम्मीदवार बनाया है वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद जगदीश ठाकोर को चुनावी मैदान में उतारा है। पिछले 4 लोकसभा में यहां की जनता एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार बीजेपी पर भरोसा दिखाती रही है। 

9. पंचमहल ( कुल वोटर 17.43 लाख)– लोकसभा के वर्तमान सांसद प्रभात सिंह चौहान का टिकट काटकर बीजेपी ने इस बार रतनसिंह राठौड़ को चुनावी मैदान में उतारा है। चौहान बीजपी उम्मीदवार के तौर पर यहां से लगातार दो बार 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव जीते थे। 2008 में परिसीमन के बाद वजूद में आया पंचमहल पहले गोधरा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था। यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है लेकिन उनमें बिखराव की वजह से बीजेपी चुनाव जीतती रही है। एसटी आबादी लगभग 15 फीसदी और एससी आबादी लगभग 5 फीसदी है।

10. छोटा उदयपुर लोकसभा सीट (कुल वोटर 16.70 लाख)– नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण इसी इलाके में हुआ है। आदिवासी बहुल इस संसदीय क्षेत्र में भारी विरोध के कारण बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसद रामसिंह राठवा की जगह गीताबेन राठवा को चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने भी इस सीट से राठवा समाज के रणनीत राठवा को मैदान में उतारा है। इस संसदीय क्षेत्र में तड़वी समाज का बाहुल्य है जो शुरू से ही बीजपी के साथ रहा है लेकिन इस बार आदिवासी आंदोलन पर गुजरात सरकार के एक्शन को लेकर यहां लोगों में काफी नाराजगी है। बीजेपी को जहां इस सीट पर अपने संगठन और कोर वोट बैंक पर भरोसा है वहीं कांग्रेस को लगता है कि बीजपी से नाराज आदिवासी समाज का वोट उसे चुनाव जीता सकता है।

- संतोष पाठक

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