मूल नाम की तरह जीवन में अजेय हैं आदित्यनाथ योगी

संजय तिवारी । Mar 27 2017 11:12AM

अजय ने न सिर्फ अपने अजेयभाव का प्रदर्शन किया बल्कि कम उम्र में संत पंथ को अपनाकर न सिर्फ आदित्यनाथ बन गए बल्कि वोटों की शक्ल में आम लोगों का दिल जीतकर 1998 में सबसे कम उम्र सांसद बनने का गौरव भी हासिल किया।

ईश्वर जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। आज यही कहावत उत्तराखंड के लिए सच साबित हो रही है। केवल कुछ ही घंटों के अंतराल पर उत्तराखंड के दो नेताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल हुई है। शनिवार को उत्तराखंड में त्रिदेव सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की शपथ ली। इसी दिन उत्तर प्रदेश के लिए उसी उत्तराखंड के सपूत योगी आदित्यनाथ के नाम की घोषणा मुख्यमंत्री पद के लिए की गयी। यह भी संयोग ही कहा जाएगा कि ये दोनों नेता एक ही बिरादरी से आते हैं। योगी आदित्यनाथ का मूल नाम अजय सिंह बिष्ट है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के दोनों घोषित नाम विधान सभा के सदस्य नहीं हैं।

आज के आदित्यनाथ वही हैं जिनका जन्म पौड़ी जिले के पंचेर गांव में नंद सिंह बिष्ट के घर पांच जून 1972 को हुआ था। 14 सितंबर 2015 को उनके जीवन में नया अध्याय जुड़ गया। महंत अवैद्यनाथ के समाधिस्थ होने के साथ ही बेशुमार लोगों और संत समाज के गणमान्य लोगों के बीच उन्होंने गोरक्षपीठाधीश्वर का दायित्व संभाल लिया। वैसे उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्र जीवन से ही हो गई थी। गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी की डिग्री हासिल करने तक उनकी गिनती अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रखर कार्यकर्ताओं के रूप में होने लगी थी। नाम के अनुरूप बाल्यावस्था से हर काम की तेजी से अजय ने न सिर्फ अपने अजेयभाव का प्रदर्शन किया बल्कि कम उम्र में संत पंथ को अपनाकर न सिर्फ आदित्यनाथ बन गए बल्कि वोटों की शक्ल में आम लोगों का दिल जीतकर 1998 में सबसे कम उम्र सांसद बनने का गौरव भी हासिल किया।

जहां तक योगी के जीवन यात्रा की कहानी का प्रश्न है, वह किसी फ़िल्मी कथानक से कम नहीं है। महज़ 22 साल की उम्र में परिवार त्यागकर वह योगी स्वरूप में आ गए। 1993 से अपना केंद्र गोरखपुर बना लिया और गोरखनाथ मंदिर में निरंतर बढ़ते सेवाभाव ने उन्हें 15 फरवरी 1994 को उनको गोरक्षपीठाधीश्वर के उत्तराधिकारी की पदवी तक पहुंचा दिया। इसके बाद 1998 में जब फिर लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो गोरक्षपीठाधीश्वर ने अपनी सियासी विरासत भी उन्हें सौंपते हुए चुनाव लड़ाने का फैसला लिया क्योंकि पूर्व महंत दिग्विजय नाथ और अवैद्यनाथ इससे पहले चुनाव लड़ चुके थे। इस चुनाव को जीतकर उन्हें सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव हासिल हुआ। उसके बाद से वह लगातार पांचवीं बार चुनाव जीतकर बाल्यावस्था के अपने नाम के अनुरूप खुद के अजेय भाव को प्रदर्शित कर रहे हैं। एक कार्यक्रम के दौरान उनके भाषण ने ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ को प्रभावित किया और उनके आह्वान पर रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़ गए। गतिविधियों के साथ काम के प्रति समर्पण का भाव बढ़ता देख महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें अपना शिष्य बनाने पर हामी भर दी। 1996 के लोकसभा चुनाव में जब महंत अवैद्यनाथ गोरखपुर संसदीय सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे तो चुनाव का कुशल संचालन करके उन्होंने अपनी राजनीतिक सूझबूझ का खासा परिचय दिया।

जब सम्पूर्ण पूर्वी उत्तर प्रदेश जेहाद, धर्मान्तरण, नक्सली व माओवादी हिंसा, भ्रष्टाचार तथा अपराध की अराजकता में जकड़ा था उसी समय नाथ पंथ के विश्व प्रसिद्ध मठ श्री गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर के पावन परिसर में शिव गोरक्ष महायोगी गोरखनाथ जी के अनुग्रह स्वरूप माघ शुक्ल 5 संवत् 2050 तदनुसार 15 फरवरी सन् 1994 की शुभ तिथि पर गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में योगी आदित्यनाथ का दीक्षाभिषेक सम्पन्न किया। अपने धार्मिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करने के साथ-साथ योगी निरंतर समाज से जुड़ी समस्याओं के निवारण के लिए प्रयास करते रहते हैं। व्यक्तिगत समस्याओं से लेकर विकास योजनाओं तक की समस्याओं का हल वे बहुत ही धैर्यपूर्वक निकालते हैं।

हिन्दू जनमानस में अपनी ख़ास पहचान रखने वाले गोरखपुर का ‘गोरक्ष पीठ’ नाम का मठ नाथ सम्प्रदाय के हठ-योगियों का गढ़ रहा, जाति-पाति से दूर इस सम्प्रदाय की शाखा तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से लेकर पूरे पश्चिम उत्तर भारत में फैली थी। नाथ संप्रदाय को गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ को हिन्दू समेत तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्ध योगी माना जाता है। रावलपिंडी शहर को बसाने वाले राजपूत राजा बप्पा रावल के गोरखनाथ को अपना गुरु मानते थे व इन्हीं की प्रेरणा से मोरी (मौर्या) सेना को एकत्र कर मुहम्माब बिन कासिम के नेतृत्व में अरब हमलों से भारत की रक्षा की, आज उसी प्रकार से ‘समाज की रक्षा’ गोरखनाथ मठ के उत्तराधिकारी होने के नाते योगी आदित्यनाथ कर रहे हैं।

योगी की कर्मभूमि उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा है, जिसमें गोरखपुर मंडल के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज, बस्ती मंडल के बस्ती, संतकबीर नगर, सिद्धार्थनगर और आज़मगढ़ मंडल के आज़मगढ़, बलिया, मऊ जिले शामिल हैं। ये तीनों मंडल एक ख़ास विचारधारा से प्रभावित हो साम्प्रदायिकता का जवाब साम्प्रदायिकता की राजनीति की तरफ आकृष्ट हुए हैं। कई दशकों से मठ आधारित ये राजनीति अपने शुरुआती दिनों के नरम हिंदुत्व से उग्र हिन्दुत्ववादी हो चुकी है तो इसका श्रेय योगी आदित्यनाथ के आक्रामक स्वाभाव को ही जाता है। पूर्व में इसी विचारधारा के तहत महंत अवैद्यनाथ ने 1989 और 1991 में गोरखपुर से लोकसभा का चुनाव जीता व उनके बाद से उनके उत्तराधिकारी बने योगी आदित्यनाथ ने लगातार 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 के चुनाव जीत कर अपनी राजनीति के सफल होने का प्रमाण दिया।

जनप्रतिनिधि के रूप में उन्होंने जापानी इंसेफलाइटिस से बचाव और उसके उपचार के लिए उल्लेखनीय प्रयास किये, उसके अलावा गोरखपुर में सफाई व्यवस्था व राप्ती नदी पर बांध बनवाने जैसे कई विकास के कार्य कराए हैं। सदियों से श्रद्धा का केंद्र रहने वाले गोरखनाथ पीठ के महंत होने की वजह से वे कभी भी मतदाता के सामने हाथ नहीं जोड़ते, उल्टे मतदाता उनके पैर छूकर आशीर्वाद मांगते हैं। सांसद होने के नाते कोई समस्या बयान करता तो वे सरकारी प्रक्रिया का इंतज़ार किये बिना तुरंत संबंधित अधिकारी से बात कर समस्या का अपने स्तर पर निपटारा कर देते हैं। कुछ वर्ष पहले एक माफिया डॉन के द्वारा उनके एक मतदाता के मकान पर कब्जे से क्षुब्द, योगी ने सीधे ही उस मकान पर पहुँच अपने समर्थकों के द्वारा उसे कब्जे से मुक्त करवा दिया। ऐसे कई और मामले हैं जो उनकी धार्मिक रहनुमाई से रोबिनहुडाई तक के सफ़र की कथा बयान करते हैं।

- संजय तिवारी

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