Nitish Kumar खुद तो 2004 के बाद से कोई चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा सके लेकिन राहुल गांधी को 2024 के सपने दिखा रहे हैं

Nitish Kumar
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केंद्र में सत्ता बदलने को आतुर दिख रहे नीतीश कुमार के बारे में यह जानना भी रोचक है कि वह देश के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके लगभग डेढ़ दशक के शासन के बावजूद उनका राज्य देश का सबसे पिछड़ा राज्य बना हुआ है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोदी विरोधी महागठबंधन बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। नीतीश कुमार दिल्ली आये तो लालू यादव से मिले, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे से मिले और इन मुलाकातों के बाद पूरा विश्वास जताया कि विपक्ष का ये कारवां मजबूत बनता जायेगा और सब मिलकर चुनाव लड़ेंगे। नीतीश कुमार के हौसले देखकर ऐसा लग रहा है कि 2024 में बड़ा बदलाव आ जायेगा। लेकिन सवाल उठता है कि नीतीश कुमार की राजनीतिक विश्वसनीयता कितनी बची है? सवाल यह भी उठता है कि नीतीश कुमार का राजनीतिक जनाधार कितना बचा है? हम आपको बता दें कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड बिहार विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी है। नीतीश कुमार 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से कोई चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पाये हैं और उसके बाद से विधान परिषद के सदस्य हैं।

2004 में नीतीश कुमार ने दो संसदीय सीटों से चुनाव लड़ा था जिसमें से एक में वह हार गये थे। इसके अलावा नीतीश कुमार ने अपना आखिरी विधानसभा चुनाव 1985 में जीता था। साथ ही यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दी गयी जुबान का ही परिणाम था कि नीतीश कुमार साल 2020 में मुख्यमंत्री बन पाये थे जबकि उनकी पार्टी जदयू की सीटें तत्कालीन सहयोगी भाजपा के मुकाबले बेहद कम थीं। दल बदल की राजनीति का रिकॉर्ड भले अन्य नेताओं के नाम पर हो लेकिन गठबंधन बदल का रिकॉर्ड नीतीश कुमार के नाम पर है। नीतीश कुमार के नाम भले बिहार में सर्वाधिक बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रिकॉर्ड हो लेकिन सिर्फ अपने दम पर वह कभी यह पद हासिल नहीं कर सके।

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केंद्र में सत्ता बदलने को आतुर दिख रहे नीतीश कुमार के बारे में यह जानना भी रोचक है कि वह देश के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनके लगभग डेढ़ दशक के शासन के बावजूद उनका राज्य देश का सबसे पिछड़ा राज्य बना हुआ है। अपने राज्य को आगे बढ़ाने की बजाय नीतीश कुमार केंद्र से हमेशा इस बात के लिए गुहार लगाते रहते हैं कि उनके राज्य को विशेष दर्जा दिया जाये। आज के जमाने में जहां राज्य एक दूसरे से आगे निकलने के प्रयास कर रहे हैं वहीं नीतीश की चाहत है कि बिहार सिर्फ केंद्र की अनुकम्पा पर चलता रहे। जो मुख्यमंत्री लंबे शासन के बावजूद अपने राज्य को पिछड़ेपन से निजात नहीं दिला सका और जनता को सिर्फ जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों में ही उलझाये रहता है, जरा सोचिये यदि वह केंद्र की सत्ता में आ गया या केंद्र की सत्ता में भागीदार बन गया तो देश किस दिशा में चल पड़ेगा? 

क्या आज का भारत उस गठबंधन राजनीति के युग में जाना पसंद करेगा जहां प्रधानमंत्री का अधिकांश समय गठबंधन सहयोगियों को मनाने या उनके अनैतिक कार्यों पर आंखें मूंदें रहने में बीतता था। नीतीश कुमार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी ही आतुरता 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी दिखाई थी। 2019 में मोदी को हटाने के प्रयास में सभी विपक्षी नेताओं को मंच पर लाने के लिए चंद्रबाबू नायडू ने आकाश पाताल एक कर दिया था लेकिन इस दौरान आंध्र प्रदेश में उनके खुद के पैर के नीचे से राजनीतिक जमीन पूरी तरह खिसक गयी थी।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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