सपा के 47 पर सिमटने के कारणों में आजम की बदजुबानी भी

राज्यपाल के साथ बतौर मुख्यमत्री अखिलेश यादव का संवाद शालीनता पूर्ण था। वह संवैधानिक पद की मर्यादा का ध्यान रखते थे, लेकिन आज़म खां के प्रकरण पर अखिलेश लाचार नजर आते थे।

उत्तर प्रदेश में सपा सैंतालिस सीटों पर सिमट गयी इसके कई कारण हैं। इसमें सपा के कद्दावर नेता आजम खां द्वारा राज्यपाल राम नाईक पर समय−समय पर की गयी टिप्पणियों ने भी अपने ढंग से योगदान दिया। आज़म की इन टिप्पणियों ने भी दो रूप में नुकसान पहुंचाया। पहला यह कि इससे अखिलेश यादव की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा। अक्सर लगता था कि अखिलेश उनकी बातों से सहमत नहीं हैं। राज्यपाल के साथ बतौर मुख्यमत्री उनका संवाद शालीनता पूर्ण था। वह संवैधानिक पद की मर्यादा का ध्यान रखते थे, लेकिन आज़म खां के प्रकरण पर अखिलेश लाचार नजर आते थे। आज़म को रोकने या मर्यादित ढंग से बोलने की हिदायत में अखिलेश अक्सर कमजोर दिखाई दिये। जिससे बिना कहे ही साढ़े तीन मुख्यमंत्रियों का आरोप मजबूत होता गया।

दूसरा नुकसान पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी को यह हुआ कि राम नाईक संवैधानिक दायित्वों का जिस कुशलता से निर्वाह कर रहे थे, उसने यहां उनको लोकप्रिय बना दिया था। जिम्मेदारी के पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति अच्छा कार्य करता है तो उसको आमजन का सम्मान मिलता ही है। उसका सक्रिय राजनीति में होना आवश्यक नहीं होता है। जैसे कई बार ऐसे उदाहरण दिखाई देते हैं, जब जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक आदि के ट्रांसफर होते हैं, तो आमजन उसको रूकवाने को धरना प्रर्दशन करते हैं। ये अधिकार राजनीति में नहीं होते, लेकिन अपने दायित्वों को इतनी ईमानदारी व जनहित की भावना से करते हैं कि लोगों कि दिल जीत लेते हैं। उस जिले के लोगों को लगता है कि उनके साथ न्याय होगा। वह अधिकारियों से मिलकर अपनी बात कह सकते हैं। उसी कुर्सी पर बैठने वाले कुछ अधिकारी ऐसे होते हैं, जिनके बारे में आमजन सोचता है कि जितनी जल्दी ट्रान्सफर हो उतना ही अच्छा। आजम खां ने कभी यह समझने का प्रयास नहीं किया कि राम नाईक की उत्तर प्रदेश मे किस प्रकार की छवि बन चुकी है।

उत्तर प्रदेश का आमजन उनके कार्यों से प्रभावित रहा है। आमजन की समस्याओं से लेकर बड़े संवैधानिक मसले जब भी उनके संज्ञान में आये, उन्होंने उस पर नियमानुसार कार्रूवाई की। राज्यपाल संवैधानिक मुखिया होता है। इस रूप में उसकी भूमिका सीमित होती है। इसके बावजूद राम नाईक लगातार सक्रिय रहे। इसके चलते उत्तर प्रदेश में उनकी लोकप्रिय छवि बन चुकी थी। ऐसे में जब आजम खां उन पर अजीब तरह की टिप्पणी करते थे, तब आमजन भी उसे पसंद नहीं करता था, लेकिन उस समय आजम खां अपने रौब में थे, वह उत्तर प्रदेश के मिजाज का समझने में विफल रहे। जहां राम नाईक बतौर राज्यपाल संवैधानिक व्यवस्था के अनुकूल नजीर बना रहे थे, आजम उनके प्रति निजी नाराजगी व्यक्त करने में लगे रहे। मसले राजभवन या सत्त के गलियारे तक सीमित नहीं थे। वरन् इनकी आमजन में भी दिलचस्पी थी। राम नाईक के ऐसे कुछ कार्यों पर विचार आवश्यक है। राम नाईक के कार्य केवल उत्तर प्रदेश के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं थे, वरन उन्होंने ऐसी नजीर कायम की जिनका भविष्य में सभी राज्यपालों को पालन करना चाहिए। राम नाईक ने संविधान का पालन किया। जैसे राज्यपाल विधान परिषद में सदस्य नामित करता है, लेकिन संसदीय व्यवस्था के कारण राज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करता है। अर्थात् सता पक्ष जो नाम भेजता है, उन्हें ही राज्यपाल सहमति प्रदान कर देते हैं लेकिन राम नाईक ने संविधान के शब्दों को महत्व दिया। इसमें साफ−साफ लिखा था कि सहित्य, कला, समाज सेवा आदि क्षेत्र में विभिन्न योगदान करने वालों को राज्यपाल विधान परिषद में नामित करेगा।

अखिलेश सरकार द्वारा भेजी गयी सूची पर राज्यपाल ने स्पष्टीकरण मांगा। साफ लिखा कि वह महाराष्ट्र के हैं। जिन नामों को आप के द्वारा भेजा गया उनके विषय में जानकारी नहीं रखते। इसलिए उनका विवरण भी भेजा जाए। राज्यपाल देखना चाहते थे कि जो नाम भेजे गए हैं, उनमें कौन संविधान में उल्लिखति अर्हता को पूरा करता है। राम नाईक ने इसी संवैधानिक व्यवस्था का पालन किया। भविष्य में जिन प्रदेशों में विधान परिषद हैं, वहां के राज्यपालों को भी ऐसी सजगता दिखानी होगी। राम नाईक के इस फैसले की आमजन के बीच भी सराहना हुई, लेकिन आजम तंज कसते रहे। इससे सपा को होने वाले नुकसान का वह अनुमान नहीं लगा सके। यह माना गया कि सपा सरकार का दिग्गज मंत्री संविधान के अनुकूल कार्य करने वाले राज्यपाल का अनुचित विरोध कर रहा है। इसी प्रकार राज्यपाल ने लोकायुक्त नियुक्ति प्रकरण पर नियमों का बखूबी पालन किया। मुख्यमंत्री जिस पर जोर दे रहे थे उससे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश असहमत बताए जा रहे थे।

राज्यपाल ने बड़े मर्यादित तरीके से जानकारी मांगी थी। उन्होंने यह जानना चाहा था कि मुख्य न्यायाधीश के प्रस्तावित नाम के संबंध में क्या टिप्पणी है। राम नाईक की इस सजगता को आमजन ने पसंद किया। आज़म आमजन के खिलाफ दिखाई दिए। राम नाईक का यह कार्य भी नजीर बन गया। भविष्य में प्रत्येक राज्यपाल को लोकायुक्त नियुक्ति में इन सभी तथ्यों को ध्यान रखना होगा। मंत्री  की नियुक्ति या उन्हें पद से हटाने के कार्य मुख्यमंत्री की सलाह पर ही राज्यपाल करता है।

उत्तर प्रदेश में गायत्री प्रसाद प्रजापति का प्रकरण सब जानते हैं। न्यायपालिका ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया था लेकिन वह कैबिनेट मंत्री पद पर बने हुए थे। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पूछा कि गायत्री प्रसाद प्रजापति मंत्री पद पर क्यों बने हुए हैं। राज्यपाल का यह पूछना ही महत्वपूर्ण था। भविष्य में भगोड़े मंत्री के संबंध में राज्यपालों को ऐसी ही सजगता दिखानी होगी। राम नाईक के इस कदम को भी अच्छा माना गया। राज्यपाल के संबंध में टिप्पणी से आजम खां न केवल अपना स्तर गिरा रहे थे, वरन् आमजन को भी नाराज कर रहे थे। यहां तक कि वह विधानसभा में भी राज्यपाल के खिलाफ अनुचित ढंग से बोले। राज्यपाल ने उनके भाषण का असंपादित ब्यौरा तलब किया था। आजम ने अपनी ही पार्टी का नुकसान किया।

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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