त्योहार से ठीक पहले आतिशबाजी पर रोक लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा
दरअसल पटाखों पर दीपावली पर दो चार दिन पहले दिए आदेश का कोई असर होने वाला नहीं है। इसके लिए तो एक साल पहले आदेश देना होगा। नियम बनाने होंगे। दिए आदेश का व्यापक प्रचार करना होगा। होता यह है कि आतिशबाजी बनाने वाली फैक्ट्री का यही काम है। यह पूरे साल चलता है।
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद दीपावली की रात में दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में खूब पटाखे जले। रात दस बजे तक ही पटाखे छूटने चाहिए किंतु 12 बजे के बाद भी पटाखे छोड़े जाते रहे। रात 12 बजे के बाद छूटने वाले पटाखे काफी तेज आवाज करने वाले रहे। सुबह भी पटाखों के छूटने की आवाज आती रहीं। रात में हुई आतिशबाजी के कारण शुक्रवार को सुबह घने कोहरे की मोटी परत छायी रही। इसके कारण दिल्ली के कई हिस्सों में निवास करने वालों को गले में जलन और आंखों में पानी आने की दिक्कतों का समाना करना पड़ा। प्राधिकारियों का मानना है कि पराली जलाए जाने से उठने वाले धुएं के कारण हालात और बिगड़ सकते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले महीन कण यानी पीएम2.5 की 24 घंटे की औसत सांद्रता बढ़कर शुक्रवार को सुबह नौ बजे 410 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गई जो 60 माइकोग्राम प्रति घन मीटर की सुरक्षित दर से करीब सात गुना अधिक है।
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पीएम10 का स्तर शुक्रवार को सुबह करीब पांच बजे 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के आंकड़े को पार कर गया और सुबह नौ बजे यह 511 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) के अनुसार, अगर पीएम2.5 और पीएम10 का स्तर 48 घंटों या उससे अधिक समय तक क्रमश: 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक रहता है तो वायु गुणवत्ता ‘‘आपात’’ श्रेणी में मानी जाती है।
दरअसल पटाखों पर दीपावली पर दो चार दिन पहले दिए आदेश का कोई असर होने वाला नहीं है। इसके लिए तो एक साल पहले आदेश देना होगा। नियम बनाने होंगे। दिए आदेश का व्यापक प्रचार करना होगा। होता यह है कि आतिशबाजी बनाने वाली फैक्ट्री का यही काम है। यह पूरे साल चलता है। बरसात का मौसम आतिशबाजी का सामान लाने ले जाने के लिए सबसे उपयुक्त होता है। गीली आतिशबाजी के ट्रकों में लादते समय उसमें विस्फोट होने का खतरा नहीं रहता। रास्ते में भी उसके भीगने से ये खतरा कम रहता है। ऐसे में बरसात के समय में तो माल क्षेत्र और जनपद के गोदाम तक पहुंच जाता है। यहीं वह आराम से सूखता भी है।
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दीपावली से महीनों पहले से आतिशबाजी होल सेलर से रिटेलर के पास पहुंचनी शुरू हो जाती है। ऐसे में जब आतिशबाजी पूरे बाजार में फैल गई तो एक−दो दिन पहले रोक लगाने से कुछ नही होगा। जिनके पास माल होगा, वह उसे बेचेंगे ही। सरे आम न बेचें चोरी छिपे बेचें। हां, इन आदेश से पुलिस का लाभ और आय जरूर बढ़ जाती है। वह जानती है कि माल कहां है। कहां-कहां बिक रहा है। इस आदेश से उसकी वसूली का स्तर और बढ़ जाता है। न्यायपालिका के आदेश की भी अवमानना होती है।
होना यह चाहिए कि ये आदेश एक साल पहले लागू हो। आतिशबाजी बनाने वाले कारखानों और उसके मालिकों को आदेश उपलब्ध कराकर उसकी प्रति रिसीव करा ली जाए। समय−समय पर निगरानी हो कि आदेश का सही से पालन हो रहा है, या नहीं। आतिशबाजी से होने वाले नुकसान के प्रति व्यापक जनजागरण होना चाहिए। तभी इस पर सही से रोक लग सकेगी अन्यथा नहीं। ऐसे तो सिर्फ खानापूरी ही होगी कि हमारे सामने आदेश आ गया तो हमने ऑर्डर कर दिया, बाकी तुम्हारा विवेक।
-अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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